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निमंत्रण पत्र की पदयात्रा

निमंत्रण पत्र की पदयात्रा
 निमंत्रण पत्र की यात्रा मानव की उत्‍पत्ति के साथ ही प्रारम्‍भ हुई और परिवर्तन के साथ निरंतर आगे बढ रही है। निमंत्रण पत्र ही वह सशक्‍त माध्‍यम है  जो हमें अपनों से परिचित कराता है। 
सामाजिक, मांगलिक, धार्मिक, राजनैतिक, साहित्यिक  या अन्‍य किसी प्रकार का आयोजन हो संबंधित सदस्‍यों को बुलाने के लिए निमंत्रण पत्र ही हमारा सहयोगी मित्र है। निमंत्रण कार्ड में विषय वस्‍तु,आयोजन का स्‍थान,दिनांक , जैसी महत्‍वपूर्ण जानकारियां उपलब्‍ध रहती है। जिसके अनुसार ही आनेवाले अतिथि अपना कार्यक्रम बनाते हैं। निमंत्रण पत्र ने अपनी कठिन से कठिन यात्रा किन परिस्थितियों  में प्रारम्‍भ की और आज वह किस पायदान पर है , उसी से जाने उसका हाल ;
मौखिक सूचना ;
    स्रष्टि के प्रारम्‍भ में मानवीय संसार सिमटा हुआ था । आवागमन के साधनों ,प्रेषण के माध्‍यमों,एवं लेखन कला का विकास नहीं हुआ था । इस कारण पहले मौखिक रूप से स्‍वयं,नाई या अन्‍य माध्‍यमों से सूचना भेजी जाती थी । सूचना सम्‍प्रेषण का माध्‍यम मौखिक  और शाब्दिक था किन्‍तु उसमें अपनत्‍व का भाव भरा होने से लोग खीचें चले आते थे ।
लिखे हुए निमंत्रण पत्र
     धीरे धीरे समाज का फैलाव होने लगा,रिश्‍तेदारियां बढने लगी, आवागमन के साधन  सुलभ होने लगे तथा शिक्षा का प्रसार भी प्रारम्‍भ हो गया । स्‍याही,कलम,और कागज का चलन प्रारंभ  हूआ । समयानुसार एक ही कागज पर राजमान राजेश्री  जोग लिखी-------------लिखकर गांव  के सभी स्‍वजनों तथा स्‍नेहीजनों  के नाम लिखकर कार्यक्रम की सूचना भेज दी जाती थी । जिस व्‍यक्ति को यह निमंत्रण भेजा जाता था वह प्रत्‍येक परिवार तक सूचना पहुचाता ही था । कूछ जातीयों में तो निमंत्रण पत्र में नामों के स्‍थान पर सकल पंच ही लिख दिया जाता था । उस समय आपसी सदभाव इतना गहरा था कि आयोजन की जानकारी मिलते ही मेहमान मेजबान समझा कर सारी व्‍यवस्‍था में हाथ बटाता था । उस समय बहुत ही कम खर्च में सभी को सूचना चली जाती थी । यदि कोई मेहमान कारण वश नहीं आ पाता तो उसके बारे में पूरी जानकारी मेजबान व्‍दारा ली जाती थी । यह थी आत्‍मीयता।
मशीन पर छपते निमंत्रण पत्र ;
      विज्ञान की प्रगति ,संचार माध्‍यमों के रूप में तार और दूरभाष के व्‍दारा सम्‍पर्क बढने लगा । प्रिटिंग मशीनों का आविष्‍कार हुआ और निमंत्रण पत्र छपने लगे । धीरे धीरे भाषा में भी निखार आया । निमंत्रण पत्रों में अब सारे गांव के बजाय एक परिवार के नाम एक पत्र में लिखे जाने लगे । इनमें संख्‍यात्‍मक व्रध्दि होने लगी । स्‍थानीय या आस पास के निमंत्रण पत्र तो हाथों हाथ और दूर के पत्र डाक के माध्‍यम से भेजे जाने लगे।
आफसेट मशीन पर छपते निमंत्रण पत्र
       समय के साथ कम्‍प्‍यूटर और आफसेट मशीनों का आविष्‍कार हुआ जिन पर छपने वाले निमंत्रण पत्रों  की सुन्‍दरता और सजावट मन को छूने लगी । थोडे समय में अधिक काम होने लगा । मंहगे कार्ड बाजार में आगये ,भाषा सरल और साहित्यिक होगई । निमंत्रण पत्रों में शेरो शायरी के कई विधाओं का सम्मिश्रण होने लगा।
निमंत्रण पत्रों को बाटने की व्‍यवस्‍था
      अब व्‍यक्तिगत रूप से निमंत्रण बाटने का चलन बढ सा गया है इसमें समय तो अधिक लगता है किन्‍तु उसका प्रभावी असर सामने वाले पर अवश्‍य गिरता है औरविशेष परिस्थितियों को छोड कर  उसे आना ही पडता है। यहां एक बात तो अवश्‍य महत्‍वपूर्ण है कि शोक पत्र तो किसी को भी किसी अन्‍य के हाथ भेज देने पर  कोई टिका टिप्‍पणी नहीं होती  किन्‍तु मांगलिक आयोजनों के कार्ड स्‍वजनों और स्‍नेहीजनों के पास कितने सम्‍मान के साथ पहुंचाया जाना है इस बात का बहुत बारीकी से ध्‍यान रखना आवश्‍यक है। अन्‍यथा उनकी नाराजगी की मार झेलना पडती है।
     पहले निमंत्रण कार्ड पतले कागज पर छपते थे जिन्‍हे जेब में रखने में बडी सुविधा होती थी किन्‍तु वर्तमान समय में आमंत्रण कार्ड लंबाई,चौडाई और मोटाई में भारी भरकम हो जाने तथा मोडने पर उसकी सुन्‍दरता का दाग लगने के डर  के कारण उसे ले जाने वाले को बडी असुविधा का सामना करना पडता है। यदि परिवार साथ हो तो आदमी महिलओं के सुपुर्द  कर देता है किन्‍तु यदि अकेला हो तो हाथ में हिलाकर ले जाने के सिवा कोई चारा नहीं बचता है। आजकल तो किसी रिश्‍तेदार के कार्यक्रम में जाने पर अपने कार्यक्रम के कार्ड वहीं लिख कर देने की परम्‍परा प्रारम्‍भ होने के साथ ही अन्‍य आस पास वालों के निम्रत्रण कार्ड भी दे दिए जाते है  जिन्‍हे सुरक्षित रूप में संबंधितों तक पहुंचाने का बोझ मन पर बना रहता है । कई बार तो नाम स्‍मरण नहीं होने की दशा में कोरे कार्ड यह कह कर दे दिये जाते हैं कि फलां फला के नाम लिख कर उन्‍हे दे देना । कई बार तो ऐसे भूल भूलैया वाले कार्ड संबंधितों तक पहुचते ही नहीं है। आजकल तो कई फोल्‍डरों वाले मंहगें कार्ड चलन में है जिनके लिऐ लोग सामने तो प्रशंसा कर देते हैं किन्‍तु बाद में कसीदा पढते हैं कि यह तो पैसे वालों का काम है । पैसों की बरबादी के सिवा कुछ नही है। आजकल निमंत्रण पत्र के उपर ही प्रीतिभोज का दिनांक समय आदि लिख दिया जाता है तो कई सज्‍जन तो लिफाफा खोलने का भी कष्‍ट नहीं करते है।
      आजकल शादी के कार्डो में बाल मनुहार,मीठी मनुहार, बाल विनय आदि कई नामों से कविता शैली में बच्‍चों की ओर से भी आने का निवेदन किया जाता है। यह अच्‍छी परम्‍परा है इससे परिवार के बच्‍चों को सम्‍मान तो मिलता ही है रिश्‍तेदारों को उनके नाम की जानकारी और अपने बच्‍चों के नाम रखने वालों को नये नये नाम मिल जाते हैं।
        शादी के निमंत्रण पत्रों में प्रीतिभोज के लिये नई नई परिभाषाऐं जुडती जा रही है। जैसे आपके आगमन तक,सुनहरी शाम से ढलती रात तक,तारों भरी छांव तक,गोधुली बेला से चांद निकलने तक ,आकाशीय छटा तक आदि आदि । स्‍वागत शब्‍दावली में विनीत,प्रतिक्षारत,उत्‍सुक नयन,राह निहारे,स्‍वागतातुर,स्‍नेहाधीन, आत्‍मीय वंदन जैसी कई नवीन शब्‍दावली का उपयोग होने लगा है। कार्यक्रमों के भी आकर्षक नाम जैसे परिणय प्रसंग,मंगल उत्‍सव,मंगल बेलाऐं,मंगल क्षणिकायें,शगुन के पल,लम्‍हे शगुन के मंगल प्रसंग आदि ।
निमंत्रण पत्रिकाओं में नवीन प्रयोग
    वैसे तो भारतीय परंपरा मे पत्रिकायें अपनी अपनी भाषा में ही छपवाई जाती है किन्‍तु अब प्रयोग के तौर पर  पत्रिका के मेटर को कई भाषाओं में अनुवादित किया जा रहा है ताकि समझने में कोई असुविधा न हो । एक परिवार ने तो निमंत्रण की सीडी तैयार कर जिसमें आयोजन की रूपरेखा और शादी के मंगल गीतों को समाविष्‍ट किया गया । इस नवीन प्रयोग से निश्चित रूप से रोचकता के साथ संगह का रूझान भी लोगों में बढेगा। इससे निमंत्रण कार्डो की रोचकता और विस्‍तारित होगी । आपके पास भी निमंत्रण काडों के संबंध में नवीनतम जानकारी हो तो शेयर करें ।
                                                                                              उघ्‍दव जोशी ,उज्‍जैन
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ढोल के साथ ढोडी पिटवा कर भी सुचना /निमत्रण दिया जाता रहा था रतलाम जिले की तहसील जावरा में आज भी यह प्रथा देखी जा सकती हे। डॉ व्यास
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