Features of an auspicious bride- विवाह के रंग-जीवन के संग

विवाह के रंग-जीवन के संग
Uddhav Joshi                    
भारतीय समाज में विवाह कब से प्रारम्भ हुए और किसने किया इसका विचार करने पर पहला उदाहरण उद्दालक के पुत्र श्वेतकेतु का मिलता है। जब श्वेतकेतु की माता जबाला अपने इस बालक के लिए भोजन बना रही थी, जब एक शक्तिशाली व्यक्ति आया और उन्हे बलात अपनी वासनापूर्ति के लिए ले गया। बालक के मन पर इस घटना का गहरा प्रभाव पडा! वयस्क होने पर वह एक महान ऋषि बना और उसने समाज में विवाह नामक संस्था की नीव रखी! यह कथा पुरा वैदिक है, परन्तु निश्चित ही यह विवाह संस्था के विकास पर प्रकाश डालती है!
हिन्दू समाज में विवाह को एक पवित्र संस्कार के रूप में माना
गया है। विवाह को धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रीति रिवाज से उत्साहपूर्वक सम्पन्न किया जाता है। धर्मशास्त्र और वैवाहिक कर्मकाण्ड साहित्य में वर्णित विवाह के मूल शास्त्रीय स्वरूप में अनेक लौकिक रीतियां तथा समसामयिक सामाजिक परम्परायें मिलती गई, जिनको हमारी विवाह पध्दति ने आत्मसात भी कर लिया! ऋग्वेद में विवाह का प्रधान कर्म संतानोपत्ति माना गया है ! पुरूष को बीज और नारी को भूमि मानकर अच्छी मानव नस्ल के विकास का मार्ग खोला गया है! 
भारतीय हिन्दू विवाह प्रथा अपनी संस्कारात्मक श्रेष्ठता, क्रियात्मक रोचकता, सामाजिक प्रतिबध्दता, संबंधों की विशाल श्रंखला, और स्वभावगत सृजनात्मकता के कारण आज भी भारतीय हिन्दू समाज में उसकी श्रेष्ठ निरन्तरता बनी हुई है।
विवाह के लिए वर वधु के चयन में सावधानी बरतने श्रेष्ठ मापदण्डों को बताते हुए कहा है, कि वर के कुल, शील, शरीर, आयु, वि़द्या, वित्त और साधन संपन्नता इन सात बातों की जानकारी लेने के बाद ही अपनी कन्या का विवाह करना चाहिए ।
 इस कडी में योग्य वधू के लक्षणों का भी विशिष्ठ वर्णन किया गया है। भारव्दाज गृह्य सूत्र के अनुसार वित्त, रूप, प्रज्ञा ओर कुल ये चार लक्षण प्रधान माने गये हैं!  मनु जी ने इसे और व्यापकता प्रदान करते हुए कहा है, कि विवाह ऐसी स्त्री से करना चाहिए जो शारीरिक दोषों से रहित हो! जिसका नाम सौम्य हो, जिसके चलने का ढंग हंस जैसा हो! जिसके शरीरर व सिर पर केश उचित मात्रा में हो! दांत छोटे और अंग मृदु व कोकल हो।
विवाह का जो उपरोक्त आदर्श स्वरूप था वह हमारे वैदिक ऋषियों की उदात्त भावना से निःसृत ऋचाओं के बीज से प्रस्फुटित  हुआ था । जन समुदायों  के परिपक्व अनुभवों से समृध्द हूई हमारी लोक संस्कृति के संरक्षण व्दारा सुरक्षित था ! ऐसे समृध्द विवाह संस्कारों को हम ना समझी से  विकृत और लघुकृत करते जा रहे हैं । जो वर्तमान पीढी के लिए घाटे का सौदा सिध्द होगा । वर्तमान समय में मानवीय मूल्यों का ल्हास,बढती अश्लीलता, स्वच्छन्द जीवन, और विलासिता को जीवन का केन्द्र मान लेने के कारण स्त्री पुरूष के बीच संबंधो में तीव्र गिरावट आई है।  इस गिरावट को रोकने और  उसे सुसंस्कृत पवित्र और विश्वसनीय  बनाने का प्रयत्न विवाह संस्कार में होता है। इसे बचाने  के लिए हमें जागरूकता के साथ विवाह संस्कारों को योग्य स्वरूप में श्रध्दा भाव के साथ सम्पन्न करने की आवश्यकता है।
            यदि हम बेटे बेटियों के दाम्पत्य जीवन को आनन्दमय और सुखमय देखना चाहते हैं तो उनके विवाह संस्कार को सावधानी पूर्वक सम्मन्न करना चाहिए।  विधि दोष होने या लघुकृत क्रिया अपनाने से  जब पकवान तक सही नहीं बन पाते तो विवाह संस्कार में शार्टकट,विधि भ्रष्टता आदि सामाजिक,पारिवारिक,और वैयक्तिक  दुष्परिणाम उत्पन्न करेगा !  इसलिए हमें विवाह संस्कार के विभिन्न सोपानों का विधि विधान से और सही भाव भूमि से सम्पन्न करने की आवश्यकता है । विवाह संस्कार को पूर्णता के साथ श्रध्दा भक्ति से सम्पन्न कर कुल देवता  के आशीर्वादों को प्राप्त करने का पूर्ण प्रयास करें।
स्वस्तिःअस्तु तेकुशलम् अस्तु चिरायुःअस्तु ।
गौ वाजिः हस्तिः धन धान्य समृध्दिः अस्तु।।
एश्वर्यम् बस्मु कुशलो अस्तु,रिपुक्षयो अस्तु ।
सन्तान वृध्दि सहिता, हरि भक्तिः अस्तु।।
निरन्तर ...............                                 

उद्धव जोशी उज्जैन  


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