युवा संगठन का निर्माण
युवा तो वायु रूप में बहती समीर,थमने पर तूफान है। संगठन के लिये आक्सीजन,समाज के लिए वरदान है
बचपन, मीनार है, शिखर है, वह सदैव उंचाईयों को ही स्पर्श करता है। उसके सपने उच्चस्तरीय होते है। ऐसा उर्जावान बचपन जब यौवन में कदम रखता है, तो युवा की श्रेणी में आ जाता है। तब जिम्मेदारी का जामा पहन कर कर्त्तव्य और अधिकारों की बातें करने लगता है। युवाओं के लिए यही समय अमूल्य होता है, जब परिवार और समाज की उन्नति के लिए साधक बने और यह सब होता है सशक्त संगठन के व्दारा ।
. शरीर की भांति ही युवाओं के संगठन का स्वरूप होना चाहिए। शरीर के संगठन में शिखा से लेकर पांव तक हर अंग का आपसी सामन्जस्य रहता है और हर अंग अपना अपना सामयिक कर्त्तव्य निभाने के लिए कटिबध्द हो जाता है । बस यही समग्रता युवा / युवती संगठन की होना चाहिए। संगठन बनाने के पहले आपस में विचार विमर्श करने ओर वैचारिक आदान प्रदान का मार्ग अपनाना चाहिए । संगठन में सदैव नेत़त्व की भावना अधिक उभरती है। सशक्त नेत़त्वही सशक्त संगठन का निर्माण कर सकता है। सशक्त नेत़त्व की नींव पर खडा संगठन कर यह स्वरूप अनुशासन,आदेशों के परिपालन,सक्रिय भागीदारी और कार्य पूर्णता के चार पायों पर संगठन की ईमारत को मजबूती प्रदान करेगा । संगठन में सक्रियता बनाये रखने के लिये समय प्रबंधन और मिलने के लिए स्थान की निश्चितता अनिवार्य है।
युवाओं को प्रारंभ में योग्य और सही दिशा निर्देश प्राप्त हो इसके लिए अनुभवी सदस्यों का मार्गदर्शक दर्शन होना चाहिए। सदस्यों के आपसी संवाद, कोमल, सरस और सारगर्भित हों संगठन की संस्क़ति में समय समय पर परिवर्तन शीलता और पारदर्शिता होना चाहिए। कभी कभी किसी योजना के क्रियान्वयन में असफलता मिलने पर हार मानना संगठन की शक्ति को कमजोर करता है। संगठन में संवाद और सूचना की सक्रियता होना चाहिए।
युवा युवतियों का संगठन जिला,राज्य और अर्न्तराष्टीय स्तर का हो । जिसके कारण संस्कृतिक, आर्थिक ,स्वास्थ्य,रोजगार जैसी महत्वपूर्ण समस्याओं के समाधान के अवसर उपलब्ध हो सकते है। समय समय पर त्रिस्तरीय सामाजिक सम्मेलन भी आयोजित होगें तो कई अमूल्य विचारों के क्रियान्वयन से समाजोन्नति में सहायता मिलेगी ।
सामाजिक मंच पर आयोजित होने वाले संगठन नामक नाटक की अच्छी से अच्छी स्क्रिप्ट और संवाद तो हर कोई लिख सकता है किन्तु आवश्यकता है उन उर्जावान और समर्पित युवा युवति कलाकारों की जो संगठन के मंच पर अपना प्रभावी और सशक्त भूमिका में प्रस्तुति दे सके ।
युवाओं से समाज और समाज से युवा बंधा हुआ है इसके लिए दोनों को एक दूसरे का बनना होगा ।
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