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नव दम्‍पत्तियों के चूर चूर होते सपने।

तलाक पर लगाओ लाक, दाम्‍पत्‍य जीवन न करो खाक
भावों के स्‍पन्‍दन से गणनायक,प्रथम आपका वन्‍दन है। 
मंगल कार्य विवाह का रिध्दिसिध्‍दी संग आमन्‍त्रण है॥
    16 संस्‍कारों के कल्‍पतरू से विवाह संस्‍कार की उडान भरने वाले नव दम्‍पत्तियों के भावी जीवन को सुखी देखने एवं विवाह कार्य निर्विध्‍न रूप से सम्‍पन्‍न हो इसके लिए माता पिता, सगे संबंधी, गणनायक गजानन को रिध्‍दी सिध्‍दी सहित आने का प्रथम निमन्‍त्रण पत्रिका के माध्‍यम से देते हैं।
   जीवन साथी के चयन में युवा युवति की आपसी की पसन्‍द और रजामन्‍दी का ग्रीन सिगनल मिलने के बाद, परिवार जनों व्‍दारा वैवाहिक संबंध तय करने की प्रकिया सम्‍पन्‍न कर दी जाती है। दूल्‍हे का दुल्‍हन के घर जाना, सप्‍तपदी, सात वचन को निभाना, फिर पाणिग्रहण के व्‍दारा विवाह के पवित्र बंधन में बंध जाना और दुल्‍हन को लेकर वापस घर लौट आना। यह सामाजिक परम्‍परा की एक पवित्र धरोहर है। ममता, मौज, मस्‍ती, लगाव, अमूल्‍य समय, अर्थ की सार्थकता, परिवार और स्‍नेहीजनों के आशीर्वाद जैसे कई अनमोल रत्‍न जडे जाते है, तब जाकर विवाह की सारी विधि सम्‍पन्‍न होती है, जबकि लव मेरिज, कोर्टमेरिज जैसे संबंधों में केवल दो के बीच कोई तीसरे की भूमिका भी नहीं होती है । 
   सहयोग और समन्‍वय के बीच होने वाले विवाह के बाद, ऐसे कौन से कारण पैदा हो जाते हैं जिनकी वजह से नव दम्‍पत्तियों की हल्‍दी का रंग उतरने के पहले ही लगाव अलगाव में और संजोये गये सुनहरे सपने बिखराव के कगार पर आ जाते हैं। स्रजन विसर्जन में बदलने लगता है। ऐसे वक्‍त सारे सगे संबंधीयों के स्‍वर मौन हो जाते है,आखिर क्‍यों?
   शादियों के रस्‍मो रिवाज वही, जीवन भर साथ निभाने की कसमें वही फिर क्‍यों ऐसी स्थिति उत्‍पन्‍न होने लगी है जिनके कारण सुख का रास्‍ता छोडकर कर विरह और बिखराव के रास्‍ते को नव दम्‍पति पकड रहे हैं ।
सपनों के बिखराव के कारण ..
   माता पिता और मध्‍यस्‍थ की भूमिका वैवाहिक संबंधों को जोडने में आजकल विलुप्‍त सी होती जा रही है। वे तो केवल रस्‍मों की पूर्ति तक सीमित होते जा रहे हैं। जीवन साथी के पसन्‍दगी की सारी जिम्‍मेदारी युवा युवतियों के कन्‍धों पर आकर उनकी आपसी रजामन्‍दी के बाद ही विवाह के कदम आगे बढने लगे हैं। युवा युवतियों की चन्‍द घन्‍टों की मुलाकात, नाश्‍ते की प्‍लेट और एक कप टी में जीवन साथी का चयन हो रहा है। युवा युवति की आपसी चर्चा पारिवारिक जिम्‍मेदारियों के निर्वहन के स्‍थान पर दोनों की जोडी के जमने और भविष्‍य के सपनों को गढने में ही सीमित हो जाती है। जीवन प्रबन्‍धन, पारिवारिक संगठन, सेवा, आदर और आत्‍मीयता के स्‍थान पर उनका सोंच वैभव, विलासिता, हम दो और हमारा एक बंगला, जैसे मुददो की चर्चा तक सीमित रहता है। उच्‍च सोसायटी के लायक पत्‍नी है या नहीं, यह भी महत्‍वपूर्ण मुददा सामने रहता है, फिर ऐसे उथले बिन्‍दुओ पर खडा होने वाला सपनों का महल भरभरा कर गिरने में देर नहीं करता है ।
    विवाह के बाद वैचारिक भिन्‍नता, आपस में विश्‍वास की कमी ,एक दूसरे की इच्‍छाओं की पूर्ति न होना, शान शौकत का दिखावा, बहू का परिवार के बीच रहने की असुविधा महसूस करना, लुक खराब न हो इसके लिए बच्‍चों से दूरी,पुराने संबंध, मोबाईल और इन्‍टरनेट से चेंटिग जैसे अनेक कारण अलगाव की ढाल बन जाते है। दूर शहरों में ऊंची नौकरी के कारण ससुराल के परिवार में दूध में शकर जैसे घुल मिल नहीं सकने और पानी के उपर तैरते तैल की भाति अपने को परिवार से प्रथक ही समझना भी एक कारण हैं। संयम, सहनशीलता की कमी ,परिवार जनों की भूमिका, आपसी संवाद की कमी जैसे अनेक कारण इसके पीछे अपनी भूतहा परछाई फैला रहे हैं। कई छोटे बडे कारण नव दम्‍पति के बीच अलगाव, तलाक और अकेलेपन की स्थिति पैदा कर रहे हैं। ऐसी विकट परिस्थित उत्‍पन्‍न करने के लिए युवा दम्‍पति की आपसी कडवाहट ही इसकी जिम्‍मेदार है।किसी एक पक्ष को इसके लिए दोषारोपित नहीं किया जा सकता। 
    तूफान कभी भी एकाएक नहीं आता, आने से पहले उसकी आहट अवश्‍य होती है। नव दम्‍पत्तियों के बीच भी छोटी छोटी खटपट के चलते और उसको नजर-अन्‍दाज करते करते वह जब विकराल रूप ले लेती है, तो परिवार और दाम्‍पत्‍य जीवन में विस्‍फोटक स्थिति बन जाती है। पानी सर से उपर बहने लगता है तो, ऐसी परिस्थिती में बचाव के तरीके काम नहीं आते और दो पंछियों के व्‍दारा निर्मित घोंसले का तिनका तिनका बिखरने लग जाता है। यही कारण है कि आज तलाक के सर्वा‍धिक प्रकरण सामने आ रहे हैं। पिछले दो साल में 6 हजार से ज्‍यादा दम्‍पत्ति जुदा हो गये। कई बच्‍चे मां बाप से दूर होकर किसकी जिम्‍मेदारी में जायेगें इसकी बाट जोह रहे हैं। तलाक लेकर दूसरा विवाह करना पति के लिए दूभर स्थिति पैदा कर सकता है। दूसरी पत्नि का स्‍वभाव यदि पहले पत्नि के स्‍वभाव से और अधिक कष्‍ट दायक हुआ तो जीना तो दूभर होगा ही, उसके पूर्व की पत्नि के में जो अच्‍छाईयां महसूस होती थी वे जीवन पर सालती रहेगी।
    अलगाव, तलाक और विसर्जन की स्थिति उत्‍पन्‍न न हो इसके लिए पति पत्नि के बीच छोटी छोटी बातों पर होने वाले कलह को प्रारम्‍भ में ही दफनाने की आवश्‍यकता है। समन्‍वय और सहकार के साथ परिवार की गाडी को चलाने की जिम्‍मेदारी को समझना होगा। यदि बडा विवाद हो और परिवारों या दम्‍पत्तियों के बीच अलगाव की स्थिति को लगाव में बदलने का यदि प्रयास प्रारम्‍भ होता है, तो सबसे पहले पिछली बातों को बार बार दोहरा कर खुद को साफ सुथरा बताने और दूसरे पक्ष पर दोषारोपण करने से दूरी बनाना होगी और अलगाव को लगाव में बदलने के लिये जो भी सहमती बनती है, उसको निभाने की जिम्‍मेदारी लेना पडेगी तभी विवादों से मुक्ति मिल कर दाम्‍पत्‍य सुख प्राप्‍त हो सकेगा। इसके लिए परिवार के अनुभवी सदस्‍यों जिनमें विवाद को निपटाने का भाव हो को ही बैठ कर समस्‍याओं का होले होले हल करना चाहिए। अलगाव को लगाव में बदलने की सबसे बडी जिम्‍मेदारी दो नव दम्‍पत्तियों और पति पत्नियों की भी है जो अपनी पसन्‍द के कारण ही जीवन साथी बने। परिवार में ही समस्‍या का समाधान होना चाहिए क्‍योंकि पुलिस, कोर्ट, कचहरी में समय और पैसों की बरबादी के साथ, वर्षो बीत जाते है, और जिन्‍दगी तबाह हो जाती है। 
    अनेक अवसरों पर बेटी के परिवारजन भी इसके लिए जिम्‍मेदार होते हैं, जो ताव ताव में बेटी को उसके पति सुख से वंचित कर अपने घर ले जाते है, किन्‍तु पीहर में बेटी पर अकेलेपन की जो मार पडती है तब वह अन्‍दर ही अन्‍दर घुटती रहती है इसका दर्द भी वही जानती है। और बाद में पछताती भी है किन्‍तु फिर पछताये क्‍या होत है जब चिडिया चुग गई खेत। इसलिऐ पीहर वालों को अपने अहं की तिलान्‍जली देकर जैसी भी स्थिति हो बेटी को ससुराल में ही रहने की समझाईश देना चाहीए।
     विसर्जन की ओर जा रहे वातावरण को स्रजन के वातावरण में बदलने का प्रयास करना चाहिए। तलाक पर लाक लगाकर दाम्‍पत्‍य जीवन को खाक होने से बचाना होगा। प्रथक होकर जिन्‍दगी को नर्क न बनाओ। इसके लिऐ धैर्य और जिम्‍मेदारी रखना अति आवश्‍यक है। रिश्तों के अलगाव के नए समीकरणों को पुराने फामूलों से हल नहीं किया जा सकता इसके लिए नए समीकरणों को ही चुन कर समाधान का फार्मूला बनाना होगा।
वैवाहिक जीवन में तूफान नहीं तेज बयार आती है। 
समझदारी  से काम  लेकर  चलो तो बहार आती है।
आपकी जिंदगी, आपकी समस्‍या, दूसरों से आशा क्‍यों।
जिन्‍दगी को जिन्‍दादिली से जियो, लाओ निराशा क्‍यों ।
उद्धव जोशी
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