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अग्निहोत्र चिकित्‍सा

     रोगाणु तो हर जगह है। हर सांस के साथ अरबों खरबों जीवाणु हमारी देह में पहुंच रहे हैं। जब तक हमारी देह के रूधिर में मौजूद प्रतिरोधी कोशिकाऐं इन रोगाणुओं से लडने में समर्थ हें, तब तक हमारा बाल भी बांका नहीं होता। जहां यह रक्षा कवच टूटा की फिर कभी खांसी, काम, म‍लेरिया, पीलिया आदि सैकडों रोग आने लगते है। मनुष्‍य के लिये यह महत्‍वपूर्ण नहीं की वह कितने लम्‍बे समय तक जीवित रहे ।
महत्‍वपूर्ण यह है कि वह कितनी अच्‍छी तरह जीवित रहता है। आधुनिक चिकित्‍सा पध्‍दति और उपचार से मनुष्‍य की औसत आयु तो बढी है, किन्‍तु साथ ही उसका शरीर रोगों का घरी भी हो गया है। मनुष्‍य को केवल स्‍वास्‍थ्‍य ही नहीं चाहिए बल्कि रोग प्रतिरोधक शक्ति भी चाहिए जिसे जीवनी शक्ति कहते हैं।
    प्राण शक्ति जीवन का दूसरा नाम है। शरीर अपने सारे कामों के लिए इसी शक्ति पर निर्भर है। यह शक्ति अथवा प्राण  आकाश में व्‍याप्‍त है। धूप, हवा एवं खाध्‍य पदार्थो में यह प्राण प्रवाहित होता रहता है। जब हम उनका उपयोग करते हैं तो हमारे शरीर का कण कण इसे पीता अथवा सोखता है। वैज्ञानिकों के कथनानुसार प्राण को प्रबल बनाने में सहायक धूप,खाध्‍य पदार्थ,जल ,हवा प्रदूषित हो चुके हैं जिसके कारण शरीर में कई असाध्‍य रोग पैदा हो रहे है्ं।
   वायु प्रदुषण  मनुष्‍य जीवन को अनेक पहलुओं से दबाता जा रहा है। वायु प्रदुषण मानव असित्‍व के लिऐ सबसे बडा खतरा बन गया है। मन और प्राण एक ही सिक्‍के के दो पहलु हैं। वायुमण्‍डल में हुआ कोई भी परिवर्तन तत्‍काल प्राण पर प्रभाव करता है । मन पर भी इसका प्रभाव पडता है। शारीरिक व्‍याधियों के साथ  सााि मनोरोगों में हुई अकल्‍पनीय व्रध्दि चिकित्‍सकों के लिये चिन्‍तनीय बन गई है। वैज्ञानिक भी पर्यावरण प्रदूषण की भयानकता से हतप्रभ हैं। इसके लिए अग्निहोत्र प्रदूषण को दूर करने का सुलभ विज्ञान तो है ही ,प्रदुषणजन्‍य मनोकायिक विकारों को खत्‍म करने वाली एक मात्र प्रभावी चिकित्‍सा प्रणाली भी है।
    उध्योगीकरण की दौड ने जो किया है, और अब भी जो किया जा रहा है, वह भूमि पर अत्‍याचार तथा प्राणवायु का नाश, कीटनाशक औषधियों व्‍दारा पौधों के सुकुमार जीवन का विनाश, रासायनिक खादों आदि के व्‍दारा मानव प्राणी को प्रदूषित करने के अलावा और कुछ भी नहीं है। होम चिकित्‍सा ही एकमात्र पध्‍दति है जो
मन तथा शरीर की प्रदूषण से रक्षा करती है।
    जर्मनी के विख्‍यात एक वैज्ञानिक  लिखते हैं कि '' स्‍वयं अग्निहोत्र का परीक्षण करने के बाद मैने पाया है कि सचमुच अग्निहोत्र आचरण व्‍दारा मानों आपके हाथों में प्रदूषण के विरूध्‍द एक अदभूत शस्‍त्र आ जाता है ''               अग्निहोत्र  का नित्‍य आचरण निश्चित रूप से प्रदूषण जन्‍य समस्‍त विकारों  के विरूध्‍द प्रभावी अस्‍त्र है किन्‍तु अग्निहोत्र होने के पश्‍चात अग्निपात्र में शेष बची ठण्‍डी राख  के गूणों ने तो चिकित्‍सा जगत में आश्‍चर्यजनक  रूप से हलचल पैदा कर दी है । इस राख के औषधि गुणों की खोज  जर्मनी में हूई है। अमेरिका के एक समाचार पत्र संवाददाता  के साथ जर्मन फार्मासिस्‍ट श्रीमती मोनिका येले के वार्तालाप का अंश नीचे दिया जा रहा है जिन्‍होने अग्निहोत्र भस्‍म का औषधि प्रभाव परखा और मरीजों पर पहले पहल आजमाया था।
'' अग्निहोत्र भस्‍म की शक्ति का अनुभव हमें अत्‍यन्‍त विचित्र रूप से हुआ। हमारे बगीचे में हम रोज अग्निहोत्र की ठण्‍डी राख  फेंक दिया करते थे।  जहां राख डालते थे केवल उस जगह के पेड पौधो में आश्‍चर्यजनक विकास हो रहा था । उनमें लगे कीटक नष्‍ट होने लगे थे । आगे अधिक अध्‍ययन के बाद हमें ज्ञात हुआ कि यह भस्‍म सूजन  पर अत्‍यन्‍त लाभदायक है।
     उक्‍त फार्मासिस्‍ट  श्रीमती मोनिका येले तथा उनके पति ने अग्निहोत्र भस्‍म से बनी टेबलेटस,कैप्‍सूल्‍स ,पेस्‍ट ,आई डाप्‍स आदि व्‍दारा विभिन्‍न रोगों पर उपचार प्रारम्‍भ किया । उन्‍होने जिन रोगियों  पर अग्निहोत्र भस्‍म चिकित्‍सा से उपचार किया उन सभी ने स्‍वहस्‍ताक्षरों से अपने स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के अनुभव लिखकर दिये । अनेक वर्षो से ठीक न होने वाले घाव ,पुराने पेट दर्द की शिकायत ठीक हुई । चर्म रोगों पर तो इसका चमत्‍कारिक प्रभाव होता है। श्रीमती येले का कहना है कि '' अग्निहोत्र भस्‍म में इतनी शक्ति है तो कल्‍पना कीजिए कि अग्निहोत्र की शक्ति कितनी अधिक होगी । केवल अपने घर में नित्‍य अग्निहोत्र करना ही सबसे बडी औषधि है।
     अग्निहोत्र के निर्माण से होने वाले वातावरण एवं भस्‍म पर सभी जगह अध्‍ययन एवं खोज कार्य हो रहा है। 
संकलित 
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