भारत के दिल में बसा प्राक्रतिक सम्पदाओ का धनी सुशांत मालवा की “मालवी “ भाषा इतनी मीठी हे
कि बोलने व सुनने वाले दोनों प्रसन्न हो जाते हे | संत कबीर ने सच ही कहा हे कि “मालव माटी गहन गंभीर पग पग रोटी डग डग नीर “| मध्य प्रदेश व राजस्थान के करीब १.७५ करोड लोग“मालवी ‘ बोलते एवं लिखते हे | मालवी भाषा में पूरा साहित्य उपलब्ध हे व मालवा में कई बड़े बड़े साहित्यकार हुवे हे |
संचार माध्यमों में आकाशवाणी व दूरदर्शन ने हमेशा “मालवी ‘ के विकास में अपना योगदान दिया हे परन्तु उतना नहीं दिया जितनी इनकी जिम्मेदारी थी | कई सालो से आकाशवाणी खेती गृहस्थी एवं नंदाजी भेराजी ,ग्राम लक्ष्मी जैसे प्रोग्राम करते आ रही हे | अधिकतर प्रोग्राम सिर्फ खेती बड़ी और ग्रामीण लोगो को लक्छ करके किये जाते रहे हे | मालवी भाषा के विकास ,मालवी को आम आदमी को ध्यान में रख करके कोई भी प्रोग्राम नही किया गया |क्या “मालवी “जानने वाले सिर्फ खेती बाड़ी व ग्रामीण ही हे ? क्या मालवी जानने वाले मालवा के लोग विद्यार्थी ,व्यापारी ,डॉक्टर ,इन्जिनियर ,लेखक,संगीतकार ,गायक ,आदि नहीं हे फिर मालवी में सिर्फ खेती ग्रहस्थी ही क्यों ? आर टी आई की जानकारी के अनुसार आकाशवाणी द्वारा रोजाना १ घंटा ९ मिनिट में खेती गृहस्थी व ग्राम लक्ष्मी का प्रोग्राम किया जाता हे जो कुल समय का १०% भी नहीं हे |मालवा हॉउस , मालवा की सरजमि पर बना हुआ हे और मालवी के सिर्फ १०% कार्यक्रम |
दूरदर्शन की स्थिति तो और भी सोचनीय हे | आर टी आई से प्राप्त सुचना के अनुसार पिछले पाच सालो में दूरदर्शन ने मालवी में १४६ कार्यक्रम किये हे यानि साल में सिर्फ ३५ प्रोग्राम | ३६५ दिन में ३५ प्रोगाम वो भी १.३० मिनिट से लगाकर २५ मिनिट की अवधि के | कितना कम ध्यान हे दूरदर्शन का मालवा की मालवी पर | मालवी कार्यक्रम में सिर्फ लोक गीत ,लोक रंग व खेती के कार्यक्रम दिए गए हे| दूरदर्शन के अनुसार मालवा के लोग और कुछ नहीं जानते सिर्फ लोक गीत और खेती के अलावा | इसी का नतीजा हे की मालवी को ग्रामीण भाषा बना दिया गया हे |
सरकारी संचार माध्यम प्रसार भारती के अंतर्गत चलते हे जिसका उद्देश्य संस्कृति व छेत्रिय बोलियों और भाषाओ का प्रचार प्रसार करना लेकिन हमारे ये तंत्र अपने उदेश्यो से भटक गए हे | सरकारी संचार माध्यमो को चाहिए की मालवा की मालवी में कम से कम ७५% समय मालवी कार्यक्रम को दे | मालवी में गीत ,कहानी, नाटक,समाचार ,चर्चार्ये ,कवि सम्मेलन ,कव्यगोष्टि, नोटंकी, माच ,तेजाजी की कथा ,कन्गुवाल्या का गीत , भोपा भोपी का गीत, संजा का गीत ,हरबोला की आवाज , होली गीत , शादी के गीत, मालवी छल्ला ,मालवी फिल्मी गीत,परिचर्चे ,मालवी चोपाल चर्चा ,अलाहा उदल ,कबीर वाणी ,भाट भटियानी का गीत,व्यापार की बाते,जब तक सारे प्रोग्राम मालवी में होना चाहिए तभी इन संचार माध्यमों की उपयोगिता एवं सार्थकता होगी और ये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर पायेगे|
योगदानकर्ता / रचनाकार का परिचय :-राजेश एस . भंडारी "बाबु"
104, महावीर नगर, इंदौर
फ़ोन 9009502734
rb@indoreinstitute.com
कि बोलने व सुनने वाले दोनों प्रसन्न हो जाते हे | संत कबीर ने सच ही कहा हे कि “मालव माटी गहन गंभीर पग पग रोटी डग डग नीर “| मध्य प्रदेश व राजस्थान के करीब १.७५ करोड लोग“मालवी ‘ बोलते एवं लिखते हे | मालवी भाषा में पूरा साहित्य उपलब्ध हे व मालवा में कई बड़े बड़े साहित्यकार हुवे हे |
संचार माध्यमों में आकाशवाणी व दूरदर्शन ने हमेशा “मालवी ‘ के विकास में अपना योगदान दिया हे परन्तु उतना नहीं दिया जितनी इनकी जिम्मेदारी थी | कई सालो से आकाशवाणी खेती गृहस्थी एवं नंदाजी भेराजी ,ग्राम लक्ष्मी जैसे प्रोग्राम करते आ रही हे | अधिकतर प्रोग्राम सिर्फ खेती बड़ी और ग्रामीण लोगो को लक्छ करके किये जाते रहे हे | मालवी भाषा के विकास ,मालवी को आम आदमी को ध्यान में रख करके कोई भी प्रोग्राम नही किया गया |क्या “मालवी “जानने वाले सिर्फ खेती बाड़ी व ग्रामीण ही हे ? क्या मालवी जानने वाले मालवा के लोग विद्यार्थी ,व्यापारी ,डॉक्टर ,इन्जिनियर ,लेखक,संगीतकार ,गायक ,आदि नहीं हे फिर मालवी में सिर्फ खेती ग्रहस्थी ही क्यों ? आर टी आई की जानकारी के अनुसार आकाशवाणी द्वारा रोजाना १ घंटा ९ मिनिट में खेती गृहस्थी व ग्राम लक्ष्मी का प्रोग्राम किया जाता हे जो कुल समय का १०% भी नहीं हे |मालवा हॉउस , मालवा की सरजमि पर बना हुआ हे और मालवी के सिर्फ १०% कार्यक्रम |
दूरदर्शन की स्थिति तो और भी सोचनीय हे | आर टी आई से प्राप्त सुचना के अनुसार पिछले पाच सालो में दूरदर्शन ने मालवी में १४६ कार्यक्रम किये हे यानि साल में सिर्फ ३५ प्रोग्राम | ३६५ दिन में ३५ प्रोगाम वो भी १.३० मिनिट से लगाकर २५ मिनिट की अवधि के | कितना कम ध्यान हे दूरदर्शन का मालवा की मालवी पर | मालवी कार्यक्रम में सिर्फ लोक गीत ,लोक रंग व खेती के कार्यक्रम दिए गए हे| दूरदर्शन के अनुसार मालवा के लोग और कुछ नहीं जानते सिर्फ लोक गीत और खेती के अलावा | इसी का नतीजा हे की मालवी को ग्रामीण भाषा बना दिया गया हे |
सरकारी संचार माध्यम प्रसार भारती के अंतर्गत चलते हे जिसका उद्देश्य संस्कृति व छेत्रिय बोलियों और भाषाओ का प्रचार प्रसार करना लेकिन हमारे ये तंत्र अपने उदेश्यो से भटक गए हे | सरकारी संचार माध्यमो को चाहिए की मालवा की मालवी में कम से कम ७५% समय मालवी कार्यक्रम को दे | मालवी में गीत ,कहानी, नाटक,समाचार ,चर्चार्ये ,कवि सम्मेलन ,कव्यगोष्टि, नोटंकी, माच ,तेजाजी की कथा ,कन्गुवाल्या का गीत , भोपा भोपी का गीत, संजा का गीत ,हरबोला की आवाज , होली गीत , शादी के गीत, मालवी छल्ला ,मालवी फिल्मी गीत,परिचर्चे ,मालवी चोपाल चर्चा ,अलाहा उदल ,कबीर वाणी ,भाट भटियानी का गीत,व्यापार की बाते,जब तक सारे प्रोग्राम मालवी में होना चाहिए तभी इन संचार माध्यमों की उपयोगिता एवं सार्थकता होगी और ये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर पायेगे|
योगदानकर्ता / रचनाकार का परिचय :-राजेश एस . भंडारी "बाबु"
104, महावीर नगर, इंदौर
फ़ोन 9009502734
rb@indoreinstitute.com