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ब्राह्मण समाज विषयक - क्या आप जानते हें?-

  • ब्राह्मण समाज विषयक 
  •  क्या सभी ब्राह्मण ऋषियों की संतान हें?
 सभी ब्राह्मण मूल रूप से सात ऋषियों अंगिरा, भृगु, अत्रि, कश्यप, वशिष्ठ, अगस्त्य, तथा कुशिक में   से किसी की न किसी की संतान रहें हें। हम किस ऋषि की संतान थे!  इसका ज्ञान  गोत्रादि विषयक जानकारी से मिलता है।
  • औदीच्य ब्राह्मण किन्हे कहते हें? 
  • उत्तर भारत के सभी ब्राह्मणों को उदीच्य या औदीच्य ब्राह्मण कहा जाता रहा है। इस बात का प्रमाण औदीच्‍य ब्राहमण संन्‍दर्भ इण्डिया आफिस लायब्रेरी लन्‍दन से प्रकाशित सूची ग्रन्‍थो में मिलता है।
  • गोत्र ,प्रवर, कुलदेवी आदि क्या हें?
  • हर मनुष्य अपने भूत काल के बारे में जानना चाहता है, इसी कारण वह अपने आदि पुरुषों का गोरव मय इतिहास [या भूत काल] के बारे में जानने में भी रुचि लेता है। अपने वंश के ज्ञान से अपना पूर्व इतिहास जाना जा सकता हे। इसका ज्ञान गोत्रा-वली जानने से होता है। वर्तमान समाज के हर आयु वर्ग विशेषकर आधुनिक शिक्षा प्राप्त नवयुवको को इस बारे में ओर अपने गोत्र, शाखा सूत्र, वंश, अवटंक, आदि के बारे में कम जानकारी है। जब भी विवाह, यज्ञ, मृत्यु संस्कार आदि कर्म कांड के समय जब इसके बारे में पूछा जाता है। गया[बिहार] आदि तीर्थ स्थानो पर "पंडा जी" के पास उपलब्ध खातों में उनके यजमानो की पुरानी कई पीढ़ियों का इतिहास मिल जाता हे। जब भी कोई व्यक्ति श्राद्ध या पिण्ड-दान हेतु वहाँ जाता है, तो वह उपदेत होता रहता है। हमको चाहिए की हम अपनेगोत्र ,प्रवर, कुलदेवी आदि के बारे में जाने।
  • अवटंक या सर नेम क्या होता है?
  • आदि गुरु शंकराचार्य जी ने ब्राह्मणो की पहिचान हेतु नामकरण किया था। जैसे पद के अनुसार जैसे व्यास, स्थान भेद से सरूयूपारीय, कान्यकुब्ज आदि। ये अबंटक या सरनेम या पहचान का नाम हुए थे। सभी के अवटंक उनके कार्य, निवास, आदि जेसे ज्योतिषी- जोशी, तीन वेद अध्यायी -त्रिवेदी, शासन कर्ता- ठाकुर, आदि आदि के अनुसार बने। माना जाता है, की आदि गुरु शंकराचार्य जी के काल से ब्राह्मणो की संख्या वृद्धी के कारण पहचान में आसानी हेतु अवटंक प्रचलन में आए, तदनुसार ही कन्नौज वाले कान्यकुब्ज या सरयू नदी के किनारे रहने वाले सरयूपारीय आदि कहलाए।
  • सहस्र औदीच्य ब्राह्मण केसे हुए ओर कोन हें? 
  • सहस्र औदीच्य ब्राह्मण का इतिहास एक हजार वर्ष पुराना है। सिद्धपुर पाटन के महाराजा मूलराज के निमंत्रण पर, एक हजार सेतीस ब्राह्मण जिनमें,-[ जमदग्नि , वत्सस , भार्गव (भृगु ),द्रोण , दालभ्य , मंडव्य , मौनाश , गंगायण , शंकृति , पौलात्स्य , वशिष्ठ , उपमन्यु , 100 च्यवन आश्रम, कुल उद्वाहक , पाराशर, लौध्क्षी , कश्यप: नदियों गंगा एवं यमुना सिहोरे और सिद्धपुर क्षेत्रों से 105 विमान , 100 सरयू नदी दो भारद्वाज कौडिन्य , गर्ग, विश्वामित्र , 100 कान्यकुब्ज सौ कौशिक, इन्द्रकौशिक , शंताताप , अत्री, 100 हरिद्वार क्षेत्र और औदालक , क्रुश्नात्री , श्वेतात्री , चंद्रत्री 100 नेमिषाराण्य, अत्रिकाषिक सत्तर, गौतम, औताथ्य , कृत्सस , आंगिराश, 200 विमानों कुरुक्षेत्र चार शांडिल्य, गौभिल , पिप्लाद , अगत्स्य , 132 सिद्धपुर पाटन पर पहुंचने पर औदिच्यों में पुष्कर क्षेत्र (अगत्स्य , महेंद्र)] गांवों से आए थे, उनमें से 1000 ने मूलराज का आतिथ्य स्वीकार कर यज्ञ किया था, क्योंकि वे 1000 की संख्या में थे, इसी कारण वे सहस्र औदिच्य ब्राह्मणों के रूप में जाने जाते है।
  •  अखिल भारतीय औदीच्य महासभा की स्थापना कब ओर कहाँ हुई?
  •  अखिल भारतीय औदीच्य महासभा की स्थापना सन् 1903 में मथुरा में हुई थी
  •  गोविंद माधव कोन हें
  • सहस्र औदीच्य ब्राह्मणो के इष्ट देव भगवान गोविंद माधव हें। सिद्ध पुर में स्थापित मूर्तियाँ मोर्यकाल की हें। 
  • सहस्र औदीच्य ब्राह्मणो की पत्र पत्रिकायें कितनी हें,ओर कब से प्रकाशित हो रही हें? 
  • सहस्र औदीच्य ब्राह्मणो की पत्र पत्रिकाओं का इतिहास भी सो वर्ष से भी अधिक पुराना है। करांची (पाकिस्तान) सहित भारत के कई शहरो से लगभग 50 से अधिक पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशन की जानकारी मिली है।
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