यात्रा रोहतांग दर्रा - वर्तमान में युवा पर्यटको का रोमांच स्थल वैदिक ऋषियों की तपस्यास्थली ।

यात्रा रोहतांग दर्रा - वर्तमान में युवा पर्यटको का रोमांच स्थल वैदिक ऋषियों की तपस्यास्थली।
      मणिकरण से वापस कुल्लू रात्री में पहुँच कर अगले दिन 22/05/13 को रोहितांग पास जाने के लिए प्रात: मनाली की ओर चल पड़े।  
रोहतांग दर्रा हिमालय का एक प्रमुख दर्रा हैं। भारत देश के हिमाचल प्रदेश में 13,050 फीट/समुद्री तल से    4111 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। 'रोहतांग दर्रा 'हिमालय का एक प्रमुख दर्रा है। रोहतांग का पुराना नाम है- 'भृगु-तुंग'! यह दर्रा मौसम में अचानक अत्यधिक बदलावों के कारण भी जाना जाता है। उत्तर में मनाली, दक्षिण में कुल्लू शहर से 51 किलोमीटर दूर यह स्थान मनाली-लेह [लगभग 500 km दूर] के मुख्यमार्ग में पड़ता है। पूरा वर्ष यहां बर्फ की चादर बिछी रहती है। यहाँ से हिमालय श्रृंखला के पर्वतों का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। लिए मनाली या कुल्लू से आप जीप ले सकते हैं या अपनी गाड़ी में भी वहां जा सकते हैं। हमने आने जाने के लिए मनाली से 8 सीटर बंद जीप 16,000/- सोलह हजार रु मेँ की    थी। आप अपनी गाड़ी छोटी गाड़ी/ बंद जीप से में भी वहां जा सकते हैं। बड़ी बस वहाँ नहीं पहुच पाती। स्थानीय 
           लोगों के लिए चलने वाली एक दो बस हमको जरूर दिखी पर उनके कारण ही हमे पहुचने में 5-6 घंटे का जाम का सामना करना पड़ा। बड़ी बस होने से वह एक ओर ऊंची पहाड़ी चट्टानें दूसरी ओर सेंकड़ों फिट की खाई ओर घुमावदार सिंगल रास्ते पर बाहर निकली चट्टानों के कारण बस को लंबे टर्न की जरूरत होने से जाम लगता रहा। हजारों की संख्या में चलती,रोहितांग जाती ओर वापिस आती जीपों, टेक्सियों. कतारों ओर पार्किंग न होने से अधिकांश समय जाम में ही निकला।          
 रोहतांग पास जाने के रास्ते में देखने के लिए विशेष स्थल है, ब्यास नदी का उदगम और वेद ब्यास ऋषि का आश्रम है। इसी दर्रे से ब्यास नदी का उदगम हुआ है। ब्यास कुंड ब्यास नदी के उदगम का स्थान है, वहां के कुंड के पानी का स्वाद अनूठा बताया है। शायद अमृत का स्वाद ऐसा ही होता होगा? यह कुंड वेद ब्यास ऋषि के मंदिर में स्थित है.'ब्यास नदी 'कुल्लू - मनाली को ही नहीं, वरन फिरोजपुर में 'हरी का पटन की नदी में मिलकर पंजाब और सतलुज नदी में मिल कर पाकिस्तान तक की ज़मीन को भी हरा भरा करती है। फिर अरब सागर में मिल जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 460 किलोमीटर है. कहते हैं, लाहोल-स्पीती और कुल्लू क्षेत्र 
          आपस में अलग थे तब इन्हें जोड़ने के लिए स्थानीय लोगों ने यहाँ एक मार्ग बनाने के लिए अपने इष्ट देव भगवान शिव की आराधना की तब भगवान शिव ने भृगु तुंग पर्वत को अपने त्रिशूल से काट कर यह भृगु -तुंग मार्ग यानि रोहतांग पास बनाया। इस दर्रे के दक्षिण में व्यास नदी का उदगम कुंड बना हुआ है। यहीं पर हिन्दू ग्रंथ महाभारत लिखने वाले महर्षि वेद व्यास जी ने तपस्या की थी। इसी लिए इस स्थान पर व्यास मंदिर बना हुआ है. सभी धाराएँ मनाली से १० किलोमीटर दूर पलाचन गाँव में मिल जाती हैं और ब्यास नदी बनाती हैं.पुराणों मे इस नदी को 'अर्जीकी' नाम से जाना गया था। महाभारत के बाद इस नदी का नाम ब्यास नदी पड़ा। इस पवित्र नदी की सुन्दरता ने न कई ऋषि मुनियों, ऋषि वशिष्ठ, मनु, नारद, विश्वामित्र, पाराशर, कण्व, परशुराम, व्यास जी आदि. इन में से कई ऋषियों के मदिर यहाँ अब भी देखने को मिलते हैं।
       
रोहितांग की उचाई से बादल इन पर्वतों से नीचे दिखाई देते हैं। यहाँ ऐसा नजारा दिखता है, जो पृथ्वी पर बिरले ही स्थानों पर देखने को मिले। रोहतांग दर्रे में पैरागलाईडिन्ग (एक पाइलट के साथ कोई भी कर सकता है) स्कीइंग, और ट्रेकिंग, करने हर साल यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक इन आकर्षक नजारों का लुत्फ लेने और साहसिक खेल खेलने आते हैं। रोहतांग-दर्रा जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर एक छोटा सा दर्शनीय गांव है, वशिष्ठ आश्रम (हम वापिस लोटते मेँ यहाँ रुके थे) यहाँ भी गरम पानी के कुंड हें। रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 12 कि.मी. दूर कोठी एक सुंदर दृश्यावली वाला स्थान है। हर साल यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक इन आकर्षक नजारों का लुत्फ लेने और साहसिक खेल खेलने आते हैं। बर्फ पर चलने वाली बड़े पहियों वाली कार, याक की सवारी आदि का मजा बर्फ मेँ लिया जा सकता है। धूप से बचने का कोई स्थान वहाँ नहीं है यदि मोसम खुला हुआ ओर धूप हुई तो त्वचा के झुलसने का खतरा भी होता है।
  मौसम की समस्या यहा हमेशा रहती है कभी भी बर्फ के कारण इस मार्ग को बंद हो जाता है, [अक्सर नवम्बर से अप्रैल तक] , तब इस जिले में रहने वाले लगभग ३० हज़ार निवासी दुनिया से कट जाते हैं।
   रोहतांग पास जाने के लिए मनाली-रोहतांग रास्ते में से सर्दी में पहनने वाले कोट और जूते किराये पर मिलते है क्योंकि यदि वहां बर्फ है तो आप को बिना इनके वहां घूमने में परेशानी आएगी। मोसम साफ था, अत: हमने नहीं लिए। पर आनंद भी इसी लिए कम आया। बर्फ बरसते समय ही इस प्रकार के स्थानो पर मजा आनद बड जाता है पर पैरागलाईडिन्ग आदि रोमांच भी नहीं मिलता साथ ही साथ ही पहाड़ गिरने रास्ता जाम होने जैसी समस्या भी अधिक कष्ट देती है। याद रखे की ऊपर खाने ओर पीने के   
 लिए पानी सहित दुगने दामो पर मिलती हें, क्योकि वहाँ तक उनको पहुचना महंगा पड़ता है। अधिक अच्छा है, की पर्याप्त मात्रा मेँ आवश्यक वस्तु साथ ले जाएँ, ओर प्रात: जल्दी पहुंचे इससे वापिस आने वाले कम मिलने से जाम नहीं मिलेगा।
अगले यात्रा पड़ाव के रूप में बैजनाथ, चामुंडा देवी दर्शन कर ज्वालाजी में विश्राम।
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------

इसका कोई भी प्रकाशन समाज हित में किया जा रहा है| सभी समाज जनों से सुझाव/सहायता की अपेक्षा है |