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राजेश भंडारी “बाबु’
१०४ महावीर नगर ,इंदौर
भारत की कुल १९८ क्षेत्रीय भाषाए "लुप्त होने के कगार पर”
राजेश भंडारी “बाबु’ |
भारत में क्षेत्रीय भाषाओ का विलुप्त होना शुरू हो गया हे | भारत सरकार ऐसा कोई सर्वे करवाती हे या नहीं हे तो पता नहीं परन्तु "यूनिस्को एटलस ऑफ़ दी वर्ल्ड लेंग्वेगेस इन डेंजर " जो की “यूनाइटेड नेशनल एजुकेशनल साएंटीफिक एंड कल्चरल ओर्गानेसन द्वारा बनाया गया हे जिसमे विलुप्त होती जा रही पुरे विश्व की छेत्रीय भाषाओ की जानकारी दी गयी हे | पुरे विश्व में २४७४ भाषाए विलुप्त होने के कगार पर हे जिसमे से १९८ भाषा अकेले भारत वर्ष से हे |
भारत की कुल १९८ छेत्रीय भाषाओ को "विलुप्तप्राय " श्रेणी में रखा गया हे | नेपाल ,भूटान ,एवं बंगलादेश की सीमाओं पर बोली जाने वाली ९ भाषाओ अहोम, एंड्रो, रंकास ,सेंगाई, तोलचा पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी हे जिनको कोई बोलने वाला नहीं हे | ४२ भाषाओ को लाल रंग से मार्क किया गया हे जिन पर खतरा मंडरा रहा हे इनको अत्यंत गंभीर रूप से लुप्त होने के कगार पर श्रेणी में रखा गया हे | नाइकी व् निहाली जो मध्य भारत में बोली जाती हे खतरे में हे | साउथ में बोली जाने वाली तोडा ,कुरुबा ,बेलारी भी खतरे में बताई जा रही हे | पेंगो एवं बिरहोर भी खतरे में हे | नेपाल की सीमा पर बोली जाने वाली टोटो,ब्न्गनी ,पंग्वाली ,सिर्मौन्दी भी खतरे में बताई गयी हे | ६ भाषाओ को गंभीर रूप से लुप्त होने के कगार पर श्रेणी में रखा गया हे | जिसमे गेटा नामक भाषा पूर्वी तटवर्तीय सीमा पर बोली जाती हे खतरे में बताई गयी हे | बाकि ५ भाषाए बंगलादेश एवं भूटान की सीमाओं पर बोली जाती हे |जिसमे अटोंग, अतोन , रेमो,टाइफैक , मुख्या रूप से पीले रंग से मार्क की गयी हे |इन भाषाओ पर यदि ध्यान दीया जाता हे तो इनको बचाया जा सकता हे |
इसके अलावा ६३ भाषाओ को निश्चित रूप से खतरे में बताया गया हे जो पीले रंग से मार्क की गयी हे |यदि समय रहते इन पर ध्यान दीया जाता हे तो इनको बचया जा सकता हे | इनमे मुख्य रूप से नेपाल,भूटान, बंगलादेश की सीमाओं पर बोली जाने वाली भाषाए हे मध्य में बोली जाने वाली न्हाली, कोलामी आदिभाषाओ पर अभी ध्यान देने की जरुरत हे |
इसके अलावा ८२ भाषाओ असुरक्चित “वनरेबल “इन डेंजर बताया हे जो कभी भी विलुप्त हो सकती हे |गोंडी,बोडो, बोकर, मणिपुरी केलो , गड्वाली ,गोंडी, सिमी व् अन्य भाषाओ को इस कटागरी में लिया गया हे|ये भाषा जिन्दा तो हे परन्तु खतरा कभी भी बाद सकता हे |
हाल में राज्य सभा में एक मेम्बर ने भी यह मुद्दा सदन में उठाया था अतारंकिंत प्रश्न क्र. ३३३२ जो श्री कप्तान सिंह सोलंकी ने पूछा जिसका जवाब मानव संसाधन मंत्रालय में राज्य मंत्री डा .दी पुर्न्दरी ने जवाब में कहा के तथापि यूनिस्को की एटलस में सूचीबद्ध इन भाषाओ को भारत की जनगनना रिपोर्ट ,२००१ में भाषाओ के रूप में मान्यता नहीं दी गयी हे | लुप्त होने का खतरा ,भाषा दर भाषा भिन्न भिन्न होता हे इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा की १९६ भाषाए विलुप्त होने के कगार पर हे | मंत्रालय ने स्वदेशी पारंपरिक ज्ञान तथा लुप्त होने क स्थिति में भाषाओ की सुरक्छा हेतु मानव संसाधन विकास मंत्री की अध्य्क्चता में एक गोलमेज का गठन किया हे |
भारत सरकार का ग्रह मंत्रालय को समय रहते इन रीजिनल भाषाओ पर समय रहते ध्यान देना होगा तभी इन विलुप्त होती इन भाषाओ व् लोगो की प्रति न्याय होगा | अन्यथा संस्कृति व् भाषाओ का धनि देश जिसकी हर १० कोस पर भाषा बदल जाती हे ये बोलिया इतिहास बन कर रह जावेगी | और आनेवाली पीडी हम सब से जवाब मांगेगी तब हमारे हाथ में कुछ नहीं होगा.|