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गौविंद माधव आखिर है कौन?

पंडित जितेन्द्र त्रिवेदी द्वारकेश पौराणिक

१२/१८ जवाहर मार्ग शाजापुर म. प्र. ४६५००१
jitendra trivedi jitendra.sjr@gmail.com 



 जय गौविंद माधव
गौविंद माधवौ देवो दत्ताम न: वर मुत्तमं 
 औदिच्य बंधुनाम सेवार्थ जिविताच्चिरम !!

यह श्लोक एक लम्बे समय से पड़ता आ रहा हु और तभी से यह जिज्ञासा
रही है कि ये गौविंद माधव आखिर है कौन ?
वैसे देखा जाय तो यह दोनों श्री
कृष्ण के ही नाम है वैसे तो श्री कृष्ण के करोडो नाम है परन्तु भक्त से
एक निष्ट भक्ति कि अपेक्षा होती हे एक निष्टता और निष्टा के बिना भक्ति
नहीं हो सकती एकाग्रता एकांगी हो या सर्वांगी पर उसमे निष्टा होना जरुरी
हे एकाग्रता के अभाव में विचलन होता है विचलन से दुविधा होती है व्
दुविधा ग्रस्त व्यक्ति का पतन हो जाता हे ! कुछ लोगो ने बताया गौविंद
माधव कृष्ण बलराम का ही नाम है परन्तु बलराम के बल व् राम व् संकर्षण ये
तीन नाम तो देखने में आये परन्तु माधव नाम द्रष्टिपथ में नहीं आया वैसे
भगवद चतुष्टय विग्रह में कृष्ण बलराम प्रद्युम्न व् अनिरुद्ध कि
गणनाहोती है पर उसमे माधव नाम नहीं है चतुष्टय के आराधन में गौविंद माधव
को रखना अधूरापन है !
आदि स्रष्टि के प्रारम्भ में या यो कहे पूर्व स्रष्टि के अंतिम महा
प्रलय के बाद जब सर्वत्र जल प्लावन हो चूका था पञ्च तत्व व् पञ्च
तन्मात्राए भी अपने को परब्रह्म में लीन कर चुकी थी सूर्य चन्द्र तारे
सत्य असत्य प्रथ्वी आकाश अग्नि पवन दिन रात का कोई अस्तित्व नहीं था
सर्वत्र जल ही जल था मात्र एक ब्रह्म ही सर्वत्र जल रूप में व्याप्त था,
उसी का प्रकाश था ! नासदीय सूक्त |

जल का एक नाम नार भी है इसलिए उस जल रूप घर में रहने के कारण
ब्रह्म का एक नाम नारायण भी है ! उस एकमैव अद्वितीय ब्रह्म ने लीला करने
हेतु अनेक होने की इच्छा की एकोहम बहुस्याम ! में एक से अनेक हो जाऊ और
तब स्रष्टि का प्रारम्भ हुआ इस तरह जल रूप में अवस्थित निर्गुण ब्रह्म
स्रष्टि रूप में सगुन साकार हुआ इस तरह सारी स्रष्टि ही ब्रह्म का स्वरूप
है परन्तु उसका निश्चित आकार प्रकार नहीं होने से भक्तो के लिए
दुराराध्य है इसलिए भक्त लोग उनके दर्शन व् ध्यान हेतु किसी सुलभ रूप की
आकांक्षा रखते है भक्तो की इसी आकांक्षा को पूर्ण करने हेतु वही ब्रह्म
धराधाम पर अवतार लेता है !

जनकपुर की युवतिया वेदों की ऋचाये व अन्यान्य देवांगनाए भी उनके दर्शन
करना चाहती थी उनकी प्रेमा भक्ति से विवश होकर उस ब्रह्म ने सगुण साकार
कृष्ण रूप में अवतार लिया व् उन्हें प्रेम का पाठ पदाया ! महारास द्वारा
प्रेमरस का पान कराया उन्हें रस विभोर कराकर कृष्ण मथुरा चले गए ! महारास
में भक्त भगवान इतने एकाकार हो गये कि संयोग वियोग का भाव ही तिरोहित हो
गया तभी तो भगवान मथुरा जाकर स्वयं व्यथित होते है और आत्माराम अपने
समानुभूति गोपिकाओ कि व्यथा दूर करने हेतु उद्धव को व्रज भेजते है उद्धव
जो ज्ञान स्वरूप है वे गोपिकाओ को ज्ञानोपदेश देते है परन्तु गोपिया
प्रेम रस में इतनी भाव विभौर है कि उन्हें ज्ञान सरीता में अवगाहन कि कोई
इच्छा ही नहीं !यद्यपि वे वियोगिनी है तो भी सर्वत्र कृष्ण दर्शन करती
विरह वेदना का अनुभव ही नहीं करती यहा तक कि अपनी प्रेमा भक्ति में उद्धव
को भी सराबौर कर देती है कहती है~
उधौ मन ना भये दस बीस ,
एक हुतो सो गयो स्याम संग ,
बिन मन को आराधे इस !!

श्री कृष्ण सगुण साकार परब्रह्म है श्री मद भागवत उनका वांग्मय स्वरूप है,
उसी प्रकार श्री कृष्ण प्रेमावतार है व् उद्धव ज्ञानस्वरूप है ज्ञान
भक्ति के बिना अधुरा है !और भक्ति ज्ञान के बिना दोनों को अपने समान
पूर्णता प्रदान करने हेतु श्री कृष्ण उद्धव को व्रज भेजते है ! ये उद्धव
कौन है ? 
ये श्री कृष्ण के ही स्वरुप है !
गौविंद माधव राम बलराम तो कदापि नहीं है क्योकि भागवत में कहा है~

वृन्दावनं गोवर्धनम यमुना पुलिनानी च ,
विक्ष्यासिदुत्त्माम प्रीति राम माधवो नृप: !!

राम माधव का अर्थ बलराम श्री कृष्ण है राम बलराम होने से पुनरुक्त दोष
होता है व् द्विवचन निरर्थक हो जाता है !

तेषाम ज्येष्ठो वितिहोत्रो व्रशनी पुत्रो मधुस्म्रत: !
तस्य पुत्र शतं त्वासित व्रशनी ज्येष्ठ यत: कूलम !!

व्रशनी वंश में मधु नाम राजा था उसके व्र्शनी यदु मधु नाम पुत्र थे
व्रशनी यदु मधु वंशी मथुरा में निवास करते थे ! व्रशनी वंश में कृष्ण का
जन्म लेने से वार्ष्णेय यदु वंश में यादव व मधु वंश में जन्म होने से
उद्धव का नाम माधव हुआ ! माँ = लक्ष्मी व धव यानि पति माधव का अर्थ
लक्ष्मीपति भी होता है परन्तु यह अर्थ लेने से पुनरुक्ति होती है !

तवम न परमकं देवं तवम न इन्द्रो प्रजापते ,
भवाय भव गौविंद गो विप्र देवानां य च साधव: !! भाग. १०!२७!२०

आप कोई देव, प्रजापति ,या इंद्र नहीं है गो विप्र देव व साधुओ के लिए
आपने अवतार लिया है अत: गौविंद आप ही हमारे इंद्र राजा है इस प्रकार गो
विप्र हीत कारक होने से श्री कृष्ण गौविंद और मथुरा के मधु वंश में
उत्पन्न होने से उद्धव को माधव कहा गया है !
उदीच्या: सामगा : शिष्या आसन पंच्शतानी वै !
पौष्य न्ज्यावंत्योश्च्पी तांश्च प्राच्यान प्रचक्षते !!
भाग. १२ / ६ /७८
औदिच्य सामगा थे ! भगवान भी सामवेद स्वरूप है !~वेदानाम सम्वेदोस्मी
----गीता १०/२२
औदिच्य विद्वान एवम भगवद भक्त थे अत : उन्होंने विप्र धेनु सुर संत हित
अवतार लेने वाले गौविंद व् ज्ञान सागर उद्धव यानि माधव को अपना इष्ट
स्वीकार किया जो वास्तव में दो होकर भी अभिन्न है !

अत: गौविंद माधव के भक्त होने के नाते हम औदिच्यो का परम
कर्तव्य है की हम गो सेवा के द्वारा गोविंद की और ज्ञान की साधना कर माधव
की आराधना करे तभी हमारी प्राचिन प्रतिष्ठा और भक्ति सम्पूर्ण हो सकेगी
अन्यथा औदिच्य नाम ही निरर्थक हो जायेगा !
उक्त लेख में व्याकरण सम्बन्धी अवदान मेरे अग्रज व् पूज्य भाई
श्री शान्ति विलास जी शर्मा के है तथा उक्त सम्पूर्ण विचार मौलिक एवम
मेरे द्वारा रचित है !
जय गौविंद माधव

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