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औदीच्‍य बन्‍धु को अपने घर का सदस्‍य बनाईये ।


किसी यात्रा या आयोजन में अपरिचित औदीच्‍य बन्‍धु के मिलने पर हम आत्‍मीय भाव से मिलकर चर्चा करते हैं और बिछुडने पर फिर मिलने का वादा । अपनों से मिलना हमें चिंरजीवी सुख देता है। 
आज के साहित्‍य संसार में अनेकों पत्र पत्रिकायें दुर्लभ्‍ा और बहुमूल्‍य विचारों को लेकर बाहर  आ रही है ,वे पढी जाकर उनमें से जिज्ञासु ज्ञान के मोती बटोर रहे हैं। किन्‍तु वे पत्रिकायें जो समाज के व्‍दारा समाज के लिये ही प्रकाशित होती है। उनमें रूचि का अभाव देखा जा रहा है। यह अवश्‍य है कि समाज की पत्रिकाओं में फाईव स्‍टार होटल के भोजन जैसा स्‍वाद तो नहीं मिलता  किन्‍तु सामाजिक गतिविधियों जानकारियों का स्‍थायी पौष्टिक तत्‍व अवश्‍य प्राप्‍त हो जाता है किन्‍तु हमारी सामाजिक सोच में जंग सा लगता जा रहा है।  
आज हमारा औदीच्‍य बन्‍धु  निरन्‍तर प्रगति पथ पर आगे बढता हुआ  40 प़ष्‍ठों के साथ 88 वर्ष का होगया है तथा  उसके कलेवर के साथ ही रचनाओं में भी निखार आ रहा है । समाज के सदस्‍य उसकी राह देखते रहते हैं और रूचि पूर्वक पढते हैं क्‍यों कि उसमें सामा‍जिक जानकारियों के साथ बधाई सन्‍देश,वैवाहिक विज्ञापन शोक समाचार आलेख आदि कई नये विचार समाहित रहते है।
हां एक कमी अवश्‍य द्रष्टिगत होती है कि हमारा समाज विद्वानों और कलमकारों से सुसज्जित है किन्‍तु वे अन्‍य पत्रिकाओं के लिये अपनी कलम अवश्‍य चलाते हैं। पर अपने सशक्‍त विचारों को समाज के साथ बाटने को तैयार नहीं होते जबकि औदीच्‍य बन्‍धु उनके विचारों की राह देखता रहता है। 
 यह भी महसूस हो रहा  है कि समाज की जनसंख्‍या के मान से उसके सदस्‍यों की संख्‍या कम है। समाज के हर घर तक बन्‍धु की पहुच हो इसके  लिये योजना को आकार देकर  सदस्‍य संख्‍या को बढाना होगा और यह कार्य सब मिलकर कर करें साथ जी पाठकों में भी रूचि पैदा करना होगी । 
कुछ सदस्‍य यदा कदा उदगार प्रगट करते हैं कि उसमें कुछ पढने लायक सामग्री नहीं आती है । ऐसे विचार  वे ही प्रगट करते हैं जिनका साहित्‍य और समाज से लगाव न के बराबर रहता है।  औदीच्‍य बन्‍धु अखिल भारतीय औदीच्‍य महासभा का मुख पत्र है, जिसमें महासभा की गति‍विधियों के साथ समाज की हर उपलब्‍ध जानकारी प्रकाशित होती है । 
इसमें संपादक के नाम पत्र का कालम भी है जिसमें बन्‍धु को प्रगति के शिखर तक पहुंचाने से संबंधित अपने अमूल्‍य विचारों का प्रकाशित कराया जा सकता है।

          औदीच्‍य बन्‍धु की आलोचना के बजाय समालोचना के साथ इसे अपना मान कर अपनायेगें तो निश्चित रूप से बन्‍धु भी आपके लिये सहयोगी साबित होगा।
उद्धव जोशी ।
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