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नदी और समुद्र में श्रेष्ठ कोन?

नदी और समुद्र 
एक दिन नदी से समुद्र ने पूछा - मेरे पास कोई नहीं आता और न कोई आदर करता है ,पर तुम्हें तो लोग प्यार करते है , इसका क्या कारण है ?
नदी ने कहा -- आप केवल लेना ही जानते है, जो मिलता है, उसे जमा करते हैं, पर में जो इस हाथ पाती हूँ, उसे उस हाथ आगे बढ़ा
देती हूँ, लोग मुझसे जो पाते है, उसी के बदले में तो प्यार देते है। 

जो केवल लेना ही लेना जानते हैं, वे उपेक्षित ही रह जाते है, जिन्हें देना भी आता है वे सबके प्रिय बन जाते हैं।

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तात्कालिक लाभ के लिए कुछ बाँट देने से तात्कालिक प्रसिद्धि ही पाई जा सकती है यह प्रसिद्धि कागज की नाव की तरह जल्दी ही डूब जाती है ।

"नदी कह रही थी की में समुद्र से अधिक श्रेष्ठ हूँ क्योकि में जो प्राप्त करती हूँ वह देकर आगे बढ़ जाती हूँ। समुद्र सब कुछ समा लेता है। एक ऋषि ने जो नदी ओर समुद्र की यह बात सुन रहे थे, बोले 

समुद्र तुम नहीं जानते की सबसे अधिक श्रेष्ठ तुम हो, क्योकि तुम्हारे द्वारा दिया भाप बन कर उढ़ा जल ही नदियों में गिरता है। सभी खराबियों/ खारेपन को तुम रोक लेते हो, ओर कभी कुछ कहते भी नहीं। जो अपनी केवल अच्छाइयाँ देकर भी शांत रहता है, कोई घमंड नहीं करता उससे श्रेष्ठ कोई हो नहीं सकता।

तत्काल देकर कुछ समय के लिए कोई श्रेष्ठ ओर प्रिय बन सकता है, पर देर सबेर सभी इस बात को समझ ही जाते हें।
इसी लिए नदियां सूख जातीं हें समुद्र हमेशा भरा रहता है।
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इसका प्रकाशन समाज हित में किया जा रहा है।