दूल्‍हा दूल्‍हन पार्लर मे- आशीर्वाद दाता इंतजार में ।

सौदर्य खुद ब खुद निखरता है , सुन्‍दरता बन तन पर बिखरता है ।
ईश्‍वर का यह अनमोल गिफट, परवरिश करो खुद ही संवरता है।।
                 सुंदरता ईश्‍वर की और से भेंट की गई अनमोल सौगात है जो शिशु के रूप में मां की गोद को खुशियों से भर देती है । दुनिया में अपने शिशु से बढकर मां के लिए और कोई नहीं होता है। यही बालक जब बडा होकर यौवन की दहलीज पर अपने कदम रखता है तब प्रक्रति का सारा सौंदर्य उसमें समा जाता है। सौंदर्य का यही राज बेटियों के यौवन पर भी बरसने लगता है और बसंत की मादकता के रूप में छलकने लगता है।
                 स्‍वविकसित सुंदरता का कोई सानी नहीं। सलोनी, सांवरी सुन्‍दरता  बरबस सबको अपनी और आकर्षित करने लगती है। परिवार के लोग भी सुन्‍दरता के लिए उससे बढकर सुन्‍दरता को ढुढने चल पडते हैं ताकि निगोडी जोडी देखने वालों का मन पहली नजर में ही मोह ले। यह सब सहज और सरल स्‍वरूप के सौंदर्य का ही कमाल होता है जो उनके मन में बसी सुन्‍दरता एक दूसरे को आकर्षित कर लेती है । आत्‍मविश्‍वास की यही आन्‍तरिक सुन्‍दरता ईश्‍वर की देन होती है । बस यही प्रक्रतिदत्‍त सुन्‍दरता वैवाहिक बन्‍धन में बंधते समय ब्‍यूटीपार्लरीय सुन्‍दरता के स्‍वांग में बदलने लगती है और यही से सुन्‍दरता विक्रत होने लगती है ।
                    सासुजी व्‍दारा दरवाजे से दूल्‍हे को बडे प्रेम से लग्‍न मण्‍डप में लाया जाकर दुल्‍हन का भविष्‍य दूल्‍हे के हाथ में अक्षतों एवं मंगलाष्‍टकों की सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति के साथ सौंप दिया जाता है । इसके बाद आशीर्वाद समारोह का समय प्रारम्‍भ हो जाता है। दूल्‍हा दूल्‍हन के परिवार वालों के लिए यही सबसे अनमोल समय होता है जब आगन्‍तुक अति‍थि दोनों की जोडी को देख कर उनकी सुन्‍दरता का प्रस्‍तुतीकरण  करें किन्‍तु
यहीं से निराशा के बादल छाने लगते हैं।  दूल्‍हा दूल्‍हन लग्‍न होने के  तत्‍काल बाद ब्‍यूटी पार्लरों की और रूख कर जाते है और समय अपनी रप्‍तार से निकलने लगता है । आशीर्वाद दाता दूल्‍हा दूल्‍हन का रास्‍ता देखते देखते परेशान हो उठता है तब वह अपना आशीर्वाद  टेबल पर रख कर जाने लगता है । उनकी देरी के कारण मंच की सजावट फीकी ,कुर्सीयां हताश ,आशीर्वाद दाता निराश और फोटोग्राफर बोर होने लगते  है । सारा गणित ही गडबडा जाता है। माता पिता को अपने बेटे बहू की जोडी को दिखाने की आस अधूरी रह जाती है । यहां सबके मन में बार बार एक ही प्रश्‍न उत्‍पन्‍न होने लगता है कि जब दूल्‍हा दूल्‍हन को शादी से पहले सबने बिना ब्‍यूटी पार्लर की सुन्‍दरता के सहज और आकर्षक रूप में देख कर पसन्‍द किया तो अब उन्‍हे ब्‍यूटी पार्लर जाकर सजने की आवश्‍यकता क्‍यों पडी ।
                        प्रक्रति दत्‍त सौंदर्य और ब्‍यूटी पार्लर की बनावटी सुन्‍दरता में भारी अन्‍तर होता है । स्‍वविकसित सुन्‍दरता का मोह पाश स्‍थायी होता है किन्‍तु बनावटी सुन्‍दरता का स्‍वरूप सुबह की सुहानी भोर में मुह धोते ही अपना रौद्ररूप दिखाने लगता है । ब्‍यूटी पार्लर की सुन्‍दरता को कई आशीर्वाद दाता तो नहीं देख पाते है किन्‍तु परिवार के साथ फोटो सेशन में इसका लाभ मिल जाता है । अधिक राशि खर्च करने साथ समय की बर्बादी और सब और निराशा के बादल छाने के बाद मिली यह अस्‍थायी  सुंदरता आपको कब तक  खुश रख सकेगी । इसलिए नव युगल जोडी को चाहिए की अपनी प्रक्रतिदत्‍त सुन्‍दरता के साथ सजधज कर मंच पर लग्‍न के तत्‍काल बाद आसीन हों ताकि सभी को सुखानन्‍द की प्राप्‍ति होकर सबकी इच्‍छापूर्ति भी हो सके ।
नव युगल को अपना सौंदर्य दिखाने की आवश्‍यकता नहीं है ,आपके आंतरिक सौंदर्य को दुनिया वाले देखकर वाह वाह करें वहीं आपकी सुन्‍दरता है ।
                                                            उद्धव जोशी  


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अकेले न जिओ ;कर्म का अम्रत पीओ ।


    धरा पर सांस ले रहा प्रत्‍येक प्राणी आक्रति एवं प्रक्रति में भिन्‍नता रखते हुए भी आत्‍मा के व्‍दारा एक सूत्र में मोतीयों की माला की तरह सुगठित है। हर प्राणी एक दूसरे के अस्तित्‍व से बंधा हो उसका एक क्षण भी अकेले जीना असंभव है। हमें अपनी विचारधारा को विकसित करते हुवे संकल्‍प करना होगा कि दूसरों की उपलब्धि का उपयोग किये बिना हम एक कदम भी आगे नहीं बढ सकते हैं। कर्म के प्रति निष्‍ठा न हो तो उसे उपलब्धियों के अनमोल खजाने की प्राप्ति नहीं हो सकती है। कर्म में भक्ति; मस्ति और श्रध्‍दा का सामन्‍जस्‍य होना आवश्‍यक है। जैसा कि रैदास को जूते सीलने और गोरा कुम्‍हार को मटके बनाने में आनन्‍द आता था ।
    कर्म के साथ समर्पण जुडा हो तो वह सुखानुभूति देता है । यदि मन में अहंकार का बीज अपनी जगह बना ले तो कर्म का मूल्‍य और स्‍तर दोनों गिर जाते हैं । कर्म बडा हो या छोटा अहंकार रहित होकर समर्पित भाव से करना चाहिए । भक्‍त पुंडलिक को माता पिता की सेवा में इतना सुख मिलता था कि उन्‍होने भगवान विठठल को भी प्रतीक्षा करने के लिए कह दिया । कर्म में ऐसा ही भाव होना चाहिए । कर्म के साथ यदि अपने पराये की भावना का उदय हो जाता है तो उसमें स्‍वार्थी तत्‍व का समावेश होकर सदकर्म का भाव ही समाप्‍त हो जाता है ।
    कर्म के साथ अपनी इच्‍छाओं को भी नियन्त्रित करना होगा क्‍योंकि इच्‍छाऐं अनन्‍त होती है । हमारे व्‍दारा किये जाने वाले समस्‍त कर्मो में सहयोग;सामंजस्‍य और सहकार का भाव मिश्रित होगा तो सफलता हमें हर कदम पर प्राप्‍त होती रहेगी ।
   मानव अपनी जीवन संपदा का उपयोग अच्‍छे कर्मो के लिए करेगा तो वह ईश्‍वर व्‍दारा निर्मित इस विश्‍ववाटिका को सुन्‍दर सुव्‍यवस्थित सरल समुन्‍नत बनाने में पूर्ण सहयोगी होगा। अच्‍छाई और बुराई की दोनों गेंद आपके हाथों में है और इनका उपयोग आपके बुध्दिकौशल से जुडा हुआ है और जीवन की प्रतिष्‍ठा अप्रतिष्‍ठा आपके पास ही सुरक्षित है। इसके लिए अन्‍य कोई जिम्‍मेदार नहीं है । इसलिऐ अपनत्‍व के भाव से सबके साथ जीओ और अच्‍छे कर्मो का अम्रत पीओ । 
उद्धव जोशी , उज्‍जैन




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देवभूमि उत्‍तराखण्‍ड पर मानवीय त्रासदी का ताण्‍डव

 देवभूमि उत्‍तराखण्‍ड पर मानवीय त्रासदी का ताण्‍डव

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देवभूमि उत्‍तराखण्‍ड जहां हरिव्‍दार, ऋषिकेश, बद्री, केदार, गंगोत्री, जमनोत्री जैसे अनेकानेक पवित्र तीर्थस्‍थल होकर जब वहां तक जाने के लिए यातायात के कोई भी साधन उपलब्‍ध न होकर पैदल यात्रा करना पडती थी,  तब से आज तक प्रतिवर्ष लाखों धर्मालुजन अपनी धार्मिक यात्रा निर्विध्‍न रूप से सम्‍पन्‍न करते आ रहे है। आज तक इतनी भयावह और खौफनाक त्रासदी  नहीं हुई जो वर्ष 2013 को 16 जून की रात्रि में विकराल और रौद्ररूप में आकर वैज्ञानिकों, ज्‍योतिषियों, शासकों और मानव श्रंखला के लिए  चिन्‍तन मनन के कई प्रश्‍न छोड कर उनके उत्‍तर ढूंढ कर उन पर अमल करने का भार छोड गई।           
यह मानव शरीर पंच तत्‍वों से निर्मित होकर प्रकृति का निर्माण भी उन्‍ही पांच तत्‍वों की  देन है। ईश्‍वर व्‍दारा बनाई गई इस सुन्‍दर सृष्टि जो पंच तत्‍वों से बनी है, उन्‍ही की जड पर शैतान मानव ने कुल्‍हाडी मार कर क्रोधित कर दिया। निर्विघ्‍न रूप से चल रही धार्मिक यात्रा करने वाले निर्दोष और अनजान यात्रियों पर केदारनाथ एवं जमनोत्री क्षेत्र में अचानक बादलों का फटना, पहाडों का धसना, नदियों का रोद्ररूप धारण करना, जैसे कई प्रकृति का प्रकोप कहर बन कर आया  और हजारों बच्‍चे,बूढों और जवान पुरूष महिलाओं को मौत की गोद में सुला दिया। करोडों की संपत्ति नष्‍ट हो गई। लोग कई दिनों तक पहाडों के भयावह मंजर भूख और प्‍यास से तडफते रहे, अपने सामने ही अपनों को मरते देखा। ऐसे भयावह वातावरण को बनाने के पीछे उन शैतानी ताकतो, अपराधी तत्‍वों और शासन तन्‍त्र इसके हिस्‍सेदार हैं, जिनके व्‍दारा पेडों की निर्ममता से कटाई, जमीन और पहाडों के सीनों को चीनकर अवैध खनिजो एवं पत्‍थरों का उत्‍खनन करना, नदियों के पवित्र जल को शहर की गंदगी और फक्ट्रियों के निकले विषेले जल से प्रदुषित करना बडे बांधों का निर्माण आदि कई ऐसे कारण जिनकी वजह से यह विकराल स्‍वरूप सामने आया।
          त्रासदी पर आव्हान वीडियो 
जो नष्‍ट हो गया उसका मूल रूप में तो अब आना संभव नहीं है, किन्‍तु नये सिरे से नये अंकुरण का कार्य तीव्र गति से करना होगा। सबसे पहले उन शैतानी दिमागों को जो ऐसे भयावह वातावरण को बनाने के जिम्‍मेदार है, को उन दुखी परिवारों की चित्‍कारों से रूबरू कराना, जिन्‍होने अपना सब कुछ खो दिया, उन्‍हे उप स्‍थानों पर ले जाना जो पहले चहल पहल से लबरेज रहते थे, आज विरान, भूतहा  बन कर सांय-सांय की आवाज कर रहे हैं। क्रोधित नदियों के उस जल में डुबा कर निकालना,  जिनमें कई अज्ञात अनजान लोग जल मग्‍न हो गये ताकि उनका निष्‍ठुर ह़दय अपने पापों का प्रायश्चित कर सके। और भविष्‍य में देवता समान जल अग्नि वायु प़थ्‍वी की सुरक्षा कर नये विचारों को अंजाम दे सके।
             इस अवसर पर जल, थल, और नभ सेना के उन जांबाज सैनिकों अधिकारियों  की प्रशंसा करते हुए सलाम करना  ह़दयग्राही होगा,  जिन्‍होंने अचानक आई प्राक्रतिक विपदा  के समय  धैर्य और साहस के साथ हजारों लोगों के जीवन की सुरक्षा करते हुए उन्‍हे अनके अपनों के पास तक पहुंचाया। वे संस्‍थायें और स्‍थानीय निवासी भी स्‍मरण एवं प्रशंसा के योग्‍य है, जिन्‍होने ऐसे विकट समय में मानवीय सहायता करने का सर्वोपरी लक्ष रखा।
              आईए अब हम उन अज्ञात आत्‍माओं को हार्दिक श्रध्‍दांजली अर्पित करें, जो प्रक्रति के प्रकोप का शिकार होकर असमय ही काल के गाल में समाकर ईश्‍वरीय शक्ति में विलीन हो गई  और उन शैतानी ताकतों को धिक्‍कारें जिन्‍होने ऐसे भयावह वातावरण को निर्मित करने में अपनी अमानवीय भूमिका निभाई। 
ओम् शान्ति: शान्ति:।
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शक्ति पीठ चामुंडा, बेजनाथ, ओर ज्वाला मुखी की यात्रा ।

हमारा देश न केवल विशाल है बल्कि विविधताओं के एक संकलन भी है विविध भाषा, विविध स्थान, विविध लोग, विविध जलवायु , कहीं बर्फीले स्थान हें, तो कहीं तपता रेगिस्तान, कहीं पानी ही पानी है, तो वही कुछ जगह पानी का नामोनिशान भी नहीं। इस बारे में लिखे तो पूरा एक लेख ही बन जाएगा। अत: इस विविधता ओर आश्चर्यों से भरपूर मंदिर ज्वालामुखी की ओर प्रस्थान किया। इस स्थान पर चट्टान में दरारें से एक निरंतर जलती नीली लौ के रूप में अग्नि प्रकट हो रही है। यह तो निश्चित है की कोई ज्वलन शील गेस निकलकर जल रही है, चाहे केल्सियम कारबाइट ओर पानी के संपर्क से बनी एसीटिलीन  गेस हो या पेट्रोल गेस, या कोई ओर पर सेकड़ों वर्षो से निरंतर निकालना ओर प्रज्वलित रहना क्या अजूबा नहीं लगता।
इस अजूबे के दर्शन को हम निकल पढे कागडा की ओर।
 51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी 
 प्रात: 5 बजे कुल्लू से चले लक्ष्य था 233 किलोमीटर दूर ज्वालामुखी यह हिमांचल प्रदेश के एक नगर का नाम बन गया है।  मंडी-पठानकोट रोड, ओर NH 20-ओर 21 फिर SH 19 द्वरा कुछ चक्कर लगते हुए पहिले पहुचे 126 Km पर स्थित जोगिंदर नगर के पास स्थित हिन्दू श्रद्धालुओं का मुख्य केंद्र और 51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी देव भूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित मंदिर में।
 बानेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शंकर माता सती को अपने कंधे पर उठाकर घूम रहे थे, तब इसी स्थान पर माता का चरण गिर पड़ा था,  और माता यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गई।  चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है।  भक्तों में मान्यता है, कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना और सुनाना श्रेष्ठकर है, और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है।
      दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया।  माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है,  अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी।  मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं।
 बैजनाथ शिव मंदिर 
 चामुंडा में दर्शन अभिषेक कर बेजनाथ शिव मंदिर जो की रास्ते का अगला स्थान था, यह चामुंडा से 22 KM है।
   १३ वीं शताब्दी में बने शिव मंदिर बैजनाथ अर्थात “वैद्य + नाथ” जिसका अर्थ है चिकित्सा अथवा ओषधियों का स्वामी,  भगवान् शिव, को वैद्य + नाथ भी कहा जाता है।   पठानकोट-मंडी नेशनल हाईवे के बिलकुल पास ही स्थित है। इसका पुराना नाम ‘कीरग्राम’ था परन्तु समय के यह मंदिर के नाम से प्रसिद्ध होता गया और ग्राम का नाम बैजनाथ पड़ गया।  मंदिर के उतर-पश्चिम छोर पर बिनवा नदी, जो की आगे चल कर ब्यास नदी में मिलती है, बहती है।
   अत्यंत आकर्षक सरंचना और निर्माण कला का उत्कृष्ट नमूने के रूप के इस मंदिर के गर्भ-गृह में प्रवेश एक ड्योढ़ी से होता है, जिसके सामने एक बड़ा वर्गाकार मंडप बना है, और उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ बड़े छज्जे बने है, मंडप के अग्र भाग में चार स्तंभों पर टिका एक छोटा बरामदा है, जिसके सामने ही पत्थर के छोटे मंदिर के नीचे खड़े हुए विशाल नंदी बैल की मूर्ति है। पूरा मंदिर एक ऊंची दीवार से घिरा है और दक्षिण और उत्तर में प्रवेश द्वार हैं।  मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों, झरोखों में कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। बहुत सारे चित्र दीवारों में नक़्क़ाशी करके बनाये गये हैं. बरामदे का बाहरी द्वार और गर्भ-गृह को जाता अंदरूनी द्वार अंत्यंत सुंदरता और महत्व को दर्शाते अनगिनत चित्रों से भरा पड़ा है।
     कहा जाता है की रावण ने भगवान शिव को अपने दस शिर की आहुतियाँ दी थी । 
 भगवान शिव ने रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उसके साथ लंका एक पिंडी के रूप में चलने का वचन दिया और साथ ही यह शर्त रखी की वह इस पिंडी को बिना जमीन में रखे सीधा लंका पहुचाए।  शिव की इस अलोकिक पिंडी को लेकर रावण लंका की और रवाना हुआ रास्ते में कोरग्राम (अब बैजनाथ ) नामक स्थान पर रावण को लघुशंका महसूस हुई और उन्होंने वहां खड़े एक व्यक्ति को थोड़ी देर के लिए पिंडी सौंप दी। लघुशंका से निवृत होकर रावण ने देखा की जिस व्यक्ति के हाथ में वह पिंडी दी थी वह ओझल हो चुके हैं और पिंडी जमीन में स्थपित हो चुकी थी। रावण ने स्थापित पिंडी को उठाने के काफी प्रयास किये लेकिन सफलता नही मिल पाई । तब  उन्होंने इस स्थली पर घोर तपस्या की और अपने दस सिरों की आहुतियाँ हवन कुंड में डाली। तपस्या से प्रसन होकर रूद्र महादेव ने रावण के सभी सिर पुन: स्थापित कर दिए।
     दशहरा उत्सव, जो सभी दूर परंपरागत रूप से रावण का पुतला जलाने के साथ मनाया जाता है लेकिन बैजनाथ में इसे रावण द्वारा की गई भगवान शिव की तपस्या ओर भक्ति करने के लिए सम्मान के रूप में मनाया जाता है।
     मंदिर के साथ बहने वाली विनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व है श्रद्धालु स्नान करने के उपरांत शिवलिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उस पर विल्व पत्र, फूल, भांग, धतुरा इत्यादि अर्पित कर भोले नाथ को प्रसन करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते है.
      लेख के अनुसार द्वापर युग में पांडवों के अज्ञात वास के दौरान उन्होने इस मंदिर का निर्माण करवाया  था। बाद में  इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य आहुक एवं मनुक नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई. में पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान शिवधाम के नाम से उतरी भारत में प्रसिद्ध है।
बृजेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा 

जब भगवान शंकर माता सती को अपने कंधे पर उठाकर घूम रहे थे, तब इसी स्थान पर माता वक्ष गिरा था,   और माता यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गई।
यह मंदिर इस क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय मंदिर है। कहा जाता है पहले यह मंदिर बहुत समृद्ध था। इस मंदिर को बहुत बार विदेशी लुटेरों द्वारा लूटा गया। महमूद गजनवी ने 1009 ई. में इस शहर को लूटा और मंदिर को नष्ट कर दिया था। मस्जिद भी बना दी गई थी। यह मंदिर 1905 ई. में जोरदार भूकंप से भी पूरी तरह नष्ट हो गया था। 1920 में इसे दोबारा बनवाया गया। 
यहाँ देवी मां एक पिंडी के रूप में यहां पूजा की जाती है।  देवी को प्रसाद तीन भागों महालक्ष्मी, महाकाली और महा सरस्वती के लिए विभाजित कर चढ़ाया जाता हे। 
  ज्वालामुखी 


   बेजनाथ धाम  शिव मंदिर के दर्शन कर ज्वाला मुखी [ग्राम का नाम] की ओर चल पढे शेष लगभग 84 Km पर कर पाहुचने में रात हो गई थी अत: होटल में रुक कर प्रात: दर्शन का कार्यक्रम बनाया। अगले दिन प्रात: नहा धोकर होटल से लगभग एक Km दूर ज्वालामुखी माता के दर्शन को चल पढे। 
    ज्वालामुखी मंदिर की कथा भी सती से संबंधित है। ज्वालामुखी मंदिर में सती की जीभ गिरी थी। यात्रा की यह लोकप्रिय जगह कांगड़ा (35 कि.मी.) के साथ ही धर्मशाला (56 किलोमीटर) से दूर है।
जन श्रुतियों के अनुसार सदियों पहले किसी ग्वाले ने यहाँ आग की लपटों को देखा और तत्कालीन राजा भूमि चंद्र जो क्षेत्र के शासक थे को बताया। राजा ने यहाँ मंदिर का निर्माण किया । 
  कहा जाता है,  मुगल सम्राट अकबर ने यहाँ एक सोने का छत्र स्थापित किया।   महाराजा रणजीत सिंह गुंबद सोने का पानी चढ़ाया था। इसके आंगन में देवी की  शय्या (बिस्तर) कक्ष है। इसके दूसरी ओर मंदिर के ऊपर बाबा गोरखनाथ का मंदिर है।  इस प्राचीन मंदिर को महाराजा रणजीत सिंह ने विस्तारित किया था।  प्रथम सिख राजा खड़क सिंह द्वारा भी यह मंदिर अलंकृत किया गुंबद को  सोने से सजाया।  मंदिर के दरवाजे शुद्ध चांदी के हें।  
     तीर्थयात्री इस पवित्र स्थान में एक खोखली चट्टान से निकलती एक सदा जलती लौ को,  देवी की जिव्हा मानते हैं।  अंदर, चारों ओर परिक्रमा मार्ग के साथ, एक 3 वर्ग फुट का कुंड नुमा खड्डा है। इसकी चट्टानों की दरारों से अग्नि की लौ निकलती रहती हें।  यही महाकाली के मुंह के रूप में माना जाता है। लपटें गड्ढे में कई अन्य बिंदु से बाहर आति रहतीं हें। वे कुल में नौ कही जातीं हें, जो देवी के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करतीं हैं - सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, हिङ्ग्लाज, विंध्य वासिनी, महालक्ष्मी, महाकाली, अंबिका और अंजना।  हमको चार-पाँच ही दिखाई दीं। संभवत: गेस के अन्यत्र से आते जाते रहने से बुझ जाती होगी। पुजारी निरंतर घी की आहुती देकर सभी को प्रज्वल्लित रखने की कोशिश करते रहते हें। मंदिर के सामने दो शेर हैं। प्रमुख मंदिर के बाहर एक यज्ञ शाला भी है जहां ज्वालामुखी की अग्नि को ही सतत सभी दर्शनार्थियों द्वारा आहूती देकर सदा चेतन रखा जाता है। 
  यहाँ से निकटतम ब्रॉड गेज रेलवे स्टेशन 123 किमी दूर, पठानकोट है,  टैक्सियों और बस दोनों स्थानों पर उपलब्ध हैं।  दिल्ली से सड़क मार्ग की दूरी 473 किमी है।
  मंदिर के साथ ही लगी पहाड़ियों पर कई दर्शनीय मंदिर भी हें जहां पैदल या कुछ दूर पहिले तक टेक्सियो से जा सकते हें। इनमें नागिनी माता मंदिर (4.5 किमी, जुलाई / अगस्त में आयोजित एक मेले का स्थल) । पांडवों द्वारा निर्मित श्री रघुनाथजी मंदिर (5 किमी) जो   टेडा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है यहां है।
अष्टभूजा मंदिर (1 किमी  प्राचीन मंदिर आठ सशस्त्र भुजा वाली देवी की प्रतिमा है)।
ओर भी कई मंदिर पहाड़ी पर हें,  पर हम सभी में नहीं गए।
 दोपहर भोजन के बाद नगरकोट माता, बगुलामुखी माता के दर्शन किए। आगे चिंता पुर्णी माता (स्वर्ण जटित मंदिर) ओर प्रांगण के विशाल प्राचीन व्रक्ष जहां पुत्र की कामना से नाड़ा बांधते हें, दर्शन किया यहाँ हलवे का प्रसाद चढ़ाया जाता है, पर मान्यता के अनुसार प्रसाद वहीं बाँट-खाकर आते हें, घर नहीं लाते।
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     अगली यात्रा --  ज्वालाजी  से SH 22 ओर NH 1A पर चलते हुए लगभग 222 km दूर कटरा जम्मू की ओर
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पुनीत बदेका एवं अंजलि उपाध्याय ने नासा [USA] में किया समाज को गोरवान्वित ।

उज्‍जैन 12 जून 2013
     नासा (यूएसए) व्‍दारा हंटविले अलबामा यूएसए में आयोजित 20 वी अन्‍तर्राष्‍टीय मून बग्‍गी रेस में भाग लेकर देश प्रदेश एवं औदीच्‍य समाज का नाम नगर की दो औदीच्‍य युवा प्रतिभाओं, श्री पुनीत बदेका, कु; अंजली उपाध्‍याय ने  गौरवान्वित किया।
टीम लीडर पुनीत बदेका,  बग्‍गी पायलट दीपांग भार्गव, को पायलट कु; अंजली उपाध्‍याय
एवं प्रोफेसर श्री मुकेशराव शिंदे। 
          इस टीम का अन्‍तर्राष्‍टीय स्‍तर पर 30 वा एवं भारतीय स्‍तर पर 2 रा स्‍थान था। इस रेस में हयूमन पावर साईकिल बनाना थी जो चन्‍द्रमा की सतह पर चल सके। इसमें टीम लीडर पुनीत बदेका,  बग्‍गी पायलट दीपांग भार्गव, को पायलट कु; अंजली उपाध्‍याय एवं प्रोफेसर श्री मुकेशराव शिंदे थे ।
        महाकाल इंस्टिट़यूट आफ टेक्‍नालाजी उज्‍जैन के डायरेक्‍टर श्री प्रवीण जी वशिष्‍ठ ने टीम का उत्‍साहवर्धन कर सभी प्रकार का सहयोग किया जिसके परिणाम स्‍वरूप यह टीम नासा यूएसए में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में सफल रही।
टीम लीडर पुनीत बदेका,  बग्‍गी पायलट दीपांग भार्गव, को पायलट कु; अंजली उपाध्‍याय 
एवं प्रोफेसर श्री मुकेशराव शिंदे।
         पुनीत बदेका मिथलेश बदेका एवं प्रवीणा बदेका के पुत्र एवं श्री स्व। नंदकिशोर जी बदेका के पौत्र, ओर श्री महावीर प्रसाद जी वशिष्ठ के नाती हे।   
        कु अंजली उपाध्याय सामान्‍य कृषक परिवार ग्राम कांकरिया  उज्‍जैन के श्री प्रकाश उपाध्याय एवं उर्मिला उपाध्याय की पुत्री एवं स्‍व;श्रीमती मानकुंवर देवी कृष्‍णवल्‍लभ जी उपाध्‍याय की सुपौत्री हें। 
      समस्त औदीच्य बंधु वेव परिवार एवं अखिल भारतीय औदीच्य महासभा मप्र॰ की ओर से शुभकामनाएँ। 
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यात्रा रोहतांग दर्रा - वर्तमान में युवा पर्यटको का रोमांच स्थल वैदिक ऋषियों की तपस्यास्थली ।

यात्रा रोहतांग दर्रा - वर्तमान में युवा पर्यटको का रोमांच स्थल वैदिक ऋषियों की तपस्यास्थली।
      मणिकरण से वापस कुल्लू रात्री में पहुँच कर अगले दिन 22/05/13 को रोहितांग पास जाने के लिए प्रात: मनाली की ओर चल पड़े।  
रोहतांग दर्रा हिमालय का एक प्रमुख दर्रा हैं। भारत देश के हिमाचल प्रदेश में 13,050 फीट/समुद्री तल से    4111 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। 'रोहतांग दर्रा 'हिमालय का एक प्रमुख दर्रा है। रोहतांग का पुराना नाम है- 'भृगु-तुंग'! यह दर्रा मौसम में अचानक अत्यधिक बदलावों के कारण भी जाना जाता है। उत्तर में मनाली, दक्षिण में कुल्लू शहर से 51 किलोमीटर दूर यह स्थान मनाली-लेह [लगभग 500 km दूर] के मुख्यमार्ग में पड़ता है। पूरा वर्ष यहां बर्फ की चादर बिछी रहती है। यहाँ से हिमालय श्रृंखला के पर्वतों का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। लिए मनाली या कुल्लू से आप जीप ले सकते हैं या अपनी गाड़ी में भी वहां जा सकते हैं। हमने आने जाने के लिए मनाली से 8 सीटर बंद जीप 16,000/- सोलह हजार रु मेँ की    थी। आप अपनी गाड़ी छोटी गाड़ी/ बंद जीप से में भी वहां जा सकते हैं। बड़ी बस वहाँ नहीं पहुच पाती। स्थानीय 
           लोगों के लिए चलने वाली एक दो बस हमको जरूर दिखी पर उनके कारण ही हमे पहुचने में 5-6 घंटे का जाम का सामना करना पड़ा। बड़ी बस होने से वह एक ओर ऊंची पहाड़ी चट्टानें दूसरी ओर सेंकड़ों फिट की खाई ओर घुमावदार सिंगल रास्ते पर बाहर निकली चट्टानों के कारण बस को लंबे टर्न की जरूरत होने से जाम लगता रहा। हजारों की संख्या में चलती,रोहितांग जाती ओर वापिस आती जीपों, टेक्सियों. कतारों ओर पार्किंग न होने से अधिकांश समय जाम में ही निकला।          
 रोहतांग पास जाने के रास्ते में देखने के लिए विशेष स्थल है, ब्यास नदी का उदगम और वेद ब्यास ऋषि का आश्रम है। इसी दर्रे से ब्यास नदी का उदगम हुआ है। ब्यास कुंड ब्यास नदी के उदगम का स्थान है, वहां के कुंड के पानी का स्वाद अनूठा बताया है। शायद अमृत का स्वाद ऐसा ही होता होगा? यह कुंड वेद ब्यास ऋषि के मंदिर में स्थित है.'ब्यास नदी 'कुल्लू - मनाली को ही नहीं, वरन फिरोजपुर में 'हरी का पटन की नदी में मिलकर पंजाब और सतलुज नदी में मिल कर पाकिस्तान तक की ज़मीन को भी हरा भरा करती है। फिर अरब सागर में मिल जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 460 किलोमीटर है. कहते हैं, लाहोल-स्पीती और कुल्लू क्षेत्र 
          आपस में अलग थे तब इन्हें जोड़ने के लिए स्थानीय लोगों ने यहाँ एक मार्ग बनाने के लिए अपने इष्ट देव भगवान शिव की आराधना की तब भगवान शिव ने भृगु तुंग पर्वत को अपने त्रिशूल से काट कर यह भृगु -तुंग मार्ग यानि रोहतांग पास बनाया। इस दर्रे के दक्षिण में व्यास नदी का उदगम कुंड बना हुआ है। यहीं पर हिन्दू ग्रंथ महाभारत लिखने वाले महर्षि वेद व्यास जी ने तपस्या की थी। इसी लिए इस स्थान पर व्यास मंदिर बना हुआ है. सभी धाराएँ मनाली से १० किलोमीटर दूर पलाचन गाँव में मिल जाती हैं और ब्यास नदी बनाती हैं.पुराणों मे इस नदी को 'अर्जीकी' नाम से जाना गया था। महाभारत के बाद इस नदी का नाम ब्यास नदी पड़ा। इस पवित्र नदी की सुन्दरता ने न कई ऋषि मुनियों, ऋषि वशिष्ठ, मनु, नारद, विश्वामित्र, पाराशर, कण्व, परशुराम, व्यास जी आदि. इन में से कई ऋषियों के मदिर यहाँ अब भी देखने को मिलते हैं।
       
रोहितांग की उचाई से बादल इन पर्वतों से नीचे दिखाई देते हैं। यहाँ ऐसा नजारा दिखता है, जो पृथ्वी पर बिरले ही स्थानों पर देखने को मिले। रोहतांग दर्रे में पैरागलाईडिन्ग (एक पाइलट के साथ कोई भी कर सकता है) स्कीइंग, और ट्रेकिंग, करने हर साल यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक इन आकर्षक नजारों का लुत्फ लेने और साहसिक खेल खेलने आते हैं। रोहतांग-दर्रा जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर एक छोटा सा दर्शनीय गांव है, वशिष्ठ आश्रम (हम वापिस लोटते मेँ यहाँ रुके थे) यहाँ भी गरम पानी के कुंड हें। रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 12 कि.मी. दूर कोठी एक सुंदर दृश्यावली वाला स्थान है। हर साल यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक इन आकर्षक नजारों का लुत्फ लेने और साहसिक खेल खेलने आते हैं। बर्फ पर चलने वाली बड़े पहियों वाली कार, याक की सवारी आदि का मजा बर्फ मेँ लिया जा सकता है। धूप से बचने का कोई स्थान वहाँ नहीं है यदि मोसम खुला हुआ ओर धूप हुई तो त्वचा के झुलसने का खतरा भी होता है।
  मौसम की समस्या यहा हमेशा रहती है कभी भी बर्फ के कारण इस मार्ग को बंद हो जाता है, [अक्सर नवम्बर से अप्रैल तक] , तब इस जिले में रहने वाले लगभग ३० हज़ार निवासी दुनिया से कट जाते हैं।
   रोहतांग पास जाने के लिए मनाली-रोहतांग रास्ते में से सर्दी में पहनने वाले कोट और जूते किराये पर मिलते है क्योंकि यदि वहां बर्फ है तो आप को बिना इनके वहां घूमने में परेशानी आएगी। मोसम साफ था, अत: हमने नहीं लिए। पर आनंद भी इसी लिए कम आया। बर्फ बरसते समय ही इस प्रकार के स्थानो पर मजा आनद बड जाता है पर पैरागलाईडिन्ग आदि रोमांच भी नहीं मिलता साथ ही साथ ही पहाड़ गिरने रास्ता जाम होने जैसी समस्या भी अधिक कष्ट देती है। याद रखे की ऊपर खाने ओर पीने के   
 लिए पानी सहित दुगने दामो पर मिलती हें, क्योकि वहाँ तक उनको पहुचना महंगा पड़ता है। अधिक अच्छा है, की पर्याप्त मात्रा मेँ आवश्यक वस्तु साथ ले जाएँ, ओर प्रात: जल्दी पहुंचे इससे वापिस आने वाले कम मिलने से जाम नहीं मिलेगा।
अगले यात्रा पड़ाव के रूप में बैजनाथ, चामुंडा देवी दर्शन कर ज्वालाजी में विश्राम।
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नैना देवी दर्शन के बाद मणिकरण ने हमारा मन मोह लिया।

नैना देवी दर्शन के बाद मणिकरण ने हमारा मन मोह लिया। 
 कुरुक्षेत्र  , पिंजौर गार्डन पंचकूला हरियाणा  , चंडीगढ़ , से हिमान्चल की ओर आगे की हमारी यात्रा जारी रही। अगले ही दिन प्रात: 5 बजे नेना देवी की ओर चल पड़े।चंडीगढ़ से NH 21 पर 106 किलोमीटर दूर नयना देवी की ओर चल दिये। राह में लगभग 45 KM चलकर एक पेट्रोल पंप पर विभिन्न प्रकार के पशु खरगोश, चूहे आदि, ओर पक्षी जिनमे कई रंगों के तोते, मेना, लवबर्ड्स ओर शतुर मुर्ग भी थे, जो हमने प्रत्यक्ष में पहली बार देखे।

 हिमालय की पर्वत श्रेणियों के बीच में सुंदर नजारे देखते हुए दूर से नैना देवी मंदिर भी दिखाई दिया।लगभग 8-30 प्रात: मंदिर के समीप पहुँच गए। चंडीगढ़ की तुलना में मोसम ठंडा प्रतीत हो रहा था,  तापमान 25 डिग्री C लगभग होगा।    
    हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर नैना देवी मंदिर का भव्य मंदिर है। 
     नैना देवी हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह देवी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे।  इस स्थान तक पर्यटक अपने निजी वाहनो से भी जा सकते है। 
   मंदिर तक पहुंचने के लिए 1.25 कि.मी. की पैदल यात्रा कि जाती थी परन्तु अब मंदिर तक जाने के लिए रोप वे (उड़्डनखटोले किराया रु-110/-आना जाना )  पालकी आदि की भी व्यवस्था भी है। पहाड़ी पर स्थित मदिर के पास तक आजकल छोटी टेक्सी भी
जाने लगी है, इसका किराया आना जाना रु 50/- है।  यह मंदिर समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।  मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेक शताब्दी पुराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है। मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देगी। शेर माता का वाहन माना जाता है। मंदिर के गर्भ ग्रह में मुख्य तीन मूर्तियां है। दाई तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाई ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है। पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है।
 चंडीगढ़  से सीधे कुल्लू 310 KM है। रात्री लगभग 9 बजे कुल्लू पहुँच गए, यहाँ तापमान 18-20 डिग्री C था। दिन की थकान मिटाने पूर्व निर्धारित होटल में पहुँचकर रात्री भोजन कर विश्राम किया। 
 दोपहर बाद खाना यहाँ खाकर हम अब नैना देवी से वापिस 11 km चलकर NH 21 पर कुल्लू जाने के लिए  बड़ गए। नेना देवी से कुल्लू 204 KM दूर है।
  मणिकर्ण  
    प्रात: 8 बजे लगभग मणिकरण की ओर चल दिये जहां एक घंटे में पहुँच गए। यहाँ थोड़ा अधिक ठंडा मोसम था, पर धूप निकली होने से अच्छा लग रहा था।  यह स्थान कुल्लू से लगभग 42 KM दूर है। मणिकर्ण  कुल्लू जिले के भुंतर से उत्तर पश्चिम में पार्वती

घाटी में व्यास और पार्वती नदियों के मध्य बसा है। यह हिन्दु और सिक्खों का एक तीर्थस्थल है। यह समुद्र तल से 1760  मीटर [छह हजार फुट] की ऊँचाई पर स्थित है और भुंतर में छोटे विमानों के लिए हवाई अड्डा भी है। भुंतर-मणिकर्ण सडक एकल मार्गीय (सिंगल रूट) है, पर है हरा-भरा व बहुत सुंदर। सर्पीले रास्ते में तिब्बती बस्तियां हैं।
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मधु सूदन व्यास का
पिकासा एल्बम
मणिकर्ण अपने गर्म पानी के लिए भी प्रसिद्ध है। देश-विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटक यहाँ बार-बार आते है, विशेष रुप से ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के कुंड मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। इन्हीं गर्म कुंडो में गुरुद्वारे के लंगर के लिए बडे-बडे गोल बर्तनों में चाय बनती है, दाल व चावल पकते हैं। पर्यटकों के लिए सफेद कपड़े की पोटलियों में चावल डालकर धागे से बांधकर बेचे जाते हैं। विशेषकर नवदंपती इकट्ठे धागा पकडकर चावल उबालते देखे जा सकते हैं।  उन्हें लगता हैं कि जैसे यह उनकी जीवन का पहला खुला रसोईघर है, जो सचमुच रोमांचक भी है।  यहां पानी इतना खौलता है कि भूमि पर पांव जलाने लगते हें । यहां के गर्म गंधक जल का तापमान हर मौसम में एक सामान ९४ डिग्री सेल्सियस रहता है। कहते हैं कि इस पानी की चाय बनाई जाए तो आम पानी की चाय से आधी चीनी डालकर भी दो गुना मीठी हो जाती है।
     मणिकर्ण का शाब्दिक अर्थ है, कान की बाली। यहां मंदिर व गुरुद्वारे के विशाल भवनों से लगती हुई बहती है पार्वती नदी, जिसका वेग रोमांचित करने वाला होता है। नदी का पानी बर्फ के समान ठंडा है। नदी की दाहिनी ओर गर्म जल के उबलते स्रोत नदी से उलझते दिखते हैं। इस ठंडे-उबलते प्राकृतिक संतुलन ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से चकित कर रखा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यहाँ के पानी में रेडियम है।
     मणिकर्ण में बर्फ भी खूब पड़ती है, मगर ठंड के मौसम में भी गुरुद्वारा परिसर के अंदर बनाए विशाल स्नानागार में गर्म पानी में आराम से नहाया जा सकता है, जितनी देर चाहें, मगर ध्यान रहे, अधिक देर तक नहाने से चक्कर भी आ सकते हैं। पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रबंध है। गुरुद्वारे में एक गर्म गुफा भी है, यहाँ का तापमान लगभग 40 डिग्री के आसपास होगा। आयुर्वेद के मान से 'शुष्क स्वेदन ' का लाभ मिलता है। यहां लेटने से वात रोगों में लाभ होता है। 
   दिलचस्प है कि मणिकर्ण के तंग बाजार में भी गर्म पानी की आपुर्ति की जाती है, जिसके लिए विशेष रुप से पाइप भी बिछाए गए हैं। अनेक रेस्त्राओं और होटलों में यही गर्म पानी उपलब्ध है। बाजार में तिब्बती व्यवसायी छाए हुए हैं, जो तिब्बती कला व संस्कृति से जुडा़ सामान और विदेशी वस्तुएं उपलब्ध कराते हैं। साथ-साथ विदेशी स्नैक्स व भोजन भी। हमने यहाँ ताजी चैरी,स्ट्रोबेरी ओर खुमानी खूब मनभर कर खाई। 
   

गुरुद्वारे के विशालकाय किलेनुमा भवन में ठहरने के लिए पर्याप्त स्थान है। छोटे-बड़े होटल व कई निजी अतिथि गृह भी हैं। ठहरने के लिए तीन किलोमीटर पहले कसोल भी एक शानदार विकल्प है। मणिकर्ण में बहुत से मंदिर और एक गुरुद्वारा है।  सिखों के धार्मिक स्थलों में यह स्थल विशेष स्थान रखता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है किगुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। इसीलिए पंजाब से बडी़ संख्या में लोग यहां आते हैं। पूरे वर्ष यहां दोनों समय लंगर चलता रहता है।
     यहाँ पर भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु, और भगवान शिव के मंदिर हैं।  हिंदू मान्यताओं में यहां का नाम इस घाटी में शिव के साथ विहार के दौरान पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने के कारण पडा़। एक मान्यता यह भी है कि मनु ने यहीं महाप्रलय के विनाश के बाद मानव की रचना की थी। यहां रघुनाथ मंदिर भी है। कहा जाता है कि कुल्लू के राजा ने अयोध्या से भगवान राम की मू्र्ति लाकर यहां स्थापित की थी। यहां शिवजी का भी एक पुराना मंदिर है। इस स्थान की विशेषता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल्लू घाटी के अधिकतर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ यहां आते रहते हैं।
   मणिकर्ण अन्य कई मनलुभावन पर्यटक स्थलों का आधार स्थल भी है। हम यहाँ नहीं गए पर जानकारी प्राप्त की है। यहां से आधा किमी दूर ब्रह्म गंगा है, जहां पार्वती नदी व ब्रह्म गंगा का संगम  हैं। यहां थोडी़ देर रुकना प्रकृति से जी भर मिलना है। डेढ़ किमी दूर नारायणपुरी है, 5 किमी दूर राकसट है, जहां रूप गंगा बहती हैं। यहां रूप का आशय चांदी से है। पार्वती पदी के बांई ओर 16  किलोमीटर दूर और 1600  मीटर की कठिन चढा़ई के बाद आने वाला सुंदर स्थल पुलगा जीवन अनुभवों में शानदार बढोतरी करता है। इसी प्रकार 22 किमी दूर रुद्रनाथ लगभग 8000 फुट की ऊंचाई पर बसा है और पवित्र स्थल माना जाता रहा है। यहां खुल कर बहता पानी हर पर्यटक को नया अनुभव देता है। मणिकर्ण से लगभग 25 किमी दूर, दस हजार फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित खीरगंगा भी गर्म जल सोतों के लिए जानी जाती हैं। यहां के पानी में भी औषधीय तत्व हैं। एक स्थल पांडव पुल 45  किमी दूर है। गर्मी में मणिकर्ण आने वाले रोमांचप्रेमी लगभग 115 किमी दूर मानतलाई तक भी जा पहुंचते हैं। मानतलाई के लिए मणिकर्ण से तीन-चार दिन लग जाते हैं। सुनसान रास्ते के कारण खाने-पीने का सामान, दवाएं इत्यादि साथ ले जाना नितांत आवश्यक है। इस दुर्गम रास्ते पर मार्ग की पूरी जानकारी रखने वाले एक सही व्यक्ति को साथ होना बहुत आवश्यक है। संसार से विरला, अपने प्रकार के अनूठे संस्कृति व लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था रखने वाला अद्भुत ग्राम मलाणा का मार्ग भी मणिकर्ण से लगभग 15  किमी पीछे जरी नामक स्थल से होकर जाता है। मलाणा के लिए नग्गर से होकर भी लगभग 15 किमी. पैदल रास्ता है। इस प्रकार यह समूची पार्वती घाटी पर्वतारोहिण के शौकीनों के लिए स्वर्ग के समान है।
    कितने ही पर्यटकों से छूट जाता है कसोल, जो कि मणिकर्ण से तीन किमी पहले आता है। यहां पार्वती नदी के किनारे, पेडों के बीच बसे खुलेपन में पसरी सफेद रेत, जो कि पानी को हरी घास से विलग करती है,यहां की दृश्यावली को विशेष बना देती है। यहां ठहरने के लिए हिमाचल पर्यटन के हट्स भी हैं।
     मणिकर्ण में घूमने के दौरान आकर्षक पेड पौधों के साथ-साथ अनेक रंगों की मिट्टी के मेल से रची लुभावनी पर्वत श्रृंखलाओं के दृश्य मन में बस जाते हैं। प्रकृति के यहां और भी कई अनूठे रंग हैं। कहीं सुंदर पत्थर, पारदर्शी क्रिस्टल जो देखने में टोपाज जैसे होते है, मिल जाते हैं। तो कहीं चट्टानें अपना अलग ही आकार ले लेती हैं जैसे कि बीच सडक पर टकी ईगल्स नोज जो दूर से बिल्कुल किसी बाज के सिर जैसी लगती है। प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को सुंदर ड्रिफ्टवुडस या फिर जंगली फूल-पत्ते मिल जाते हैं, जो उनके अतिथि कक्ष का स्मरणीय अंग बन जाते हैं और मणिकर्ण की रोमांचक स्मृतियों के स्थायी साक्ष्य बने रहते हैं।
 
आगे भी जारी रहेगी हमारी यात्रा कुल्लू ओर मनाली की ओर-- [अगली यात्रा कड़ी ]  
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चंडीगढ़ -- यात्रा का अगला पड़ाव।

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    हमारी हिमांचल यात्रा का अगला पड़ाव चंडीगढ़ था ।यह  भारत का एक केन्द्र शासित प्रदेश है, जो दो भारतीय राज्यों, पंजाब और हरियाणा की राजधानी भी है। इसके नाम का अर्थ है चंडी का किला। यह हिन्दू देवी दुर्गा के एक रूप चंडिका या चंडी के एक मंदिर के कारण पड़ा है। यह मंदिर आज भी शहर में स्थित है। इसे सिटी ब्यूटीफुल भी कहा जाता है। चंडीगढ़ राजधानी क्षेत्र में मोहाली, पंचकुला और ज़ीरकपुर आते हैं। 
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शहरी योजनाबद्धता और वास्तु-स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध यह शहर आधुनिक भारत का प्रथम योजनाबद्ध, खूबसूरत और नियोजित शहरों में एक है। इस केन्द्र शासित प्रदेश को प्रसिद्ध फ़्रांसीसी वास्तुकार ली कोर्बूजियर ने अभिकल्पित किया था। इस शहर का नाम एक दूसरे के निकट स्थित चंडी मंदिर और गढ़ किले के कारण पड़ा जिसे चंडीगढ़ के नाम से जाना जाता है। शहर में बड़ी संख्या में पार्क हैं जिनमें लेसर वैली, राजेन्द्र पार्क, बॉटोनिकल गार्डन, स्मृति उपवन, तोपियारी उपवन, टेरस्ड गार्डन और शांति कुंज प्रमुख हैं। चंडीगढ़ में ललित कला अकादमी, साहित्य अकादमी, प्राचीन कला केन्द्र और कल्चरल कॉम्प्लेक्स को भी देखा जा सकता है।  यहां हरियाणा और पंजाब के अनेक प्रशासनिक भवन हैं। विधानसभा, उच्च न्यायालय और सचिवालय आदि इमारतें यहां देखी जा सकती हैं। यह कॉम्प्लेक्स समकालीन वास्तुशिल्प का एक बेहतरीन उदाहरण है। यहां का ओपन हैंड स्मारक कला का उत्तम नमूना है।

रॉक गार्डन [के अन्य सभी फोटो देखें
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चंडीगढ़ आने वाले पर्यटन रॉक गार्डन आना नहीं भूलते। इस गार्डन का निर्माण नेकचंद ने किया था। इसे बनवाने में औद्योगिक और शहरी कचरे का इस्तेमाल किया गया है। पर्यटक यहां की मूर्तियों, मंदिरों, महलों आदि को देखकर अचरज में पड़ जातें हैं। हर साल इस गार्डन को देखने हजारों पर्यटक आते हैं। गार्डन में झरनों और जलकुंड के अलावा ओपन एयर थियेटर भी देखा जा सकता, जहां अनेक प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियां होती रहती हैं।
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चंडीगढ़ के सेक्टर एक में मौजूद रॉक गार्डन एक व्यक्ति के एकल प्रयास का अनुपम और उत्कृष्ट नमूना है, जो दुनिया भर में अपने अनूठे उपक्रम के लिए बहुत सराहा गया है। रॉक गार्डन के निर्माता नेकचंद एक कर्मचारी थे जो दिन भर साइकिल पर बेकार पड़ी ट्यूब लाइट्स, टूटी-फूटी चूडियों, प्लेट, चीनी के कप, फ्लश की सीट, बोतल के ढक्कन व किसी भी बेकार फेंकी गई वस्तुओं को बीनते रहते और उन्हें यहाँ सेक्टर एक में इकट्ठा करते रहते। धीरे-धीरे फुर्सत के क्षणों में लोगों द्वारा फेंकी गई फ़ालतू चीज़ों से ही उन्होंने ऐसी उत्कृष्ट आकृतियों का निर्माण किया कि देखने वाले दंग रह गए। नेकचंद के रॉक गार्डन की कीर्ति अब देश-विदेश के कलाप्रेमियों के दिलों में घर कर चुकी है।
    उल्लेखनीय है कि रॉक गार्डन अब तक केवल शाम पांच बजे तक ही खुलता है। ठंड के दिनों में अंधेरा जल्दी होने के कारण टिकटों की बिक्री पांच बजे से पहले ही रुक जाती है। गर्मियों के दिनों में भी बेशक यहाँ पर्यटक आते हैं, लेकिन गार्डन की दीवारों से निकलने वाली उमस और धूप के कारण उनका सारा मजा किरकिरा हो जाता है। यही वजह है कि अधिकांश पर्यटक यहाँ सर्दियों के दिनों में ही आना पसंद करते हैं।
      रॉक गार्डन को बनवाने में औद्योगिक और शहरी कचरे का इस्तेमाल किया गया है। पर्यटक यहाँ की मूर्तियों, मंदिरों, महलों आदि को देखकर अचरज में पड़ जातें हैं। हर साल इस गार्डन को देखने हजारों पर्यटक आते हैं। गार्डन में झरनों और जलकुंड के अलावा ओपन एयर थियेटर भी देखा जा सकता, जहाँ अनेक प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती रहती हें। 
रोज़ गार्डन 
    जाकिर हुसैन रोज गार्डन के नाम से विख्यात यह गार्डन एशिया का सबसे बड़ा रोज गार्डन है। यहां गुलाब की 1600 से भी अधिक किस्में देखी जा सकती हैं। गार्डन को बहुत खूबसूरती से डिजाइन किया गया है। अनेक प्रकार के रंगीन फव्वारे इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। हर साल यहां गुलाब पर्व आयोजित होता है। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोगों का यहां आना होता है।
सुखना झील 
यह मानव निर्मित झील 3 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैली हुई है। इसका निर्माण 1958 में किया गया था। अनेक प्रवासी पक्षियों को यहां देखा जा सकता है। झील में बोटिंग का आनंद लेते समय दूर-दूर फैले पहाड़ियों के सुंदर नजारों के साथ-साथ सूर्यास्त के नजारे भी यहां से बड़े मनमोहक दिखाई देते हैं।
संग्रहालय
चंडीगढ़ में अनेक संग्रहालय हैं। यहां के सरकारी संग्रहालय और कला दीर्घा में गांधार शैली की अनेक मूर्तियों का संग्रह देखा जा सकता है। यह मूर्तियां बौद्ध काल से संबंधित हैं। संग्रहालय में अनेक लघु चित्रों और प्रागैतिहासिक कालीन जीवाश्म को भी रखा गया है। अन्तर्राष्ट्रीय डॉल्स म्युजियम में दुनिया भर की गुडियाओं और कठपुतियों को रखा गया है।
सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य
लगभग 2600 हेक्टेयर में फैले इस अभ्यारण्य में बड़ी संख्या में वन्यजीव और वनस्पतियां पाई जाती हैं। मूलरूप से यहां पाए जाने वाले जानवरों में बंदर, खरगोश, गिलहरी, साही, सांभर, भेड़िए, जंगली सूकर, जंगली बिल्ली आदि शामिल हैं। इसके अलावा सरीसृपों की अनेक प्रजातियों भी यहां देखी जा सकती हैं। अभ्यारण्य में पक्षियों की विविध प्रजातियों को भी देखा जा सकता है।
चंडीगढ़ से हिमान्चल की ओर आगे की यात्रा ---- अगली कड़ी । 
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पिंजौर गार्डन पंचकूला हरियाणा ।


 अपनी हिमांचल प्रदेश की ओर यात्रा में कुरुक्षेत्र से आगे चलते चलते यात्रा का अगला पड़ाव च्ंडीगढ़ था, राह में पिंजोर गार्डन देखने का अवसर भी मिला।  चंडीगढ़-शिमला हाइवे पर, पंचकुला, चंडीगढ़ पिंजौर चण्डीगढ से करीब बीस किलोमीटर आगे शिमला रोड पर पिंजौर गार्डन है, देखने पहुंचे।  दिल्ली की तरफ से जा रहे हैं तो चण्डीगढ जाने की कोई जरुरत नहीं, बल्कि चण्डीगढ से पहले जीरकपुर से ही रास्ता दाहिने मुडकर पिंजौर चला जाता है।


 पानी, फूल और रंग बिरंगे फूलों से सजा पिंजौर गार्डन लगभग सौ एकड़ में फैला है। परिवार और बच्चों के साथ पिकनिक इंज्वॉय करने के लिए गार्डन स्थानीय लोगों का फेवरेट स्पॉट है। गार्डन के भीतर ऐतिहासिक महल, मिनी चिड़ियाघर, जापानी गार्डन भी लोगों को खूब लुभाते है। शाम को झिलमिलाती लाइट्स की रोशनी में खिलखिलाते फव्वारों की खूबसूरती लोगों को मदहोश कर देती है। गार्डन के बीच एक विशाल क्षेत्र है जहां अप्रैल महीने के दौरान वासंतिक त्यौहार मनाने की व्यवस्था है। जबकि जून और जुलाई में यहाँ पर्यटक मैंगो फेस्टिवल इंज्वॉय करते है।यहां आम की अन्य किस्मों के अलावा केले, चीकू, आडू, चीकू, अमरूद, नाशपती, लोकाट, बीज-रहित जामुन, हरा-बादाम व कटहल के काफी पेड हैं। किसी भी मौसम में जाएं, कोई न कोई फल उपलब्ध रहता है। यहां मुगल गार्डन, जापानी बाग, प्लांट नर्सरी के साथ-साथ मोटेल गोल्डन ओरिएंट रेस्तरां, शापिंग आर्केड, मिनी चिडियाघर, ऊंट की सवारी, व्यू गैलरी, कांफ्रेंस रूम, बच्चों के मनोरंजन के लिए विभिन्न गतिबिधियों का भी इंतजाम है। 
    पंचकूला हरियाणा के अंतिम छोर और हिमाचल प्रदेश के स्वागत द्वार से ठीक पहले स्थित यह 350 साल पुराना यादविंद्रा गार्डन, जिसे अब पिंजौर बाग के नाम से जाना जाता है।  17 वीं सदी में औरंगजेब के सूबेदार व चचेरे भाई फिदाई खान ने लाहौर के शालीमार बाग की तर्ज पर बनवाया था। यह गार्डन इंडोमुगलिया शैली का बेहतरीन नमूना है। चंडीगढ़ से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस किलानुमा गार्डन में निर्मित शीशमहल, रंगमहल, जलमहल जैसे भवन राजस्थानी-मुगल संस्कृति के प्रतीक माने जाते हैं। एक ढलानदार पहाड़ी को काट कर बनाया गया पिंजौर गार्डन रात की रोशनी में बेहद सुंदर लगता है। यह गार्डन यहा आने वाले पर्यटकों के हर लम्हे को गुलजार और यादगार बना देता है। चंडीगढ़-शिमला राजमार्ग पर बसा पिंजौर एक छोटा सा शहर है। चंडीगढ़ से बसों व टैक्सियों द्वारा पिंजौर आया जा सकता है। इस शहर से कई किंवदंतिया जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि पांडव अपने वनवास के दौरान कुछ समय यहा भी रहे थे, इसलिए इसे पंचपुरा के नाम से भी जाना जाता है। बाद में पटियाला के महाराजा यादविंद्रा के नाम पर इस गार्डन का नाम यादविंद्रा उद्यान रखा गया।
    पिंजौर गार्डन के हरे-भरे बाग, झरने और सुंदर तालाब पर्यटकों को खूब आकर्षित करते हैं। यहां के शीश महल में फिदाई खान अपना दरबार लगाते थे। शीश महल के सामने बने रंगमहल में फिदाई खान की बेगमें अपना मनोरंजन करती थीं। यह महल भी बहुत खूबसूरत है। जलमहल के बारे में कहा जाता है कि इसमें फिदाई खान की बेगमें स्नान करती थीं। इसके अलावा इस उद्यान में एक हवा महल भी है, जिसे इसके ताज के रूप में देखा जाता है। यहां पर्यटकों के लिए अन्य आकर्षण स्थल भी हैं। यहा पर्यटक स्वादिष्ट खाने का मजा भी ले सकते हैं। गार्डन में सुंदर रेस्तरा, कैफे और ढाबे हैं। यहा ठहरने के लिए छोटे-बडे़ होटलों सहित हरियाणा राज्य पर्यटन विभाग के होटल भी उपलब्ध हैं। चंडीगढ़ के होटलों में भी ठहर कर यहा के प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठाया जा सकता है। गर्मियों की शाम और सर्दियों की धूप में हर किसी की थकान यहा खत्म हो जाती है।
     पिंजौर गार्डन में प्रति माह लगभग 50 से 60 हजार लोगों का आना होता है। लोग यहा पर घटों बैठकर समय गुजारते है और यादगार के तौर पर फोटो भी खिंचवाते है। पर्यटकों के लिए पिंजौर गार्डन को काफी आकर्षक बनाया गया है और जो थोड़ी-बहुत कमी थी , वह दूर कर दी गई है। इसमें प्रवेश का शुल्क रु-20/ हे। 
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इसका कोई भी प्रकाशन समाज हित में किया जा रहा हे|सभी समाज जनों से सुझाव/सहायता की अपेक्षा हे|

कुरुक्षेत्र यात्रा

     दिल्ली से 170 किलोमीटर उत्तर की ओर ग्रांड ट्रंक रोड  Grand Trunk Road पर स्थित कुरुक्षेत्र हरियाणा राज्य का एक प्रमुख जिला है। यहाँ रेल की सुविधा भी है। यह हरियाणा के उत्तर में स्थित है, यह जिला बासमती चावल के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है ।तथा अम्बाला, यमुना नगर, करनाल और कैथल से घिरा हुआ है । माना जाता है कि यहीं महाभारत की लड़ाई हुई थी और भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश यहीं पर 'ज्योतीसर' नामक स्थान पर दिया था। 
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    कुरू ने जिस क्षेत्र को बार-बार जोता था, उसका नाम कुरूक्षेत्र पड़ा। कहते हैं कि जब कुरू बहुत मनोयोग से इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इस परिश्रम का कारण पूछा। कुरू ने कहा-'जो भी व्यक्ति यहाँ मारा जायेगा, वह पुण्य लोक में जायेगा।' इन्द्र उनका परिहास करते हुए स्वर्गलोक चले गये। ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने देवताओं को भी बतलाया। देवताओं ने इन्द्र से कहा-'यदि संभव हो तो कुरू को अपने अनुकूल कर लो अन्यथा यदि लोग वहां यज्ञ करके हमारा भाग दिये बिना स्वर्गलोक चले गये तो हमारा भाग नष्ट हो जायेगा।' तब इन्द्र ने पुन: कुरू के पास जाकर कहा-'नरेश्वर, तुम व्यर्थ ही कष्ट कर रहे हो। यदि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर अथवा युद्ध करके यहाँ मारा जायेगा तो स्वर्ग का भागी होगा।' कुरू ने यह बात मान ली। यही स्थान समंत-पंचक अथवा प्रजापति की उत्तरवेदी कहलाता है।
    कुरुक्षेत्र का पौराणिक महत्व अधिक माना जाता है । इसका त्रग्वेद और यजुर्वेद में अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है । यहां की पौराणिक नदी सरस्वती का भी अत्यन्त महत्व है । इसके अतिरिक्त अनेक पुराणो, स्मृतियों और महर्षि वेद व्यास रचित महाभारत में इसका विस्तृत वर्णन किया गया हैं । विशेष तथ्य यह है कि कुरुक्षेत्र की पौराणिक सीमा ४८ कोस की मानी गई है जिसमें कुरुक्षेत्र के अतिरिक्त कैथल , करनाल, पानीपत और जिंद का क्षेत्र सम्मिलित हैं
यहाँ ठहरने के लिए सभी श्रेणी की व्यवस्था उपलब्ध है, पर्यटन विभाग के होटल रेस्ट हाउस भी हें। सूर्यग्रहण के अवसर पर एकत्र होने वाले एक करोड़ की संख्या तक के विचार से स्थान मिलता है। फिर भी केवल तीर्थ दर्शन विचार से भीड़ से बचने सूर्यग्रहण के समय छोड़ कर जाएँ तो अधिक आनंद रहता है।
  कुरुक्षेत्र के प्रमुख दर्शनीय स्थान
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ब्रह्मसरोवर  ---कुरूक्षेत्र के जिन स्थानों की प्रसिद्धि संपूर्ण विश्व में फैली हई है उनमें ब्रह्मसरोवर सबसे प्रमुख है। इस तीर्थ के विषय में विभिन्न प्रकार की किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। अगर उनकी बात हम न भी करें तो भी इस तीर्थ के विषय में महाभारत तथा वामन पुराण में भी उल्लेख मिलता है। जिसमें इस तीर्थ को परमपिता ब्रह्म जी से जोड़ा गया है । सूर्यग्रहण के अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर लाखों लोग ब्रह्मसरोवर में स्नान करते हैं। कई एकड़ में फैला हुआ यह तीर्थ वर्तमान में बहुत सुदंर एवं सुसज्जित बना दिया गया है। कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड के द्वारा बहुत दर्शनीय रूप प्रदान किया गया है तथा रात्रि में प्रकाश की भी व्यवस्था की गयी है।
सन्निहत सरोवर- यह प्राचीन एवं अत्यंत पवित्र तीर्थों में से एक है, कहा जाता है की इसकी जल राशि ब्रह्मा जी के नाभि के पवित्र जल से भरी गई थी, यह वर्णन भी वामन पुराण, स्कन्द पुराण, ओर महाभारत में उल्लेखित है। सूर्य ग्रहण के समय यहाँ स्नान ओर श्राद्ध करने से सहस्त्र अश्व मेघ यज्ञों का फल मिलता है। करोड़ो लोग सूर्य ग्रहण काल में यहाँ आकार लाभ प्राप्त करते हें। प्रत्येक सोमवती अमावस्या को यहाँ मेला भी लगता है। इस सरोवर में स्नान कर पास के कमल कुंज के भी दर्शन करते है जो कमल के फूलों से भरा हुआ है।   सरोवर की आसपास कई मंदिर भी हें। सरोवर की वर्तमान लंबाई 1500 फिट ओर चोड़ाई 550 फिट है, चरो ओर लाल पत्थर से बनी सीडी ओर घाट मनोहारी हें। 
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भद्रकाली मन्दिर--भद्रकाली मन्दिर ५२ शक्तिपीठो मे से एक है। यह हरियाणा का एकमात्र शक्तिपीठ है। माँ के शरीर के ५२ खण्डों मे से एक खन्ड यहा भी गिरा था। मां भद्रकाली मन्दिर व स्थानेश्वर महादेव मन्दिर आस-पास ही हैं और रेलवे स्टेशन से मात्र ३ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।
   यह ऐतिहासिक मंदिर हरियाणा की एकमात्र सिद्ध शक्तिपीठ है, जहां मां भद्रकाली शक्ति रूप में विराजमान हैं।
   वामन पुराण व ब्रह्मपुराण आदि ग्रंथों में कुरुक्षेत्र के सदंर्भ में चार कूपों का वर्णन आता है। जिसमें चंद्र कूप, विष्णु कूप, रुद्र कूप व देवी कूप हैं। श्रीदेवी कूप भद्रकाली शक्तिपीठ का इतिहास दक्षकुमारी सती से जुड़ा हुआ है। शिव पुराण में इसका वर्णन मिलता है कि एक बार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया। इस अवसर पर सती व उसके पति शिव के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को बुलाया गया। जब सती को इस बात का पता चला तो वह अनुचरों के साथ पिता के घर पहुंची। तो वहां भी दक्ष ने उनका किसी प्रकार से आदर नहीं किया और क्रोध में आ कर शिव की निंदा करने लगे। सती अपने पति का अपमान सहन न कर पाई और स्वयं को हवन कुंड में अपने आप होम कर डाला। भगवान शिव जब सती की मृत देह को लेकर ब्राह्मांड में घूमने लगे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52 हिस्सों में बांट दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां पर शक्ति पीठ स्थापित हुए।
   हरियाणा के एकमात्र प्राचीन शक्तिपीठ श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर कुरुक्षेत्र के देवी कूप में सती का दायां गुल्फ अर्थात घुटने से नीचे का भाग गिरा और यहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से मां भद्रकाली की पूजा की और कहा था कि महादेवी मैंने सच्चे मन से पूजा की है अत: आपकी कृपा से मेरी विजय हो और युद्ध के उपरांत मैं यहां पर घोड़े चढ़ाने आऊंगा। शक्तिपीठ की सेवा के लिए श्रेष्ठ घोड़े अर्पित करूंगा। श्रीकृष्ण व पांडवों ने युद्ध जीतने पर ऐसा किया था, तभी से मान्यता पूर्ण होने पर यहां श्रद्धालु सोने, चांदी व मिट्टी के घोड़े चढ़ाते हैं। मां भद्रकाली की सुंदर प्रतिमा शांत मुद्रा में यहां विराजमान है। हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन मां भद्रकाली की पूजा अर्चना व दर्शन करते हैं। मंदिर के बाहर देवी तालाब है। तालाब के एक छोर पर तक्षेश्वर महादेव मंदिर है। पुराणों में कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण व बलराम के मुंडन संस्कार यहां पर हुए थे।
   रक्षाबंधन के दिन श्रद्धालु अपनी रक्षा का भार माता को सौंप कर रक्षा सूत्र बांधते हैं। मान्यता है कि इससे उसकी सुरक्षा होती है। महाशक्तिपीठ में विशेष उत्सव के रूप में चैत्र व आश्विन के नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

ज्योतीसर- यही वह स्थान है, जहां भगवान कृष्ण ने मोह ग्रस्त अर्जुन को ज्ञान दिया था, जो आज भगवद गीता के नाम से जानी जाती हे। वर्तमान में इसे बड़ा ही आकर्षक बनाया गया है, प्रतिदिन रात्री को लाइट एंड साउंड [ध्वनि एवं प्रकाश] के माध्यम से महाभारत युद्ध के प्रमुख भागो को प्रदर्शित किया जाता है, इसके लिए शाम के समय पहुचना आवश्यक है, इसके लिए कुछ ही राशि व्यय करना होती है, यहाँ ही प्राचीन कल को बरगद का वृक्ष भी है। जिस पर कलावा बांध कर श्रद्धालु मनोती माँगते हें। 

पिहोवा- कुरुक्षेत्र पवित्र माना गया है और सरस्वती कुरुक्षेत्र से भी पवित्र है। सरस्वती तीर्थ अत्यंत पवित्र है, किन्तु पृथूदक या जिसे अब पीहोवा कहा जाता हे, इनमें सबसे अधिक पावन व पवित्र है।
महाभारत , वामन पुराण , स्कन्द पुराण , मार्कण्डेय पुराण आदि अनेक पुराणों एवं धर्मग्रन्थों के अनुसार इस तीर्थ का महत्व इसलिए ज्यादा हो जाता है कि पौराणिक व्याख्यानों के अनुसार इस तीर्थ की रचना प्रजापति ब्रह्मा ने पृथ्वी , जल , वायु व आकाश के साथ सृष्टि के आरम्भ में की थी। 'पृथुदक' शब्द की उत्पत्ति का सम्बन्ध महाराजा पृथु से रहा है। इस जगह पृथु ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उनका क्रियाकर्म एवं श्राद्ध किया। अर्थात जहां पृथु ने अपने पिता को उदक यानि जल दिया। पृथु व उदक के जोड़ से यह तीर्थ पृथूदक कहलाया।
श्री स्थानेश्वर महादेव मन्दिर- कुरुक्षेत्र की पावन धरती पर श्री स्थानेश्वर महादेव मन्दिर स्थित है। लोक मान्यता है कि महाभारत के युद्ध से पूर्व भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन समेत यहा भगवान शिव की उपासना कर अशीर्वाद प्राप्त किया था। इस तीर्थ की विशेषता यह भी है कि यहा मन्दिर व गुरुद्वरा एक ही दीवाल से लगे हुए हें।  यहाँ  पर हजारो देशी विदेशी पर्यटक दर्शन हेतु आते है। 
पेनोरमा ओर श्री कृष्ण संग्रहालय- यह कुरुक्षेत्र के एक आकर्षणों में सम्मलित है कोई भी पर्यटक ओर दर्शनार्थी यहाँ आना नहीं भूलते। पेनोरमा में तल मंजिल पर विज्ञान की जानकारी ओर आश्चर्य करने वाली जानकारी मिलती है।इसके प्रथम तल पर महभारत युद्ध को चित्रो प्रकाश ओर ध्वनि के माध्यम से साकार किया है। पेनोरमा के पास ही श्री कृष्ण संग्रहालय जो श्री कृष्ण जी के विविध चित्रो ओर उनसे संबन्धित  सामग्री, मूर्तियों का सुरुचिपूर्ण आकर्षण हे।  
अन्य दर्शनीय स्थानो में द्रोपदी कुंड, सरोवर का वह स्थान जहां युद्ध में पराजय के बाद दुर्योधन छिप कर बेठा था ,आदि हें। कुरुक्षेत्र प्राधिकरण द्वारा निर्मित विशाल रथ जिस पर श्री कृष्ण जी अर्जुन को ज्ञान दे रहे हें बड़ा ही मनोहारी है। सभी पर्यटक यहाँ फोटो खिचवाना नहीं भूलते।
 
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स्मृतिशेष- ज्योतिषाचार्य पं॰ नागेश्वर जी व्यास।

 ज्योतिषाचार्य पं॰ नागेश्वर जी व्यास। 

प्रति ,
श्री प्रमोद जी , 
जय गोविंद माधव । 

बचपन से अब तक के मार्गदर्शक पिता का इस प्रकार अनायास अवसान पुत्र के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। नश्वरता के इस चक्र को द्रष्टिगत रखते हुए स्वीकार करना ही होगा। 
इस दुखद घड़ी पर हम सब आपके परिवार को संवेदनाए ओर ईश्वर से पूज्य पिताजी की आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हें। 
ॐ "शांति, शांति शांति।
अखिल भारतीय औदीच्य महासभा 
की ओर से -
 प्रकाश दुबे, डॉ मधुसूदन व्यास, उद्धव जोशी  ।

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संयुक्‍त परिवार अर्थात आम के आम ' गुठलियों के दाम?

कहावतें अनुभवों का खजाना समेट कर चंद शब्‍दों का अमूल्‍य इतिहास अपनी तिजोरी में छिपा कर रखती है। आम का वृक्ष जड से लेकर गुठलियों तक के सारे अंगो को मानव कल्‍याण के लिए समर्पित कर देता है। आम की जड,तना,शाखाऐं अग्निहोत्र के काम आकर पत्तियों को मंगल कार्यो में तोरण बना कर लटकाया जाता है। आम की छाया के नीचे विश्राम कर थका हुआ इन्‍सान अपनी सारी थकान भूल कर तरोताजा हो जाता है। कच्‍चा आम लोंजी,चटनी,पना आदि के रूप में मानव को स्‍वाद की अनूभूति कराते हुए बीमार होने से बचाता है। पका रसीला आम चूस कर खाने ,रस बना कर खाने और रस के पापड बनाने के काम आता है। आम की गंठली पुन बीज बनकर तथा दवाई के रूप में अपने दायित्‍व का निर्वहन करती है। इसीलिए कहा गया है आम के आम और गुठलियों के दाम।
 '' देर आयद दुरूस्‍त आयद'' या सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते'
की तर्ज पर फिर से संयुक्‍त परिवार रूपी आम के  वृक्ष की शीतल और घनी छाया में
आ जावे तो आम के मीठे फल की तरह सभी सुख उसकी गोदी में आ जावेगें।
        आम के वृक्ष की तरह ही संयुक्‍त परिवारभी  जागरण से शयन तक जनहिताय, जनसुखाय के काम ही करता रहता है। कहावत है, कि एक फुल से माला नहीं बनती उसके लिए कई रंगों के फूल चाहिए। इसी प्रकार संयुक्‍त परिवार की माला भी कई फूलों  जैसे कोमल रिश्तों  यानी दादा दादी, ताऊ ताई, माता पिता, भाई बहन आदि से गूथ कर बनती है ।
        संयुक्‍त परिवार का पहला शब्‍द ''स'' कई शब्‍दों की उर्जा का समेटे हुए है जैसे सुख, सेवा, स्‍वागत,
समानता, सरलता, मेहमान नवाजी आदि आदि। भले ही संयुक्‍त परिवार,एकल परिवारों में सिमट रहे हैं, किन्‍तु वे अपने महत्‍व को बरकरार बनाये हुए हैं। हम महसूस करें की संयुक्‍त परिवार  की प्रभात में  कितनी ताजगी समाहित है। अल सुबह अनाज पीसती घटिटयों  के सुर से सजी महिला संगीत की मीठी मीठी धुन, कुवों पर खनकती  गगरा बटलोई  के मिलन की मधुर ध्‍वनि, प्रणाम और आशीर्वाद की सरसराहट, मां की थपकी से बच्‍चों का जागना, आदि आदि। संयुक्‍त परिवार की सुबह, दोपहर, सांझ और रात के अंक में कर्त्‍तव्‍य, कर्मठता, ममता और आत्‍मीयता का भाव छिपा रहता था। संयुक्‍त परिवार के सदस्‍यों के दिलों में धन लिप्‍सा का भाव न होकर एक दूसरे के दिलों में समा जाने की जिजिविषा रहती थी। घर का मुखिया सबके अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य  का ध्‍यान रखते हुए कहा करते थे, कि सुबह का आहार राजा की तरह, दोपहर का युवराज की तरह और रात का भोजन कंगाल  की तरह याने हलका  करना चाहिए। बीमारीयों का संयुक्‍त  परिवार से कोई रिश्‍ता नहीं होता था। यदि कुछ हुआ भी तो दादी नानी की दवाई घर के चौके की डिस्‍पेन्‍सरी से दे दी जाती थी। परिवार के सभी सदस्‍य  सुरक्षि‍त और स्‍वतंत्र  जीवन यापन  करते थे।
      अब आज के एकल परिवार के हालात पर गौर करें तो मोरनिंग की शुरूवाद शमशान सी वीरानी से शुरू होती है। देरी से उठना, झाडू, पोछे, बर्तन और खाना बनाने वालीयों पर निर्भर रहना, बच्‍चे आया के सुपुर्द, सौंदर्य प्रसाधनों की भरमार, क़ृत्रिम हंसी का झलकना, नौकरी का टेंशन, चेहरे पर चिडचिडाहट, बुजुर्गो से एलर्जी, आत्‍मविश्‍वास की भारी कमी, असुरक्षितता, पति पत्‍नी की नोक झोंक जैसे अनेक जोखीमों के जख्‍मों से पीडित होता है। कितना कुछ कष्‍ट है,  एकल परिवार में किन्‍तु फिर भी थोथा चना बाजे घना  की तर्ज पर नकली सुख का जीवन जी रहे हैं।
      '' देर आयद दुरूस्‍त आयद'' या सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते' की तर्ज पर फिर से संयुक्‍त परिवार रूपी आम के  वृक्ष की शीतल और घनी छाया में आ जावे तो आम के मीठे फल की तरह सभी सुख उसकी गोदी में आ जावेगें। एकल परिवार की ग्रहिणियां संयूक्‍त परिवार में यदा कदा कुकुरमुत्‍तों की तरह उत्‍पन्‍न होने वाले वाद विवादों नजर अंदाज कर एकल से विविधता में आने का साहस करें तो अधिक लाभ में रहेगी ।
  उद्धव जोशी, एफ 5/20 एलआयजी ऋषिनगर उज्‍जैन
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