पेज

नित्‍य अग्निहोत्र


       यज्ञ ,दान,तप,कर्म और स्‍वाध्‍याय । यही वेदोक्‍त  सत्‍य धर्म है। आत्‍मविकास के इस साम्राज्‍य के व्‍दार आपके लिए खुले हैं । जिस सर्वोच्‍च नियन्‍ता ने आपका निर्माण किया है उसका स्‍मरण रखें । आयु सीमित है इसलिए अपनी क्षमताओं का सदुपयोग अधिक से अधिक कर लेना श्रेयस्‍कर है। वर्तमान हमारे हाथ में है ,भूतकाल बीत गया,भविष्‍य अज्ञात है । अत वर्तमान के मूल्‍यवान क्षणों को खोना ठीक नहीं ।

        पंचसाधन मार्ग  एक जीवन पध्‍दति है  जो वैदिक ज्ञान के अन्‍तर्गत मनोकायिक प्रणाली पर आधारित है। सामान्‍य मानव भी इस वेदोक्‍त प्राचीन सत्‍य को जानने और अनुभव करने के लिये स्‍वतन्‍त्र है। सत्‍यधर्म का आचरण करें और आप पायेगें की अपने आपको बेहतर बनाने का एक समर्थ साधन आपको मिल गया । आपको केवल पंचसाधन मार्ग का आचरण करना है । ज्ञान फिर स्‍वयं ही उदित होगा । सदैव अपने स्‍वयं के अनुभवों पर विश्‍वास करें । यही बौध्दिक एवं वैज्ञानिक द्रष्टिकोण है।

      ठीक सूर्योदय या सूर्यास्‍त होते ही निम्‍नलिखित मन्‍त्रों का उच्‍चारण  करके आहूतियां अग्नि में छोडें । सूयोग्‍दय के समय ये दो मन्‍त्र कहे और दो आहूतियां दें । '' सूर्याय स्‍वाहा। सूर्याय इदं न मम '' एवं दूसरा मन्‍त्र '' प्रजापतये स्‍वाहा। प्रजापतये इदं न मम ।  शाम को ठीक सूर्यास्‍त  के समय ये दो मन्‍त्र कहें और दो आहूतियां दें । '' अग्‍नये स्‍वाहा '' । अग्‍नये इदं न मम ।।'' दूसरा मन्‍त्र  '' प्रजापतये स्‍वाहा । प्रजापतये इदं न मम ।।
      आहूती देने के बाद जब तक वह जल रही हो तब तक आप  अग्निपात्र के निकट स्थिरतापूर्वक बैठे रहें। इन क्षणों में आपको अपूर्व मानसिक शांति और आनन्‍द की अनूभूति होगी । अग्निहोत्र की क्रिया में प्रतिदिन कुछ ही मिनिट खर्च होते हैं । परिवार का कोई एक ही सदस्‍य अग्निहोत्र करे बाकि सब शांतिपूर्वक बैठे रहें। इसमें प्रयुक्‍त सभी तत्‍व औषधि गुणों से युक्‍त होते हैं । ठीक सूर्योदय या सूर्यास्‍त की बेला में अग्निहोत्र करने से उसका शुभ परिणाम घर के वातावरण,प्रत्‍येक व्‍यक्ति के शरीर  मन एवं बुध्दि पर होता है। वायु मण्‍डल तुष्टि पुष्टिदायक तत्‍वों से पूरित एवं सुगधित होता है।यही अचूक समय अग्निहोत्र के लिए उचित है।
         गाय का शुध्‍द घी अनिग्‍नहोत्र के लिए अनिवार्य है। गाय के घी की एक बूंद के साथ चूटकीभर चांवलों को मिला लें ।यही अग्निहोत्र की एक आहूति है।एक बूंद गाय का घी तथा दस पन्‍द्रह  चांवलों की दो आहूतियां सुबह शाम दी जाती है।
          अग्निहोत्र के मन्‍त्र जो शुरू में बताये गये हैं । इन मन्‍त्रों के उच्‍चारण  से उत्‍पन्‍न ध्‍वनिकंपनों का वातावरण तथा मन पर सुक्ष्‍म प्रभाव  होता है जो सूखद एवं शांतिदायक होता है। अग्निहोत्र की आहुति देने के बाद कुण्‍ड की अग्नि के साथ छेडछाड  न करें उसे अपने आप ठण्‍डी होने दें ।अग्निहोत्र के पात्र में शेष बची ठण्‍डी राख अत्‍यन्‍त उपयोगी है । इसका उपयोग औषधि निर्माण तथा पेड पौधों के खाद के रूप में किया जाता है।
      वेदोक्‍त प्राण  उर्जा विज्ञान से संबंधित अग्निहोत्र की क्रति प्रक्रति की एक लय पर आधारित है ।अग्निहोत्र का नियमित आचरण पर्यावरण प्रदूषण से रक्षा करता है  । यह प्रदूषण जनित रोगों  एवं तनाव  से आचरण कर्ता को मूक्‍त रखता है।
      आज भारत के अलावा कई यूरोपीय एवं एशियाई देशों के हजारों  परिवार अग्निहोत्र का लाभ ले रहे हैं।
एक यूरोपीय बुध्दिजीवी  के इस दावे पर गौर कीजिए। आज के विज्ञान के युग में मनुष्‍य ने अपनी बुध्दि के बल पर औघोगिकरण कर चरम सीमा प्राप्‍त कर ली है। किन्‍तु इसी के साथ प्रदूषण रूपी महा भयंकर भस्‍मासुर भी निर्माण कर लिया है। ऐसी स्थित में अग्निहोत्र ही एक उपाय है जो इस दैत्‍य से छुटकारा दिला सकता है। यह दो मिनिट का छोटा सा यज्ञ बडा फायदा करता है। संकलित
   


इसका कोई भी प्रकाशन समाज हित में किया जा रहा हे|सभी समाज जनों से सुझाव/सहायता की अपेक्षा हे|