होली के शुभ अवसर पर शुभ कामना सहित प्रस्तुत है एक विचार।
जब भी कोई त्योहार या सुख-दुख के प्रसंग आते हें, तो सभी नजदीकी याद आते हें। देश में रह रहे तो आपस में अकसर मिल ही जाते हें, पर सुदूर रोजी-रोटी, ज्ञान, मान, धन, आदि अनेकों कारणो से विदेशों में निवास कर रहे अपनों की कमी खलती है, और एसा भी नहीं की यहाँ केवल हमको ही यह मिसींग तकलीफ देती है, विदेशों में रह रहे आत्मीयों को भी कष्टकारी होती है।
यदि एक से अधिक पुत्र या पुत्री किसी माता-पिता के हें, ओर उनमें से एक दो ही बाहर हें तो फिर भी ठीक है, पर जिनके एक या दो संतान ही हें ओर वे दोनों ही विदेश में हें, तो फिर उन माता-पिता के मानसिक कष्ट को समझपाना अन्य के लिए मुश्किल होता है।
कष्ट उठाकर बच्चो को ऊंची से ऊंची तालीम दी, अधिक पड़ने के लिए विदेशों में भी भेजा, गर्व से छाती भी फूल गई। जब तक शरीर ने साथ दिया तबतक समाज में बेटे बेटियों की उपलब्धि पर गर्व करते रहे, पर जब शरीर कमजोर हुआ तो पुत्र पौत्र का सानिध्य सुख की चाह कचोटने लगते है।
यह बात तो ठीक है, की सभी को मरना तो एक दिन है, ही और कोई पुत्र-पौत्र या कोई खुशी और धन की प्रचुरता भी इसको रोक नहीं सकती, पर अपने नज़दीकियों का विलगाव मौत को ओर भी कष्ट कारी बनाता है। यह भी कोई भुक्त भोगी या किसी को इस कष्ट को उठाते हुए देख कर ही जाना जा सकता है।
विदेशो में रहने वालों के कष्ट भी वे ही जानते हें, हम यहाँ दूर से बेठकर केवल उनको हमेशा सुख उठाते समझते रहते हें, और उनसे कुछ न कुछ पाते रहने की से खुश भी बहुत होते हें। पर उनके लिए दस बीस साल तो ठीक है, पर उनकी नई पीड़ी जो वहाँ विदेशों में पल बड्कर जब वयस्क होती है तब ही उनके माता पिता को भी क्या देश की याद न आती होगी यह समझना भूल होगी।
हाँ तब तक देर हो चुकी होती है। और कहावत सिद्ध हो जाती है की "अब पछताए का हौत है जब चिड़ियाँ चुग गई खेत" ।
होली के इस अवसर पर आशा है की पहिले ही समझ लेंगे सब कुछ ।
हौली की शुभ कामना सहित प्रस्तुत है एक विचार।
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समाज हित में प्रकाशित।
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