बड़े काम की छोटी बातें

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कर्म सरल है ,विचार करना कठिन है !
धर्म सरल है ,सैट धर्म करना कठिन है !
दान करना सरल है ,गुप्त रखना कठिन है !
जग की असलियत जानना सरल है ,इस पर अमल करना कठिन है !
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दूसरो के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसंद नही|


जिन्हें लम्बी जिंदगी जीनी हो, वे बिना कड़ी भुख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें । 


जिसनें जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया सचमुच वह सबसे बड़ा कलाकार है । 


 विपरीत परिस्थितियो में भी जो ईमान, साहस और धैर्य को कायम रख सके,वस्तुतः वही सच्चा शूरवीर है 


 कायर मृत्यु से पूर्व अनेको बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है



 ईष्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़ो को कीड़ा । 


 ईमानदार होने का अर्थ है हजार मनकों में से अलग चमकने वाला हीरा । 


 अपनी रोटी-मिल-बाँटकर खाओ ताकि तुम्हारे सभी भाई सुखी रह सके। 


 जीवन का अर्थ है 'समय' जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गवायें ।


गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम,सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है । 


पाप अपने साथ रोग,शोक पतन ओर संकट भी लेकर आता है 


सार्थक और प्रभावी उपदेश वह है, जो वाणी से नहीं,अपने आचरण से प्रस्तुत किया जाता है । 

अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हो । 


मनुष्य का जन्म तो सहज होता है, पर मनुष्यता उसे कठिन प्रयत्न से प्राप्त करनी पड़ती है । 


अनजान होना उतनी  लज्जा की  बात नहीं, जितनी सीखने के लिए तैयार न होना । 


असफलता केवल यह सिद्व करती है कि सफलता  का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ । 


 देवता आशीर्वाद देने में तब गुँगे रहते हैं, जब हमारा ह्दय उनकी वाणी सुनने में बहरा रहता है ।


सभ्यता का स्वरूप है-सादगी, अपने लिए कठोरता और दूसरों के लिए उदारता । 


योग्यता और परिस्थिति को ध्यान में रखकर महात्वाकांक्षाएँ न गढने वाला दुखी रहता और उपहास सहता है ।


पढ़ने योग्य लिखा जाय,इससे लाख गुणा बेहतर यह है कि लिखनें योग्य किया जाय । 


दूसरो के साथ वैसी ही उदारता बरतो जैसी ईश्वर ने तुम्हारे साथ बरती है । 


बुद्विमान वे हैं जो बोलने से पहले सोचते हैं, मूर्ख वे हैं जो बोलते पहले और सोचते बाद में हैं । 


परमेश्वर का प्यार केवल सदाचारी और कर्तव्य परायणों के लिए सुरक्षित है । 


जो बच्चों को सिखाते हैं उन पर बड़े खुद अमल करे, तो यह संसार स्वर्ग बन जाए । 


सबसे बड़ा दीन दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रण नहीं । 


अच्छी पुस्तकें जीवन्त देव प्रतिमाएँ हैं । उनकी आराधना से तत्काल प्रकाश और उल्लास मिलता है । 


मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं,वह उनका निर्माता,नियंत्रणकर्ता और स्वामी है । 


आलस्य से बढ़कर अधिक घातक और अधिक समीपवर्ती शत्रु नहीं । 


आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं । 


किसी का सुधार उपहास से नहीं, उसे नये सिरे से सोचने और अदलने का अवसर देने से होता है । 


जो जैसा सोचता और करता है,वह वैसा ही बन जाता है । 


 सज्जन् आमीरी मे गरीब जैसे नम्रऔर गरीबी में अमीर जैसे उदार होते हैं । 


कुकर्मी से बढ़कर अभागा कोई नहीं, क्योकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं रहता । 


बडप्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है । 


उन्हे मत सराहो, जिनने अनीतिपूर्वक सफलता पाई और सम्पति कमाई । 


प्यार और सहकार से भरा पूरा परिवार ही धरती का स्वर्ग होता है । 


प्रसन्न रहनें के दो ही उपाय है-आवश्यकताएँ कम करें और परिस्थितियों से तालमेल बिठायें । 


काम की अधिकता से नहीं ,आदमी उसे भार समझकर अनियमित रूप से करने पर थकता है ।


जो अपनी सहायता आप करने को तत्पर है,ईश्वर केवल उन्हीं की सहायता करता है । 


अपनें को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि इसमें सफल हो गए, तो हर काम में सफलता मिलेगी । 

वेदमूर्ति पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा रचित युग निर्माण योजना के अधिकृत 
सद् वाक्य