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महासभा अध्यक्ष(औदीच्य ब्राह्मण समाज) के चुनाव में बड़ी -छोटी सम्भावाद|

महासभा अध्यक्ष(औदीच्य ब्राह्मण समाज) के चुनाव में बड़ी -छोटी सम्भावाद|
अखिल भारतीय औदीच्य महासभा के चुनाव 11 जनवरी 15 में हुए हंगामें के विषय में एक बात शोध में हमारे सामने आई है, वह यह की चूँकि श्री रघुनन्दन जी शर्मा छोटी सभा के हैं इसलिए उन्हें नहीं बनाने देना| हालाँकि
यह भी सही है की बड़ी सभा के बहुत से सदस्य और  प्रभावशाली इस छोटी बड़ी संभा भेद को नही मानते|
इस परिस्थिति में में यह बात बता देना आवश्यक समझ्र रहा हूँ, की सभी समाज जन जिनमें बड़ी सभां के लोग भी सम्मलित हें, वे स्वयं नहीं जानते की बड़ी संभा कहाँ से उत्पन्न हुई, |
यह जानने के लिए श्री चतुर्भुज पंड्या एवं श्री ज्यो. पं राधेश्याम जी दिविवेदी द्वरा सन १९३८ में औदीच्य बंधू

कार्यालय मथुरा द्वरा प्रकाशित "औदीच्य ब्राहमणों का इतिहास" के पेज क्रमांक 39-40 पड़ना चाहिए (संलग्न फोटोकापी) जिसमें यह स्पष्ट है, की बड़ी सभां के सदस्य वे हें, जिन्हें सिद्धपुर पीठ ने,[मुगुल सना की अधीनता स्वीकार कर सेना में भरती हो उनके लिए कार्य किया था, इसी लिए उन्हें जागीरें प्रदान की गई थी, के कारण से] प्रायश्चित न करने पर जाती बहिष्कार किया था, और शेष समाज को इनसे रोटी-बेटी सम्बन्ध न रखने का निर्णय/निर्देश दिया था| इसी इसी कारण पिछले तीन चार सो वर्ष से इन्हें अलग रखा गया था|

आज समाज की परिस्थिति बदल गई है, इस बदली परिस्थिति में धीरे धीरे नव पीडी ने इन्हें स्वीकार कर लिया है, और अब आपस में कई संबध भी किये जा चुके हें, और वर्तमान की भी यही पुकार है, की इस भेद को समाप्त किया जाये, इसके बाद भी इस भेद को बनाये रखने की कुछ लोगों की प्रवृत्ति समाज के लिए घातक सिद्ध क्या नहीं होगी| पिछले दिनों उज्जैन की एक धर्मशाला में "केवल बड़ी सभा को ही ट्रस्टी  बनाने का फेसला" भी इसी बात का प्रमाण है|

केवल बड़ी सभा के हैं इस नाम से बड़े नहीं हो सकते यह छोटे दिल वाला होने का ही प्रमाण है|
समस्त एसी सोच वाले महानुभावों से निवेदन है, की आज जब उनमें से कई जबकि अन्य और  निम्न जातियों में भी  सम्बन्ध स्वीकार रहे हें, रोटी खाने विषयक सारे विषय गौण हो गए हें और अब छोटी सभां  भी गले लगाने तैयार है उंका छोटी बड़ी सभा का भेद प्रदर्शित करना निंदनीय नहीं है क्या?
यह भी स्मरणीय है की औदीच्य बंधू पत्रिका की स्थापना और अखिल भारतीय महासभा की स्थापना में सभी में छोटी संभा के सदस्य ही थे, और बड़ी संभा को  शामिल करने में भी ये ही छोटी सभां के महापुरुष ही थे|
   आज भी यदि यदि छोटी- बड़ी सभां की शक्ति संतुलन की बात की जाये तो यह जानना और भी जरुरी है की बड़ी संभा केवल उज्जैन-इन्दोर और आसपास क्षेत्र में ही सीमित है, अन्य सारे देश प्रदेश में इनका कोई अस्तित्व नहीं| कही एसा न हो की छोटी सभा के लोग संगठित होकर उलटा जबाब देने पर उतारू हो जाएँ|
अब भी समय है इस निम्न स्तरीय धारणा को की 'बड़ी सभा बड़ी है' निकाल फेंकें, और संगठन को मजबूत करें. अन्यथा सारा समाज नष्ट होने में अब देर नहीं| आपसी महाभारत में सभी पराजित हुए यह सबको ज्ञात है|
डॉ मधु सूदन व्यास उज्जैन 
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