"सृजन से विसर्जन तक" लेखक श्री अनिल माधव दवे [सोलह संस्कारों का वर्णन] -पुस्तक समीक्षा।

"सृजन से विसर्जन तक"  लेखक श्री अनिल माधव दवे [सोलह संस्कारों का वर्णन] -पुस्तक समीक्षा
 डॉ मधु सूदन व्यास उज्जैन । 
ग्लेज पेपर पर 160 पृष्ठों  की  यह मनोहारी चित्रों
 से सज्जित पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटलबिहारी बाजपयी
द्वारा लिखी भूमिका ओर आशीर्वाद से परिपूर्ण,
 घर, समाज, ओर देश में संस्कारों के वृक्ष को पुष्पित,
ओर पल्लवित करने के लिए एसे साहित्य को अपने
जीवन में स्थान देना ओर अनुकरण करना ही होगा।
मेरा पुस्तक अवलोकन लेख  श्री अनिल माधव दवे की पुस्तक "सृजन से विसर्जन तक" जो की जन्म से मृत्यु तक हिन्दू धर्म के अंतर्गत होने वाले संस्कार जिनसे मनुष्य की मनुष्यता का निर्माण होता हे, के बारे में समाज के हर सदस्य को बताने का एक प्रयास है। में कोई लेखक, समीक्षक या विद्वान न होकर साधारण व्यक्ति की हेंसियत से इसके बारे में कुछ लिखकर, पढ़ने और व्यवहार में लाने की प्रेरणा देने की उद्धेश्य से क्षमा याचना सहित लिखने का साहस कर रहा हूँ। 
  श्री दवे जी ने इस पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा हे कि " संस्कारो के संबंध में हमारे देश में उपलब्ध ज्ञान बिखरा हुआ है। --- आज के समय में उपनयन ओर विवाह संस्कार ही प्रमुखता से शेष है। --- अंत्य-कर्म तो मजबूरी है। उत्तर-क्रिया उपेक्षा व आडंबरों का शिकार हो गई दिखाई देती है। --- सभी संस्कार पुन: प्रारम्भ होने लंगे इस हेतु से प्राचीन संदर्भों के साथ वर्तमान स्वरूप को सरल ढंग से यहाँ लिखने का प्रयत्न किया गया है।" आदि लिखकर सबसे आग्रह किया है, कि "हम स्वयं के परिवार में पल्लवित हो रहे बच्चों में शेष बचे संस्कारों को प्रारम्भ करने का संकल्प लें। परिवार के बुजुर्ग सभी संस्कारों का आग्रह करें, ओर उनके विभिन्न पक्षों को गंभीरता से सम्पन्न करवाएँ" 
  पुस्तक में सोलह संस्कारों को पाँच भागों में विभक्त कर सरल भाषा में समझाया गया है। 
बढ़नगर उज्जैन के औदीच्य ब्राह्मण परिवार
में 1956 में जन्मे, शौक़िया पायलट ,कुशल वक्ता
श्री अनिल माधव दवे राष्‍ट्रवादी चिंतक अनिलजी
 भाजपा के वरिष्‍ठ नेता हैं। राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ
के प्रचारक रहे हैं। इन दिनों राज्‍यसभा सदस्‍य
और चरैवेति मासिक पत्रिका के संपादक हैं
। 

  1. सृजन - के अंतर्गत 1- गर्भाधान, 2- पुंसवन, 3- सीमन्तोन्नयन, 4- जात कर्म है। 
  2. संवर्धन के अंतर्गत, 5-नाम करण, 6- निष्क्रमण, 7-अन्नप्राशन, 8-मुंडन व 9-कर्णवेध, 10-विध्यारम्भ है।  
  3. समुत्कर्ष में- 11-उपनयन, 12-वेदारंभ, 13-केशांत, 14-समावर्तन, 15-विवाह, है।
  4. समायोजन के अन्तर्गत केवल 16-अंत्येष्टि का समावेश है। 
  5. स्वस्ति प्रसंग में संकल्प मंत्र, पूजन विधि, स्वस्ति मंत्रों को समाविष्ट किया गया है।   
     प्रथम गर्भाधान संस्कार के अंतर्गत होने वाली क्रियाओं के माध्यम से सभी के मन में सतत उठते प्रश्नो जिन्हे संकोच वश नहीं पूछा जाता,  का  समाधान मिल जाता है।  आजकल अक्सर इस प्रकार की बातें जानने की आवश्यकता सामान्यतया नहीं समझी जाती परंतु इनको समझकर ही अच्छी, निरोगी, बुद्धिमान, संतान पाई जा सकती है। पुस्तक में इस समय प्रयोग किए जाने वाले मंन्त्रो के भाव को समझाया गया है। यह संस्कार वर्तमान में पूर्णत: विस्मृत हो गया है। इसको पुनर्जीवन देना आवश्यक है। 

       गर्भ धारण के सुनिश्चित हो जाने के बाद दूसरे या तीसरे माह में यह  पुंसवन संस्कार किया जाता है।  पुस्तक में इसके प्रयोजन,स्वरूप, विधि कर्म ओर उद्धेश्य का वर्णन बहुत ही अच्छा किया है। वर्तमान में यह संस्कार 'गोद-भराई' के नाम से कई क्षेत्रों में किया भी जाता है, पर स्वरूप संस्कार का नहीं होकर परंपरा का पालन भर के लिए किया जाता है। इसे पढ़कर जानना आवश्यक है।
     सीमन्तोन्नयन संस्कार को  पुंसवन का ही विस्तार बताया है। चौथे पांचवे माह में या गर्भ में चेतना  आने के बाद होने वाला यह संस्कार, गर्भस्थ शिशु को किस प्रकार से ज्ञानवान बनाता है, इसका विस्तार से वर्णन इस खंड में है। महाभारत के आख्यान जो सबने सुना है, कि किस प्रकार अभिमन्यु ने गर्भ में चक्रव्यूहु रचना इसी गर्भ काल में जान ली थी। इस संस्कार के माध्यम से इसका शब्दार्थ ओर पिता को उसकी ज़िम्मेदारी सिखा कर उसे पत्नी को आश्वस्त कर देने का भाव भी उत्पन्न करता है, ताकि वह निश्चिंत भाव से संतान को जन्म दे सके। इसकी सम्पूर्ण जानकारी व्यवस्था विधिक्रम आदि का वर्णन सटीक ढंग से इस पुस्तक में है।
      जात कर्म का यह संस्कार शिशु के जन्म के लिए पूर्व व्यवस्था सूतिका-गृह आदि निर्माण सहित के विचार से किया जाता था। वर्तमान में यह कार्य अब अस्पतालों में पूर्ण सुरक्षित होने लगा है, फिर भी इस संस्कार के बारे में जानने से अस्पताल ले जाने से पूर्व व्यवस्था ओर गर्भणी की मानसिक स्थिति को सामान्य बनाए रखने के लिए इस संस्कार के कुछ अंशों को विधि पूर्वक किया जाने कि आवश्यकता और अधिक है। पुस्तक में बच्चे के जन्म के पूर्व ओर पश्चात् संस्कार विधि-क्रम, ओर उद्देश्य आदि का वर्णन है।
       नामकरण संस्कार तो वर्तमान में कई रूप में देखने मिलता है, परंतु वैदिक पद्धति से होने वाले नामकरण संस्कार का जीवन भर प्रभाव होता है। इसके उदृदेश्यों ओर व्यवस्था की जानकारी इस पुस्तक में उपलब्ध है।
   
       समुत्कर्ष के अंतर्गत अन्य पाँच संस्कार [11-उपनयन, 12-वेदारंभ, 13-केशांत, 14-समावर्तन, 15-विवाह] की आवश्यकता भी पुस्तक पढ़ने पर आसानी से समझ आ जाती है।
     अंतिम संस्कार अंत्येष्टि पर कुशलता से वर्तमान पाखंडो पर प्रहार करते हुए उनकी आवश्यकता ओर विधि व्यवस्था को भलीभाँति समझाया गया है।
  इसी प्रकार से क्रमश: निष्क्रमण,[सूरज पुजा] अन्नप्राशन [सात माह के बच्चे का प्रथम भोजन], संस्कार का जीवन में विशेष महत्व इस पुस्तक में वर्णित है। मुंडन, कर्णवेधन, ओर विध्यारम्भ संस्कार शिशु में संवर्धन कर मनुष्य बनाने के कार्य को किस प्रकार से करते हें ओर उन संस्कारो का महत्व समझने पर ही हम राष्ट्र निर्माता संतान बनाने में सक्षम होंगे इसका ज्ञान आसानी से इस पुस्तक के माध्यम से समझ आ जाता है।
   पुस्तक में कई प्रसंग जेसे विवाह, जिनकी तो है, पर केसे निर्वहन होना चाहिए, का विस्तार से वर्णन मिलता है। 
 
कुल मिलकर पुस्तक हर घर में रखने ओर पढ़ने योग्य है। इसको देखते हुए ग्लेज पेपर पर 160 पृष्ठों  की  यह मनोहारी चित्रों से सज्जित पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटलबिहारी बाजपयी द्वारा लिखी भूमिका ओर आशीर्वाद से परिपूर्ण,  रु-145/- मूल्य की यह पुस्तक बहुत सस्ती है। घर, समाज, ओर देश में संस्कारों के वृक्ष को पुष्पित, ओर पल्लवित करने के लिए एसे साहित्य को अपने जीवन में स्थान देना ओर अनुकरण करना ही होगा। अस्तु । 
पुस्तक विवरण
"सृजन से विसर्जन तक"
 लेखक- श्री अनिल माधव दवे
Published in India by- NEW ERA Publication,[P] Ltd.
6, Press Complex,-1, M P Nagar Bhopal 462011
Manjul Publising House Pvt.Ltd. 
10,Nishar Colony Bhopal- 462003 India. Ph.+91755.4240340/E Mail- manjul@manjulindia.com
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