डॉ॰ मधु सूदन व्यास
पौराणिक गाथाओं में वरदान के बारे में बहुत वर्णन मिलता है कि, प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी आदि वरदान दे दिया करते थे। इनमें मृत्यु कभी न हो यह वरदान प्रमुख रूप से देखने मिलता है। जिन्हे मिला वे सब आज भी अमर हें, यह सच है। इसका प्रमाण यही है की वे आज भी किसी न किसी रूप में याद किए जाते हें, प्रकारांतर से वे अमर हो गए हें।
हर व्यक्ति के मन मेँ कई सुझाव आते जाते रहते हें, कुछ उन विचारों को शेखचिल्ली जेसी कल्पना
समझकर भूल जाते हें, कुछ लोग जो विशिष्ट होते हें वे उन पर विचार करते हें। वास्तव मेँ मन
की आवाज ही एक आत्म सुझाव होता है। यह अवचेतन मन को प्रोग्रामिंग करने जैसा एक
तरीका हे। यह सकारात्मक या नकारात्मक कुछ भी हो सकता हें। इन आत्म सुझावों पर
गंभीरता पूर्वक चिंतन से वे मन की गहराईयों में पहुँचकर वे हमें वेसा ही बनाने
लगते हें। इसी प्रकार हम जो भी पाना या बनना चाहते हें, उसकी छवि मन में बनने लगती हे। यही
कल्पना होती हे, आत्म सुझाव ओर कल्पना एक साथ चलती रहती हें।
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"यश: शरीर: न् विनश्यति
[चाणक्य]"।
पौराणिक गाथाओं में
भी यही देखने मिलता है, की जिन्हे भी इस प्रकार का अमर होने का वरदान मिला उनका
शरीर का अंत तो हुआ ही था। पर वे आज भी यश या अपयश के साथ अमर तो हें।
यही बात अभिशाप या शाप पर भी कही जा सकती है। यह भी कह सकते
हें की जहां सकारात्मकता का परिणाम वरदान हें,
वहीं नकारात्मक्ता का परिणाम शाप हे।
पाने ओर प्राप्त कर पाने के लिए वह व्यक्ति
स्वयं जिम्मेदार होता हे। उसी तरह जेसे-
"बोया बीज बबुल का तो आम कहाँ से खाय"।
इन्द्र आदि देवताओं का वर्णन कई युगों तक मिलता है। इसी कारण
उन्हे भी अमर कहा गया। सामान्यत: अधिक समय तक शासन करने वाले शासक इतिहास मेँ याद
किए जाते हें, या अमर होते हें। परंपरागत अपने
नाम को पीढ़ी दर पीढ़ी चलाने या कहा जाए तो पद पर बेठने वाले शासकों के नाम भी वही [इंद्रादी]
रखने के कारण हर युग या लंबे समय तक इन्द्र का नाम चलते अमर हो गया था। वायु, अग्नि, बरुण
[जल या पानी] आदि नाम प्रकारांतर से राज्य के संबन्धित विभागों ओर उन पदों पर आसीन
विभाग प्रमुख/मंत्रियों के नाम बन गए थे। वे सभी देवेन्द्र सहित उन नामों से जन
सामान्य को सुख सुविधा आदि व्यवस्था देने के कारण पूजे गए। वहीं नकारात्मकता के चलते दानव या
राक्षस जनसामान्य का शाप या अभिशाप पाकर सुख नहीं उठा सके ओर प्रतिष्ठा प्राप्त न
कर सके पर अमर वे भी हें।

वर्तमान युग में भी इस प्रकार से
ही कोई अमर बन सकता है। वह भी वरदान पा सकता हे या आज के विज्ञान के वरदान का लाभ
उठा सकता है, आज उपलब्ध लेखन आदि को कागज से
लेकर नेट तक सुरक्षित रख ओर जन मानस तक उन्हे पहुंचा कर, या सकारात्मक कार्यों को अंजाम देकर
प्रचार तंत्र के सहयोग या वरदान से।
इस बारे में यह भी समझना होगा की यदि नकारात्मक भूमिका यदि इस
मंच पर अदा की जाती है, तो
भी अमर तो होंगे, पर एक खलनायक की तरह। ओर यह भी चूंकि
नकारात्मक भूमिका निभा कर अमर होना अपेक्षाकृत जितना आसान होता हे, उतनी ही यह नकारात्मक अमरता अल्पजीवी भी होती है, क्योकि ऐसा आसानी से हो जाने से मन इन्हे
शीघ्र स्वीकार कर अमल मे लाने लगता हे। ओर यह भी की इन कार्यो मे सफलता पाने वाले
आत्म सुझावों को मनाने के लिए कोई विशेष चिंतन या तपस्या भी नहीं करनी पड़ती
है।
परंतु आसान उपलब्धि अधिक लोगों को मिल जाती है, अतः वे जल्दी ही भुला दिये जाते हें।
परंतु आसान उपलब्धि अधिक लोगों को मिल जाती है, अतः वे जल्दी ही भुला दिये जाते हें।
नवरात्र
ओर ओर सनातन परंपरा से जुड़े धार्मिक रीति रिवाजों पर होने वाले अनुष्ठान तप, जप, आदि
सभी इसी सकारात्मकता को पाने के ही रास्ते हें। आज भी देव दानव का यह संघर्ष या सकारात्मकता
या नकारात्मक की प्रतिस्पर्धा मनुष्य के मन मस्तिष्क में निरंतर जारी हे।
सामान्य जीवन से हट कर कुछ पाने की इच्छा रखने वालों को इन पौराणिक कथा कहानियों के
माध्यम से इसे समझ कर हम सब को अपनी भूमिका निश्चित करनी होगी।
तप कर
ने पर भविष्य में देव या राक्षस कुछ भी कहलाए, अमरता तो प्रत्येक स्थितियों में मिलेगी।
इति:॥
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