औदिच्य ब्राह्मण - इतिहास

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औदीच्य बन्धु गेलेरी   

प्रस्तुत  कर्ता द्वारा डॉ मधु सुदन व्यास

औदिच्य ब्राह्मण के रूप में मूल इतिहास -- 

औदिच्य ब्राह्मण अधिकांशतय: गुजरात राज्य में निवास करते हें | औदिच्य ब्राह्मण के रूप में मूल इतिहास वर्ष 950 ई. के आसपास से पाया जाता हे| ज्ञात होता हे की , वर्ष 942 ई. में कि मूलराज सोलंकी ने अपने मामा सामंत सिंह चावड़ा तत्कालीन सत्तारूढ़ राजा की हत्या के बाद अन्हीलपुर पाटन के सिंहासन पर कब्जा कर लिया था |.उन दिनों में दो अपराधों को सबसे खराब अपराध माना जाता था| इन अपराधों (1) सत्तारूढ़ राजा की हत्या और (2) पुजारी की हत्या.| उस समय भारत में इन अपराधों के लिए सजा या प्रायश्चित जल कर आत्मदाह द्वारा किया गया था.|
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औदीच्य बन्धु गेलेरी   
स्वाभाविक रूप से जब मूलराज राजा की हत्या,के अपराधी के रूप में प्रचारित किया गया था तब राज्य को बचाने के लिए, उनके समर्थकों में राज्य का कोई श्रीमाली ब्राह्मण पुजारियों से कोई सहायक नहीं मिला| गुजरात में ये याजक ब्राह्मिण चावड़ा राजाओं के साथ श्रीमाल भिन्न्मल , राजस्थान ( वर्तमान राज्य) के दक्षिणी भाग में स्थित, से आये थे |

श्रीमाली ब्राह्मण राज्य के सरकारी याजक थे. उनके कार्य में , धर्म और न्याय शमिल था | उन्होंने मूलराज को आशीर्वाद देने और उसे राजा के रूप में घोषित करने से मना कर दिया था | किसी भी तरह (समझाने, धन , धमकी आदि का) उन ब्राह्मणों पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा| तब एक राजा के रूप में सिहाँसनारुड मूलराज ने प्रायश्चित के रूप में " रुद्र यज्ञ " करने और रुद्रमहल निर्माण कर " रुद्र (शिव)" को एक विशाल मंदिर बनाकर स्थापित करने का संकल्प लिया |. लेकिन फिर भी श्रीमाली ब्राह्मण पुजारियों ( याजक) नहीं माने|.तब यह मूलराज के लिए महत्वपूर्ण था यदि एक राजा मोत के बाद राजा के रूप में कोई भी सिहासन पर नहीं हो और अगर सिंहासन एक लंबे समय तक खाली रहे तो वहाँ एक अराजकता हो जाएगी | उसी समय कई चावड़ा वंशजों का सिंहासन के लिए दावे आने शुरू हो गए थे | . राज्य की सीमा पर दुश्मनो ने गुजरात पर आक्रमण की तैयारी शुरू कर दी थी | अगर राज्य को बनाए रखना था तो एक तत्कालिक कार्रवाई की जरूरत थी| लेकिन श्रीमाली याजक परिस्थितियों समझने के बाद भी, व्यावहारिक रूप से स्वीकार और मूलराज के हत्या के कारणों और साख से एकमत नहीं थे| मूलराज इस स्थिति पर काबू पाने के लिए एक और रास्ता खोजने लगा था |

यह फेसला किया गया की , बड़ी संख्या में विद्वान और बुद्धिमान ब्राह्मण परिवारों को लुभाने,के लिए उन्हें भूमि और राज्य याजक के रूप में पदों की पेशकश की जाये | तुरंत इस काम को करने के लिए माधव जी के नेतृत्व में कई सामन्तो को गंगा और यमुना नदियों के मैदानों में स्तिथ विभिन्न महत्वपूर्ण शहरों और क्षेत्रों को भेजा गया | जहां शिक्षित और प्रमुख विद्वान ब्राह्मण जो इस स्थायी व्यवस्था के लिए गुजरात आने के लिए राजी हो सकते थे | एक नई साजिश होने से बचने के लिए, यह भी यह सुनिश्चित किया कि सब ब्राह्मणों को अलग-अलग स्थानों से ( एक ही जगह से नहीं) लाया जाये | मूलराज और उनके मंत्री माधव को एक शानदार विचार आया| पाहिले चावड़ा राजाओं के साथ श्रीमाल से उनके साथ श्रीमाली ब्राह्मण आये थे | और क्योकि मूलराज का आगमन (कनोज ) कान्यकुब्ज गंगा और यमुना नदियों की उपजाऊ भूमि से हुई थी, इसलिए यदि उस क्षेत्र से याजकों के लिए आने के लिए राजी किया जा सकता है, और एक राजा के रूप में मूलराज को सिंहासनारूढ़ करना , रुद्र यज्ञ करना और राज्य में याजकों को स्थापित कर देना इससे , दो पक्षियों को एक पत्थर के साथ मारना जेसा काम हो सकता है|. इससे मूलराज एक वैध राजा होगा और दूसरी श्रीमाली ब्राह्मणों का प्रभाव में कटौती भी होगी | 

इस प्रकार की योजना के तहत जब 1037 ब्राह्मण परिवारों के एक बड़ा कारवां सिद्धपुर पाटन पहुंच गया| उन्होंने राजा मूलराज और उसके लोगों के द्वारा सम्मानित और भूमि दान कर स्थापित किया | उन दिनों में ब्राह्मणों अपने प्रवास या मूल के स्थान के द्वारा जाना जाता था| उत्तर दिशा से आने के और अतीत के विभिन्न गोत्रो से मिलकर ब्राह्मणों के इस बड़े समूह को आधिकारिक तौर पर सहस्त्र औदिच्य ब्राह्मण नामित किया गया था| क्योकि संस्कृत में, औदिच्य का अर्थ उत्तरी दिशा से है| इस तरह से गोत्र मूल ही रहा और स्थान राजा मूलराज सोलंकी द्वारा प्रदत्त ,श्री स्थल, जो कालांतर में सिद्धपुर पाटन के रूप में जाना जाता है | जो अपने आगमन के बाद ब्राह्मण परिवारों को दान की जगह है, |

इस प्रकार गोत्रके नाम और संख्या , परिवारों के उनके मूल स्थान पर बसने के अनुसार हुई |

जमदग्नि , वत्सस , भार्गव (भृगु ),द्रोण , दालभ्य , मंडव्य , मौनाश , गंगायण , शंकृति , पौलात्स्य , वशिष्ठ , उपमन्यु , 100 च्यवन आश्रम, कुल उद्वाहक , पाराशर, लौध्क्षी , कश्यप: नदियों गंगा एवं यमुना सिहोरे और सिद्धपुर क्षेत्रों से 105 विमान , 100 सरयू नदी दो भारद्वाज कौडिन्य , गर्ग, विश्वामित्र , 100 कान्यकुब्ज सौ कौशिक, इन्द्रकौशिक , शंताताप , अत्री, 100 हरिद्वार क्षेत्र और औदालक , क्रुश्नात्री , श्वेतात्री , चंद्रत्री 100 नेमिषाराण्य, अत्रिकाषिक सत्तर, गौतम, औताथ्य , कृत्सस , आंगिराश, 200 विमानों कुरुक्षेत्र चार शांडिल्य, गौभिल , पिप्लाद , अगत्स्य , 132 सिद्धपुर पाटन पर पहुंचने पर औदिच्यों में पुष्कर क्षेत्र (अगत्स्य , महेंद्र) गांवों,|

1037 परिवारों में से 37 परिवारों ने श्रीमाली ब्राह्मणों के तर्क में सच्चाई समझ कर राजा की योजना में भाग नहीं करने का फैसला किया. वे एक समूह में अलग चला गया | उनका निर्णय मूलराज को सूचित.करने के बाद से वे एक समूह के साथ अलग चले गए , वे टोलाकिया औदिच्य ब्राह्मण के रूप में जाने जाते थे| बाकी औदिच्च्य सहस्र ब्राह्मणों के रूप में जाने जाते है | क्योंकि वे 1000 की संख्या में आये थे |अधिक होने से1000 ब्राह्मण परिवारों बोलबाला रहा |
राजा मूलराज सोलंकी ने दुसरे पक्ष के ब्राह्मणों को समझाया| यह एक मजबूत राज्य को बनाए रखने और धर्म और सभ्यता के रूप में अच्छी तरह से व्यापार और राष्ट्र की समृद्धि को स्थिर करने के लिए जरूरी था. की उन सबको भी अपना बना कर रखा जाये इसके लिए जरुरी था | यह एक सर्वविदित तथ्य है कि सोलंकी राज्य के रूप में लगभग तीन सौ वर्षों तक समर्थ और समृद्धि से भरा फला, गुजरात रहा था | बाद में 1297 में भारत पर इस्लामी हमले के कारण नष्ट हुवा था |. 
वैदिक धर्म सबसे पुराना ज्ञात धर्म माना जाता है.| हिंदू धर्म का मानना है कि शाश्वत सत्य एक है| कई मायनों में यह व्याख्या की जा सकती हैं| अति प्राचीन काल से, हम सात ॠषीऔ कीही संतान है|. इन ऋषियों का नाम', जमदग्नि , गौतम, अत्री, विश्वामित्र , वशिष्ठ, और भारद्वाज और कश्यप है. वे सप्त ऋषि के रूप में जाने जाते है| अगत्स्य आठवें ऋषि जिन्होंने वेदों की समझने में योगदान दिया है, के रूप में स्वीकार किये जाते है प्रत्येक ऋषि के सुप्रीम होने के लिए उनके अपने संस्करण है| 
कालांतर में समय परिवर्तन के साथ साथ वे औदिच्य देश के विभिन्न भागो में वहां के राजे महराजे और अन्य आश्रय में चले गए | कुछ तीर्थ स्थानों पर पोरोहित्य का काम | या खेती किसानी करने लगे हें | 
गुजरात पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण द्वारा रुद्रमहालय और पाटन शहर विनाश होने के बाद विक्रम सम्बत 1353 के आसपास उस क्षेत्र के औदिच्य ब्राह्मण कड़ी चनस्मा , कर्णावती . जैसी जगह चले गए||