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व्‍यावहारिक जीवन में धारण करने योग्‍य संकल्‍प

औदीच्‍य ज्ञाति के परमाराध्‍य इष्‍टदेव श्री गोविन्‍द माधव प्रभु का श्री चित्र, विविध परिस्थितियों में बिखरे औदीच्‍य बन्‍धुओं को एकसूत्र में आबध्‍द करने एवं अपनी गौरवमय संस्‍क्रति के संरक्षणार्थ समाज की भावना है कि प्रभुगोविंद माधव का चित्र भारत के समस्‍त औदीच्‍य परिवारों में पूजित हो । इष्‍टदेव के नित्‍य स्‍मरण , अर्चन, वन्‍दन, तथा चित्र प्रकाशन का पुनीत लक्ष्‍य तभी शुभ फलदायी होगा जब शहरों, गांवो कस्‍बों के अन्‍दर उंच नीच के भाव तथा धनी निर्धन के बीच की दूरी समाप्‍त हो साथ ही ज्ञाति सेवा में लगे विभिन्‍न संगठन परस्‍पर सौहार्द को बढाते हुए सर्वागीण समाजोत्‍थान की दिशा में अगसर हों ।

अत हम इष्‍टदेव का स्‍मरण करते हुए निम्‍नलिखिल संकल्‍पों को अपने व्‍यावहारिक जीवन में धारण करने का व्रत लें ।

1 ; स्‍वसंस्‍क्रति अनुसार आचार विचार का पालन ।
2; ज्ञाति सेवा कार्यो में उत्‍साहयुक्‍त सहयोग ।
3; अपनी ब्रहम संस्‍क्रति अनुसार नित्य संध्‍या वंदन ।
4; अपने ज्ञाति बन्‍धुओं के सुख दुख में सदैव सहयोग।
5; परस्‍पर सौहार्द स्‍थापित करना ।
6; विवाहादि कार्यो में आडम्‍बरयुक्‍त धन प्रदर्शन तथा अपव्‍यय न करना।
7; द‍हेज लेने देने जैसी कूरीतियों से दूर रहना ।
8; नारी से सम्‍मानजनक तथा समान व्‍यवहार ।
9; शराब,धूम्रपान,एवं अखाध्‍य वस्‍तु सेवन कर्ताओं से स्‍वयं को पूर्णतया प्रथक रखना ।
जय गोविन्‍द माधव् 

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