पर जरुरत होती हे उसे तलाशने की, और अधिकांश स्तिथियों में परिस्थिति उस राह
पर चला भी देती हे, पर तब सब कोई समझ नहीं पाता। पर कुछ समय पश्चात् जब पीछे देखते हें तब ही
पता चलता हे की हमारी किस्मत अच्छी थी जो पहिला रास्ता बंद हो
गया और हमें यह नई राह मिली जो अधिक अच्छी रही| यदि वह प्रथम रास्ता खुला मिलता तो आज वही चाकरी स्वीकारना पड़ता |
गया और हमें यह नई राह मिली जो अधिक अच्छी रही| यदि वह प्रथम रास्ता खुला मिलता तो आज वही चाकरी स्वीकारना पड़ता |
में बात कर रहा हूँ आरक्षण के कारण
नोकरी के चांस खो जाने की! अक्सर हम सब खास तोर पर नोकरी न पाने पर निराश नवजवान! और फिर इस
सोच में घी डालते हें राजनेतिक लोग जो अपना वोट बैंक बनाने के लिए इस सूत्र(आरक्षण) से
भटकाव पैदा करते हें। आश्चर्य तब और होता हे जब हमारे समाज के तथा कथित चिन्तक! भी बिना सोचे समझे आरक्षण का मुद्दा को बार बार सामने लाकर और पीड़ा देते हें। अधिकतर लोगे केवल यही कहते हें की 'आरक्षण का विरोध करो" पर केसे? इसका कोई उपाय नहीं सुझाते। न यह बता पाते हें तब तक जीवन यापन की व्यवस्था क्या होगी। क्या बेरोजगार
परेशान हाल युवक आजीविका की बात छोड़ कर आन्दोलन के लिए झंडा उठाये? कभी कभी इससे यह भी लगने लगता हे की कहीं ये 'चिन्तक' भी तो किसी राजनितिक हाथो या दिशा निर्देशों का पालन तो नहीं
कर रहे। पर एसा भी होता हे की वे किसी बड़े वक्ता के ओजस्वी भाषण से प्रभावित होकर उनकी तरह सोचने
लगते हें। पर जब कुछ काल बाद उन्हें ज्ञात होता हे
की वास्तव में वे वाणी से या वक्ता से प्रभवित होकर बोलते थे, पर तब तक देर हो चुकी होती हे और बहुत
सारे नोजवान कुंठा का शिकार हो चुके होते हें।
क्या आरक्षण का विराध इस तरह करके हम कुछ लोग संबिधान में परिवर्तन
करा पाएंगे? सभी को समझना होगा की बिना २/३ बहुमत समर्थन कोई संबिधान परिवर्तन
नहीं किया जा सकता।
तब हम क्या करें?
इस विषय में सोचने से पूर्व हमें यह भी समझना होगा की आरक्षण हटने से क्या मिलेगा? इस बारे में जो हम सबको समझाया
जाता हे वह यह हे की पात्रों को नोकरियां मिलने लगेंगी। नोकरी में पदोन्नति
मिलने लगेंगी। बस क्या नोकरी करना ही हम ब्राह्मणों का काम रह गया हें? क्या हमारे बाप दादा नोकरी करते थे ? क्या
चाकरी को शास्त्र में अधम नहीं माना हे? कहा
गया हे ।
उत्तम खेती मध्यम
वाणय (व्यापार) अधम चाकरी भीख निदान ।
अर्थात नोकरी या चाकरी को अधम कहा गया
हे। उसके बाद बस भीख ही बचता हे।
पिछले तीन चार सो वर्षो में हम
ब्राम्हणों ने अपने आपको इतना नीचे गिरा लिया हे की आज हम तीसरे पायदान
चाकरी तक पहुच गए हें, और न मिल पाने पर अब चोथे पायदान पर
जाने में कितनी देर हे।
लगातार मुगलों, अंग्रेजों ,और निरतर विदेशी आक्रमंकरियो के कारण
भागते/पिटते हम अपना वैद,शास्त्र, शिक्षा, अदि सब भूल गए। कुछ लोग जिन्होंने पड़ा उन्होंने भी पुरातन ज्ञान के
साथ नए विज्ञानं के रूप में शोध करने और नई नई बाते जोड़ते रहने की हमारे
ऋषि मुनियों वाली परम्परा का (शायद इस भाग दोड़ के कारण) जिससे हम ब्राम्हण भी
नव विज्ञानं में वर्तमान में आगे हो सकते थे नहीं अपना सके । और पिछड़ने से पेट भरने के लिए
पाहिले केवल कर्मकांड का बाद में चाकरी को ही अपना धेय बना लिया।
एक कवि ने प्रश्न भी किया हे ।
ब्राह्मण ! क्यों तिरस्कृत ,और दण्डित ब्राह्मण||
देखे -
था
कभी यह विश्व वन्दित ब्राह्मण, हो रहा क्यों आज निन्दित ब्राह्मण |
कंठ
में थीं वास करतीं शारदा, वेद
शास्त्रों का था ,पंडित
ब्राह्मण ||
जिसकी
प्रतिभा थी गयी पूजी सदा, आज
वह प्रतिमा है , खंडितब्राह्मण
||
एक
कर में शस्त्र, दूजे
शास्त्र ले, परुष[श्री
भगवान परशुराम जी]ने था, किया
मंडित ब्राह्मण||
जब पुरस्कृत हो रहीं सब जातियां,क्यों तिरस्कृत और दण्डित ब्राह्मण||
डॉ
.ओ. पी. व्यास .गुना म'प्र.भारत
इसमें जो प्रश्न हे उसका उत्तर इसी बात में मिल जाता हे की जब हमने
चाकरी स्वीकार कर ली तो आगे पतन होना ही था।
में समझता हूँ की इस नए संबिधान में अन्य जातियों को आरक्षण के कारण एक बार
हमको फिर मोका मिला हे की हम अपने पुराने गोरव को वापिस लाये। ब्राम्हणों को फिर से सिर-मोर बनायें ।
जेसा की
मेने पूर्व में लिखा हे जब एक
रास्ता बंद होता हे तो अन्य कई रास्ते खुल जाते हें । आराम से जीवन यापन करा देने वाली नोकरी न मिलने पर विज्ञानं की नई
शिक्षा के माध्यम से जिनने भी कदम आगे बढाया हे , वह आज
केवल अपना ही नहीं दुसरे हजारों का पेट भरने में समर्थ हुआ हे। और फिर हम ब्राम्हण
तो आदिकाल से विद्वता और ज्ञान से भरे जाग्रत मस्तिष्क की विरासत लेकर पैदा हुए हें । बस जरा सा साहस और जोखिम भर
उठाना हे। यह भी सोचना होगा की खोने के लिए कुछ भी नहीं, तो फिर
सफलता पाने से कोई रोक नहीं सकता ।
आज हमारे
बीच हमारे ब्राम्हण समाज में भी इसी कई हस्तियाँ हें इनमें से कई को आप हम
जानते भी हें जिन्होंने जीरो से शुरू किया था पर आज अपने क्षेत्र के हीरो हें।
हांलाकि हम उनसे भी केवल नोकरी पाने की इच्छा रखते हें। हमारे कई ऐसे हीरो अपने
यहाँ नोकरीयां समाज के लोगों को दे भी रहे हें । पर क्या यह यथेष्ट हे, हम उनकी तरह आगे बढ कर खुद हीरो क्यों नहीं बनना सीखते।
यह ठीक
हे की प्रारभ में कुछ कठिनाइयाँ आयेंगी आर्थिक संकट भी होगा ,पर यह भी
सोचे की बिना संकट पाए कष्ट उठाये
कभी किसी को कुछ मिला भी हे।
हमने कई
महापुरुषों की जीवन गाथाएं पड़ी हें, राम,कृष्ण, बुद्ध से लेकर आज के टाटा विड़ला, गाँधी दयानन्द, आज के कई
वैज्ञानिको में एसे भी अधिकांश हें, जिन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन बड़े ही कष्ट में
गुजरा था पर आज वे या उनकी पीडी उनके कमाए फल का रसास्वादन कर रही हे । जब एक
कम पड़ा लिखा व्यक्ति एक करोडपति उद्योगपति हो सकता हे तो हम ब्राम्हण जो ज्ञान की विरासत
समेटे हुए हें सफल क्यों नहीं हो सकते।
जरा हम
अपने आसपास अपनी नजर दोड़ा कर देखें एसे सफल अनेक मिलेंगे।उनसे प्रेरणा ले । हमारे प्रोड अनुभवी परिजन भी सभी
नोजवानो को एसा ही कुछ करने के लिए प्ररित करें। आरक्षण
विरोध आदी जेसी गतिविधयों की और न धक्का दें। यदि आप एसा करंगे तो हम
ब्राम्हणों को पुन: केसे प्रतिष्ठित कर पाएंगे।
हमको नोकरी जेसी स्टेप से चड़कर एक स्टेप ऊपर 'मध्यम व्यापार' ज्ञान
विज्ञानं की और आगे बढाने के लिए अपनी नोजवान पीडी को उत्साहित करना ही होगा। नहीं तो अगली पीडी नष्ट हो जाएगी।
नोकरी न
मिल पाने की वजह से शिक्षा के प्रति हो रही अरुचि की और भी द्यान देना होगा क्योंकि शिक्षा केवल नोकरी के योग्य ही तो नहीं बनती इससे
बुद्धि का विकास और नई सोच भी तो पैदा होती हे।
आरक्षण का विरोध करने से रोजगार की समस्या हल नहीं होगी।
जब तक हम अपने बच्चो को नोकरी पाने तक के लिय पड़ने को कहते रहेंगे तब
तक मानसिक
विकास
करने की क्षमता केसे आयेगी । हम उन्हें ज्ञान भंडार बढाने, दुनियादारी जान सकने की क्षमता पैदा करने, के लए भी शिक्षा वृद्धि करने के लिए भी
प्रोत्साहित करना ही होगा। नहीं तो आने वाली पीडी यह नव विज्ञानं भी नहीं पा सकेगी जेसे हम वैद आदी अद्ययन करना बंद करके इस
निम्न
स्तर तक
जा पहुचें हें। और जब सब जातियां पुरस्कृत हो रही हें तब हम ब्राम्हण तिरस्कृत हो
रहे हें। समय के साथ कदम से कदम मिलाये ज्ञान के साथ व्यापार को भी जोड़ दें तो हम
सब फिर से सिर मोर बन सकते हें।
अस्तु
डॉ मधु सूदन व्यास
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