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मनभेद और मतभेद

 विचार में रत्‍ती भर भी अन्‍तर आया की
मतभेद का चक्रवात चक्‍कर काटने लगता है ।
      मनभेद और मतभेद
 करो तकसीम  खुद को मत ,अंधेरों और उजालों में, इन्‍ही वजहों से रूहों  की कबाएं लौट आती है । कभी तुम दो घडी बच्‍चों की सोहबत में जरा बैठो, उतर कर दिल में परियों की कथाऐं लौट आती है ।
             श्री जगदीशचन्‍द्र पण्‍डया के ये तराशे हुए शब्‍द मानवीय बुध्दि  को मनभेद और मतभेद  के अंतर की गहराई  तक ले जाकर परियों की कथाओं के माध्‍यम  ये बच्‍चों की सरलता को मन में उतारने का ईशारा करते हैं।  
   मानव का अस्तित्‍व उसकी वैचारिक सोंच से ही निर्मित  होता है क्‍योंकि विचार से व्‍यवहार और व्‍यवहार से ही प्‍यार तथा तकरार की शुरूआत होती है।  विचार कभी भी एक दूसरे से मेल नहीं खाते,उनमें रत्‍ती भर भी अन्‍तर आया की मतभेद का चक्रवात चक्‍कर काटने लगता है । ऐसे चक्रवात  से उसके थमने तक थोडी दूर हो जाओ तो कौन सही है और कौन गलत है ,समझ में आ जाता है और फिर वैचारिक भिन्‍नता  की लहर या  तो एक हो जाती है  जो पुन.प्‍यार की खुशबु से आसपास के वातावरण को सुरभित कर देती है।  विचारों का मेल न होने से तकरार प्रारंभ  होकर मनभेद का डरावना तूफान दो दिलों के बीच आकर खडा हो जाता है और सबको अस्‍त व्‍यस्‍त कर देता है। 
वाणी हतप्रभ हो जाती है ,शब्‍दों का निर्माण तथा उसकी लय गायब हो जाती है । व्‍यवहार रूखा होकर मन अशांत  होकर मन की भटटी में इर्षा  और बदले की भावना पनपने लगती है  जो स्‍वयं को तो जलाती ही है आसपास का वातावरण भी झुलसने लगता है। 
 इस तरह मनभेद और मतभेद व्‍यक्तित्‍व को अशांति  और दुखके रूप में बाट कर जीवन को अशान्‍त बना  देते है। इसलिये इंसान को  अपने विचारों के प्रति  सजग रहना अति आवश्‍यक है क्‍योंकि विचार एक बार जन्‍म लेकर सदैव जीवित रहते हैं  मतभेद उभर का मनभेद के रूप में मन के अन्‍दर प्रवेश कर जाता है।
                    चेहरा मन का दर्पण है। 
मन सांचा है जो विचारों का निर्माण करता है। नेत्र आत्‍मा के वातायन होकर मन दशा और स्थिति को बताते हैं। मतभेद में समान विचारधारा के समूहों का निर्माण होता है किन्‍तु मनभेद में समूह टूट कर एकाकी हो जाते है जो कि परिवार समाज और देश के लिए घातक हैं। आज का वर्तमान भूतकालीन विचारों की धरोहर हैं जो भविष्‍य को भी प्रभावित करते है।  
इसलिए यह आवश्‍यक है कि ऊफनते हूए विचारों को  दफनाकर  उन्‍नत और शिष्‍ट विचारों  का चिंतन किया जाए। संक्षेप में यही मुल्‍यवान  सुझाव है कि हम सब मनभेद और मतभेद की परछाई से परे रहकर संतोष करना सीख लें,भगवान के प्रति भक्ति रखें ,किसी से अपेक्षा  न रखें ,अध्‍यात्‍म और सदाचार में निष्‍ठा रखें । मनभेद और मतभेद की बागड को खतम करने का प्रयत्‍न करे तभी भेद और अभेद का अर्थ समझ में आयेगा| 
                                                                                                                     उघ्‍दव जोशी ,उज्‍जैन
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