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मूल से सूद ज्‍यादा प्‍यारा !


मूल से सूद के रूप में अतिरिक्‍त कमाई कर व्‍यक्ति अपनी भौतिकता में वृद्धी के साथ स्‍वयं को सम्‍पन्‍न बनाता है और इस आर्थिक प्रेम के कारण वह संवेदना,सहिष्‍णुता,सरलता, सेवा को मन के दरिया में डूबोकर अहंकार व स्‍वार्थ के जहाज  पर अकेला ही करता है । 
अब हम मूल के उस सूद की चर्चा करेगें जिसके व्‍दारा दादा दादी को अपनी बाल सुलभता की पतवार से पोता और नाना नानी को अपनी खिलखिलाहट से नाती नौका बन कर आनन्‍द की सैर कराते हैं ।
बेटा बेटी अपने माता पिता को उनकी यौवनावस्‍था तक हम सफर समझते है इसके बाद वे अपने हम सफर का हाथ पकड कर ऐसे गुम होते हैं कि उनके पास फिर माता पिता के लिए समय का अभाव हो जाता है। 
वे अपने को अकेला महसूस करने लगते हैं किन्‍तु परमात्‍मा किसी को भी अकेला नहीं रहने देता है । वह अपने अपने तरीके से सब पर प्रेम और आनंद की वर्षा करता है और साल दो साल में उन्‍हे पोता और नाती के रूप में सूद मिल जाता है और वे मूल को भुल कर सूद में रम जाते हैं । यही सूद उनकी आयु में वृध्दि और आनंद की सम्रध्दि करता है । बच्‍चे भी भगवान के समान भाव के भूखे होकर दादा दादी नाना नानी के पास सौ फीसदी सुरक्षित महसूस करते है। इसमें एक फायदा और हो जाता है कि सूद जहां होगा वहां मूल निश्चित रूप से होगा ही। तीन हठ याने राज हट,बाल हट और स्‍त्री हट से अपनी बात मनवाने में किसी भी सीमा तक जा सकते है। आजकल राज हट तो रही नहीं बाल हट की पूर्ति दादा नाना के पाले में चली जाती है और स्‍त्री हठ की पूर्ति पति की जिम्‍मेदारी होती है। भारतीस सभ्‍यता और संक्रति की सबसे बडी देन है कि वह बुढापे को कभी बिगडने नहीं देती है1 जबकि पश्चिम में बुढापे का जहाज डूब कर ही दम लेता है। इसीलिए बच्‍चों के बारे में कहा भी गया है्
 नन्‍हे हाथ पतवार थाम , भविष्‍य की लेगें परीक्षा । यही पथिक बन नापेगें कल की दुनिया का नक्षा ।
सूद के रूप  में बच्‍चों का महत्‍व तो दादा दादी नाना नानी ने जाना ही है किन्‍तु बहुराष्‍टीय कम्‍पनियों ने भी टेलीविजन  और अखबारों के माध्‍यम से बच्‍चों के बीच अपने उत्‍पादों की जानकारी परोस कर लाळा का माध्‍यम बना लिया है।जैसे धारा वनस्‍पति के विज्ञापन में घर से रूठा हुआ बच्‍चा घर जलेबी बनी है यह जानकर तुरन्‍त घर आ जाता है।
मूल से सूद इसीलिए ज्‍यादा प्‍यारा होता है कि वह कमाई का अतिरिक्‍त जरिया है । इसी प्रकार यही सूद बुढापे में लकडी का सहारा बन कर अपने शैशव को यौवन के पथ पर विकसित करने का वृद्धावस्‍था को सहारा बनाता है।
बुढापे को सुखी बनाना हो तो सूद के पास ज्‍यादा रहो मूल की सुनो उसे सलाह मत दो ।
उघ्‍दव जोशी उज्‍जैन

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