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बड़े काम की छोटी बातें

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बहुत सारे लोग अपनी रेखा बड़ी करने के लिए दूसरों की रेखा मिटाते हें, वे इतने सक्षम या स्वयं पर विश्वास नहीं कर पाते की वे बड़ी रेखा खींच पाएंगे। जीवन में इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा के चलते लांछन, दोष, विरोध, बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी, बहुत तरह कि गंदगी पर गिरेगी। 
जैसे कि, आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आलोचना करेगा, कोई सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा। 
कोई तुमसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आदर्शों के विरुद्ध होंगे।
हतोत्साहित होकर बुराई के सामने समर्पण करने के बजाय या अनावश्यक वाद विवाद छोड़कर साहस के साथ डटे रहना है, अनुभवों से सीख लेकर, उसे सीढ़ी बनाकर, बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है। बस चलते जाना हे। चैरवेती-चैरवेती।
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सोच कर बोलें न की बोल कर सोचें-
जो मन में आए वह बोलने से बाद में अक्सर वह सुनने मिलता हे जो उसे स्वयं के लिए पसंद नहीं होता। व्यवहार में चतुर होने का तात्पर्य हे, हम अपने शब्दो का चुनाव समझदारी से करें। हमारे शब्द स्वयं या अन्य की भावनाओं को चोट पहुचा सकते हें।
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एक किसान एक बेकर को रोज एक किलो घी बेचता था एक दिन बेकर ने यह जानने के लिए की घी एक किलो हे या नहीं, तोल कर देखा, ओर पाया की वह कम हे। इस पर वह किसान को अदालत में ले गया। जज ने किसान से पूछा की उसने घी कम क्यों तोला। किसान कहने लगा की हुजूर में तो अनपढ़ हूँ, मेरे पास तोलने के लिए कुछ भी नहीं केवल एक तराजू हे। 
तो फिर तुम केसे तोलते हो -जज ने पूछा? 
किसान ने जवाव दिया हुजूर इन्होंने तो मुझसे घी कुछ दिन से ही खरीदा हे पर में तो कई वर्षों से इनसे रोज एक किलो ब्रेड खरीद रहा हूँ, रोज सुबह जब ये ब्रेड देने आते हें, तब में उसी ब्रेड से तोंल कर इन्हे घी दे देता हूँ। यदि इस कमी में दोष हे तों इनका ही हे। 
जिंदगी में हमको वही वापिस मिलता हे जो हम दूसरों को देते हें।
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बहुत से प्रतिभाशाली लोग सफलता केवल इसीलिए नहीं पा पाते क्योकि उनमें शिष्टाचार ओर अच्छे व्यवहार की कमी होती हे। 
शिष्टाचार का मतलव हे -दूसरों का ख्याल रखना जेसे बुजुर्गों अपंगों को बेठने स्थान देने से लेकर एक स्माइल या मुस्कान, या धन्यवाद देना ।
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जब भी हम सम्मान पाने वालों की सूची देखेँ , तो पाएंगे की उस सूची मे
एक भी एसा नाम नहीं हे, जिसने दुनिया से कुछ लिया हे, सभी नाम एसे दिखते हें जिन्होंने दुनिया को कुछ दिया हे।
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सच्ची दोस्ती में एक दूसरे की मदद करना एहसान नहीं होता। यह दोस्ती की अभिव्यक्ति होती हे, उसका मकसद नहीं। 
यदि दोस्ती मकसद बन जाए तो वह दोस्ती नहीं होती उसे दोस्ती नहीं कहते। जेसे पड़ोसी से दोस्ती प्रभावशाली व्यक्ति डाक्टर,वकील,धन सम्पन्न, आदि प्रकार के व्यक्तियों से दोस्ती। 
दोस्ती त्याग, ओर परीक्षा लेती हे। दोस्ती ओर रिश्तों को बनाए रखने के लिए निष्ठा,,समझदारी, समय, ओर प्रयास ओर अपने आराम की कुर्बानी देना होती हे।
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कभी कभी असफल हो जाने पर अधिकतर लोग मायूस हो जाते हें, ओर वे स्वयं को असफल या लूजर मनाने लगते हें। असफलता मिल सकती हे इसका अर्थ यह नहीं की वे असफल हें। जेसे की यदि किसी को मूर्ख बनाया जा सकता हे, अर्थ यह नहीं की वह मूर्ख हे। मैदान छोड़ने वाला व्यक्ति ही असफल होता हे।
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हम जितने अधिक सुविचारों को दूसरों को बताते हें, उससे उतनी ही अधिक प्रेरणा स्वयं को मिलती हे। दूसरों को हर रोज प्रेरणा देने की कोशिश स्वयं को भी सच्ची राह दिखने का ही एक रास्ता हे।
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हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है। हम कोई काम प्रारम्भ करते है। शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के कमेंट्स की वजह से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के अलावा कुछ नही बचता।
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जीवन मे अच्छे संबंध ओर सहयोग के बिना सफलता प्राप्त करना कठिन हे। ओर संबध अपने आप नहीं बनते उन्हे बनाना पड़ता हे, ईर्षा, द्वेष, स्वार्थ, अहंकार, ओर रूखा व्यवहार त्याग कर, दयालुता, आपसी समझ, ओर आत्म-त्याग (स्वयं की सुविधा न होते हुए भी साथ देना), के खाद -पानी से सींचकर, महत्व देकर, गंभीरता पूर्वक विश्वास की नीव पर रिश्ते की इमारत बनाना चाहिए। कोई रिश्ता या मित्रता अक्सर पूर्ण नहीं होती, सम्पूर्ण पूर्णता की तलाश मे निराशा हाथ लगती हे।
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एक अच्छा मनुष्य वह हे जो हमेशा अपने से छोटों से नरमी, व्रद्धों से करुणा, संघर्ष शील के साथ हमदर्दी से, ओर कमजोर ओर गलती करेने वाले के साथ सहनशोलता से पेश आए, क्योकि कभी न कभी सभी को इस परिस्थिति से गुजरना होता हे।

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जीवन में कुछ बड़ा करना हे,
 तो कुशल ओर समझदार बनाना होगा। पूर्ण कुशल ओर समझदार होने का अर्थ हे, छोटी छोटी बातों में ओर बहस में न उलझना। 
विवाद होने पर बहस नहीं तर्क होना चाहिए। बहस से आग निकलती हे तर्क से प्रकाश। 
बहस अहंकार से पेदा होती हे, तर्क सीखने की इच्छा से। 
बहस मे अज्ञानता की अदला बदली होती हे, तर्क मेन ज्ञान की। 
बहस के द्वारा लोगों के मिजाज का पता चलता हे।
तर्क से समझदारी का। बहस मे यह साबित किया जाता हे की कोन सही हे।जबकि तर्क मे साबित होता हे की क्या सही हे।
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जो व्यक्ति दूसरों की बात करता हे वह वह छोटी सोच वाला [बोद्धिक स्तर में कम] , जो किसी चीज की बात करता हे वह मध्यम सोच वाला ओर जो विचारों की बात करता हे वह उत्तम सोच वाला बुद्धिमान होता हे।
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तपस्या 
मन की आवाज एक आत्म सुझाव होता हे। यह अवचेतन मन को प्रोग्रामिंग करने का एक तरीका हे। जो सकारात्मक या नकारात्मक कुछ भी हो सकते हें। इनको बार बार दोहरने से मन की गहराईयों में पहुचकर वे हमें वेसा ही बनाते हें। इसी प्रकार हम जो भी पाना या बनाना चाहते हें उसकी छवि मन में बनाते हें यह ही कल्पना होती हे, आत्म सुझाव ओर कल्पना एक साथ चलती हें। 
सकारात्मक विचार पाने के लिए एकांत में चिंतन जिसे तपस्या भी कह सकते हें से ही कोई व्यक्ति तपस्वी बन सकता हे। नकारात्मक विचार का सतत चिंतन उसे आसुरी प्रव्रत्ति तक पहुचा कर उसके अनुरूप बन देते हें। देव या दानव इसीतरह से बन जाते हें।
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प्रांजल  व्यास  
एक बार महान रूसी लेखक टॉल्सटॉय से उनके एक मित्र ने कहा- मैंने तुम्हारे पास एक योग्य व्यक्ति को भेजा था। उसके पास उसकी प्रतिभा के कई प्रमाणपत्र थे। लेकिन आश्चर्य है कि तुमने अपने सचिव के पद के लिए उसे नहीं चुना। मैंने सुना है कि तुमने उस पद के लिए जिस व्यक्ति को चुना है उसके पास ऐसा कोई प्रमाणपत्र नहीं था। आखिर उसमें ऐसा कौन सा गुण था कि तुमने मेरी बात की उपेक्षा कर दी? टॉल्सटॉय ने मुस्कराते हुए कहा- मैंने जिसे चुना है उसके पास अमूल्य प्रमाणपत्र हैं। मित्र ने आश्चर्य से पूछा-ऐसा क्या है उसके पास, जरा मैं भी सुनूं। टॉल्सटॉय ने कहा- उसने मेरे कमरे में आने से पहले इजाजत मांगी थी। अंदर आने से पहले उसने दरवाजों को इस तरह पकड़ कर धीरे-धीरे सटाया कि आवाज न हो। 
उसके कपड़े साधारण पर साफ-सुथरे थे। उसने बैठने से पहले कुर्सी साफ कर ली थी। उसमें गजब का आत्मविश्वास था। वह मेरे प्रश्नों के ठीक और संतुलित जवाब दे रहा था। मेरे प्रश्न समाप्त होने पर वह मेरी इजाजत लेकर चुपचाप उठा और चला गया। उसने किसी तरह की चापलूसी या चयन के लिए सिफारिश की कोशिश नहीं की। ये ऐसे प्रमाणपत्र थे जो बहुत कम व्यक्तियों के पास होते हैं। मेरा मानना है कि ऐसे गुणसंपन्न लोगों के पास यदि लिखित प्रमाणपत्र न भी हों, तो कोई बात नहीं। असली प्रमाणपत्र तो व्यवहार है। लिखित प्रमाणपत्र तो कोई भी हासिल कर सकता है। तुम ही बताओ, मैंने ठीक किया कि नहीं। यह सुनकर टॉल्सटॉय का मित्र निरुत्तर रह गया।
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Make habits what u want in life, once good habits comes in life bad habits goes out tomatically. Its just like light... its presence means isappearing the darkness
Prakash R C Pandey.
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Jitendra Trivedi

प्रेम केवल मानव ही नहीं महसूस करता बल्कि प्रेम की अनुभूति कुदरत की हर रचना में अलग-अलग रूपों में उजागर होती है। इसलिए हर धर्म में प्रेम को ईश्वर से साक्षात्कार के लिए अहम माना गया है। व्यावहारिक नजरिए से भी प्रेम ऐसा जीवन मूल्य है़, जो सच, भलाई, सेवा, त्याग की तरह जिंदगी में वास्तविक सुखों को पाने के लिए बहुत जरूरी है। असल में प्रेम ऐसा अहसास है जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता है, क्योंकि यह कोई सोच नहीं है। अलग-अलग व्यक्ति में और उम्र के हर पड़ाव पर प्रेम का अहसास भी अलग-अलग होता है। सरल शब्दों में कहें तो यह कहा जा सकता है कि प्रेम करने वाले या प्रेम पाने वाले दोनों आत्मा में सुकून पाते हैं। यहां जानते हैं धर्मशास्त्रों के नजरिए से जीवन में प्रेम किन-किन रूपों में प्रकट होता है -

लौकिक प्रेम - प्रेम का यह रूप साधारण मानव की जिंदगी में दिखाई देता है। जहां मानव का दौलत, प्रतिष्ठा, सौंदर्य, स्वाद के प्रति आसक्ति या लगाव के रूप में प्रेम दिखाई देता है। यह लौकिक प्रेम कहलाता है। इसमें कई अवसरों पर मानव हित और स्वार्थ के चलते भी संबंध बनाता है। जिसे स्वार्थ पर आधारित प्रेम कहते हैं।

अलौकिक प्रेम - अध्यात्म में डूबकर ईश्वरीय सत्ता पर भरोसा, पूरी प्रकृति को ईश्वर की रचना मान प्रेम, ईश्वर को जेहन में रख आदर्श और मर्यादा पालन अलौकिक प्रेम कहलाता है।

मोहजन्य प्रेम - माता-पिता और संतान, पति-पत्नी या अन्य मानवीय रिश्तें में एक-दूसरे से लिए प्रेम मोहजन्य प्रेम कहलाता है।

नि:स्वार्थ प्रेम - प्रेम का यह रूप सेवा भावना में दिखाई देता है। जिसमें व्यक्ति कुछ देने के बदले लेने का भाव नहीं रखता। बिना किसी हितपूर्ति के वह समर्पण भाव से दूसरों के लिए हरसंभव मदद करता है। ऐसा प्रेम पावन-पवित्र और श्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि यह प्रेम करने और पाने वाले दोनों को आत्मिक सुख देता है।
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Sunil Yajurvedi
भगवान महावीर के अनेक शिष्य थे, जो उनसे कई गंभीर विषयों पर सार्थक चर्चा करते थे। ऐसी चर्चाओं से शिष्यों को ही लाभ प्राप्त नहीं होता था, बल्कि उनके द्वारा जनता के मध्य भी ज्ञान का प्रचार होता था। एक दिन महावीर स्वामी ने अपने शिष्यों से पूछा कि मनुष्य के पतन के क्या कारण हो सकते हैं? शिष्यों ने सोचा-विचारा। फिर किसी ने अहंकार बताया तो किसी ने काम वासना।

किसी शिष्य का विचार था कि लोभ मानव के पतन का मूल कारण है तो कोई यह मानता था कि क्रोध इसकी जड़ है। सभी की बात सुनने के बाद महावीर ने कहा - मान लो कि मेरे पास एक कमंडल है, जिसमें काफी मात्रा में पानी समा सकता है। यदि उसे नदी में यों ही छोड़ दिया जाए तो क्या वह डूबेगा? शिष्यों ने इंकार में सिर हिलाया। महावीर ने पूछा - यदि उसमें छिद्र हो तो? शिष्यों ने कहा - तब वह अवश्य डूबेगा।

महावीर ने पुन: प्रश्न किया - यदि छिद्र दाईं ओर हो तो? तब एक शिष्य बोला - छिद्र दाईं ओर हो या बाईं ओर, वह डूबेगा ही। तब महावीर ने समझाया - मानव जीवन भी उस कमंडल की तरह ही है। उसमें दुगरुण रूपी छिद्र जहां हुआ, समझ लो वह डूबने वाला है। काम, क्रोध, लोभ, अहंकार आदि में कोई भेद नहीं है। कथा का सार यह है कि दुगरुण कोई भी हो, व्यक्ति का जीवन बर्बाद करने हेतु पर्याप्त है क्योंकि उससे व्यक्ति की विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है और उसके निकट संबंधी भी उससे दूरी बना लेते हैं।
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राजेन्द्र शर्मा 
Rajendra Sharma
ज़िंदगी तो सभी के पास है पर जीना हर किसी को नही आता जैसे अर्थ सभी के पास है पर उसे कहाँ खर्च करना है ये कम लोग जानते है .....वाणी सभी के पास है पर उसका प्रयोग कब और कैसे करना है ये अल्प लोग ही जानते है|

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हर मित्रता के पीछे कुछ स्वार्थ जरूर छिपा होता है। दुनिया में ऐसी कोई मित्रता नहीं जिसके पीछे लोगों के अपने हित न छिपे हों, यह कटु है, किन्तु सत्य है। 


जब तक एक नदी में अन्य नदियाँ आकर नहीं मिलती ,तब तक उसमे उफान नहीं आता उसका वेग नहीं बड़ता ,उसी तरह जब तक सुप्त समाज में उन्नत विचार धारा आकर नहीं मिलती तब तक समाज में परिवर्तन नहीं आता और यही विचार धारा समाज की दिशा बदल देती है !===================
अनमोल वचन :

सफलता सबसे पहले आप के मन में घटित होती है| उसके बाद ही वह जीवन में उतरती है|

 स्वेट मार्डेन



जैसे जल के द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है, 

वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत करना चाहिए|

 वेदव्यास 



"मृत्यु जीवन का सबसे बड़ा सच है" |

 "तुम्हारा सत्य वहां है जहां तुम खड़े हो, जहां तुम्हारी जड़ें हैं" |

 "धर्म पर विश्वास करना नहीं, उसे जीना सीखें" |

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Rajendra Sharma
ध्यान रखिये हम खुद के बारे में जो कुछ कहते है वही औरो को याद रहता है उसी को लोग समय आने पर हमारी बात जाहिर करते है !
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जैसा हम सोंचते है वैसा ही हमारी अंतश्रवी ग्रंथियां हारमोंस हमारे शरीर में छोड़ती है जो हमारी सोंच को हकीकत में बदलने के लिए महत्वपूर्ण कारक है. 

जैसे की बीमारी में आप दवा ये सोंचकर ले रहे है कि मै बीमार हूँ तो आप बीमारी और बढ़ाते है और अगर ये सोंचकर लेते है कि मै ठीक हो रहा हूँ तो आप ठीक होने लगते है.
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जो हित कार्य में लगा है,जो पोषक है वह पिता है! जिसमे विश्वाश है? वह मित्र है ! जंहा जीविका है ,वही देश है !

वृहस्पति नीति सार

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जिस दिन हम अपनी गल्ती स्वीकार करने का साहस जुटा लेंगे उस दिन से हमें दूसरों में कमियां नज़र ही नहीं आएँगी|

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किसी ने सच कहा है ... हर सफल व्यक्ति सुंदर नही होता पर सफलता हर व्यक्तिको "सुंदर" बना देती है ... तो आप तैयार है सुंदर बनने के लिए !
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ध्यान रखिये हम खुद के बारे में जो कुछ कहते है वही औरो को याद रहता है उसी को लोग समय आने पर हमारी बात जाहिर करते है !
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