शोक पत्र -पढो, समझो, करो ।

शोक पत्र मात्र एक ऐसा पत्र है जिसने अपना रंग रूप साईज और भाषा में आज तक कोई बदलाव किया ही नहीं है ,अन्‍य सभी आमंत्रण कार्ड अपने को सुन्‍दर से सुन्‍दर और बडे से बडा बनाते जा रहे है किन्‍तु शोक पत्र वैसा का वैसा ।
आज हम शोक पत्र से कुछ जानने का प्रयास करें । काली स्‍याही से टंकित उपर शोक पत्र,प्रारम्‍भ्‍ा अत्‍यन्‍त दुख के साथ सुचित करने में आता है ;;;;;;;;;; और अन्‍त में शोक संतप्‍त और शोकाकुल!
 शोक संतप्‍त परिवार समाज के बीच रहता है इसलिए उसका कर्त्‍तव्‍य बनता है कि वह अपने यहां हुई दुखद घटना की जानकारी स्‍वजनों,समाजजनों और स्‍नेहीजनों तक भेजे ताकि वे अपनी सुविधानुसार शोक संतप्‍त परिवार के यहां शोक संवेदना प्रगट करने जा सके और स्‍वर्गीय आत्‍मा को श्रध्‍दांजली अर्पित कर सके । इसीलिए भारतीय संक्रति में दाह संस्‍कार से लेकर 9 दिन तक का समय संवेदना प्रगट करने के लिये निर्धारित किया गया है। इसीलिए शोक पत्र के मध्‍य में उत्‍तर कार्य की जो सुचना दी जाती है वह दशाकर्म से लेकर पगडी के लिए ही होती है जो परिवारजन और समधियों के लिये आवश्‍यक है
यदि बीच की अवधि में कोई सदस्‍य कारणवश नहीं आ पाते हैं तो वे पगडी के दिन आ सकते हैं । 
इसीलिए शोक पत्र में केवल सूचना भर रहती है, आने के लिये आग्रह नहीं ताकि बार बार न आकर एक बार में ही अपना कर्त्‍तव्‍य निभाया जा सकता है । यदि हम शोक पत्र की स्‍पष्‍ट भाषा को समझ कर उसके अनुसार चलने का प्रयास करें तो दोनों पक्षों का अमूल्‍य समय और अर्थ की बचत होकर शोक संतप्‍त परिवार व्‍दारा सरलता पूर्वक सारी व्‍यवस्‍था करने में भी कोई कठिनाई नहीं होगी। बस चाहिए उन सदस्‍यों का आत्‍मीय सहयोग जिनका पगडी कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति की कोई आवश्‍यकता नहीं होती । 

यदि हम सब शोक पत्र के ईशारे को समझ कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लग जावेगें तो म्रत्‍यु से भोज और नूक्‍ते से चीनी स्‍वत अलग हो जावेगी ।
आईये एक बार फिर गंभीरता से चिन्‍तन कर शोक संतप्‍त परिवार के सहयोगी बनें ।
उघ्‍दव जोशी उज्‍जैन


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