पारिवारिक समस्याएँ और निवारण।

      पति-पत्नी में झगड़ा होना आज आम समस्या हो रही है। छोटा मोटा हल्का फुल्का विवाद होना तो कोई खास बात नहीं, पर यह झगड़ा अधिक बड जाए और मार पीट तक पहुँच जाए तो यह अति वाद है। 
पुरुष प्रधान हमारे समाज में पुरुष स्वयं को पूर्ण निर्णायक मान कर चलता है। एसे में जरा भी विरोध उसके अहंकार को ठेस पाहुचाने लगता है। वर्तमान में महिलाओं ने भी शिक्षा के क्षेत्र में भी समकक्षता प्राप्त कर ली है।  एसे में जब पती और पत्नी दोनों ही समकक्ष योग्यता धारी हों तो अकसर समस्या और बड़ जाती है। 
वर्तमान में सुख सुविधा की अधिक चाह ने अपने बेटे के विवाह हेतु समकक्ष या अधिकतम योग्यता धारी बहू लाने जिससे अधिकतम सुख के साधन प्राप्त किए जा सकें, लाने की इच्छा पेदा कर दी है। 
विवाहोपरान्त यदि पुरुष का पद और वेतन अधिक है, तब तो अधिकतर ठीक हो सकता है,  परंतु यदि महिला का पद बड़ा या बराबर का हुआ तो महिला भी परिवार में अपना सम्मान पुरुष के समान ही पाने की इच्छा रखने लगती हें। यह गलत भी नहीं है। 
अक्सर यह सम्मान उसे सास-स्वसुर से मिल नही पाता। बेटे के माता-पिता यह तो कहते हें, की हम बहू को अपनी बेटी जैसा मानते हें, पर व्यवहार में एसा नहीं होता। वह अपने बेटे को अधिक नजदीकी मानते हुए किसी भी कारण पर यह ताना दे बेठती हें की "तेरी बीबी मेरी तो सुनती ही नहीं" आदि आदि। जब उनने बहू को अपनी बेटी मान लिया है, तो सोचे की क्या वह अपनी बेटी(सगी) से एसा कह सकती है। 
अल्प मति पती का पुरुष अहंकार अपने माता पिता को सम्मान दिलाने के लिए उत्तेजित होकर अपशब्द कहकर, अथवा शक्ति प्रदर्शन कर मार पीट द्वारा, पत्नी के माता-पिता के बारे में अनर्गल बात कहकर शीघ्र निपटारा करने का प्रयत्न करने लगता है। सम्मान तो दिला नही पाता वैवाहिक जीवन में कांटे बो देता है।  बहू के लिए ससुराल पक्ष से अच्छे संबंध बनाना भी वैवाहिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती होती है। हालांकि विवाह के बाद यह चुनौती पति-पत्नी दोनों के लिए होती है, लेकिन महिलाओं के लिए यह चुनौती कहीं अधिक होती है। 
        हमारे देश में 60 प्रतिशत विवाहित जीवन की समस्याए, सास यानी महिला की माँ और उनके पति की मां के कारण होती हैं। दोनों की सासों की नुक्ताचीनी और अनावश्यक हस्तक्षेप से अक्सर समस्या पैदा हो जाती है।
        इस प्रकार से वैवाहिक जीवन को तबाह होने से बचाने और बेहतर बनाने के लिए महिला और पुरुष दोनों को   सकारात्मक बनना होगा।
       अपनी माँ के साथ तो उनके 25-30 वर्ष गुजरे हें, वे आपस में एक दूसरे को भलीभाँति समझे और जाने हुए हें, पर सास उन दोने के लिए नई है, इसलिए पूरी तरह से जानने समझने के साथ जैसा सम्मान अपनी माँ के साथ था, उससे भी अच्छा सम्मान प्रदर्शन करना होगा।
सकारात्मक दृष्टिकोण या पॉजिटिव एटीट्यूड 
      आज कल के छोटे होते परिवार में जिस तरह आपके लिए बहू बनना एक नया अनुभव है, उसी तरह उनके लिए भी सास बनना एक नया अनुभव होता है। इसकारण हमेशा अपनी सास के प्रति सकारात्मक व्यवहार पॉजिटिव एटीट्यूड रखना जरूरी होगा। इसका अर्थ है हर बात पर सर्व प्रथम उत्तर हाँ ही होना चाहिए, चाहे आपका पुराना अनुभव उसके विपरीत ही क्यों न हो।   
समानता 
       अपनी सास और अपनी मां के साथ समान व्यवहार करें। अर्थात अगर आप अपनी मां को कोई भेंट देती हैं तो अपनी सास को भी जन्मदिन पर भेंट दें। अगर आपके बच्चे हैं, तो अपनी मां और अपने सास के पास समान रूप से आते जाते रहें। 
संवेदनशीलता 
       हालांकि ज्यादातर मां अपनी बहू को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानतीं, लेकिन कुछ विशेषकर एक पुत्र की माताएँ एसा सोचती हैं। मसलन अगर आपकी सास कहे कि उनका बेटा घर पर बना खाना कितना पसंद करता है, तो आप कभी ये न कहें कि अब वह मेरे हाथ का बना खाना बहुत पसंद करता है। निश्चित रूप से इससे आपकी सास को दुख होगा। आपको कहना चाहिए की आप मुझे सिखा दे की उन्हे कैसा पसंद है। 
सम्मान 
    अपनी सास को माता से भी अधिक सम्मान दें। आपकी माता तो आपके व्यवहार के आदि हो चुकी होती हें उन्हे छोटी छोटी बातें तकलीफ नहीं देती पर सास से अभी पूर्ण परिचित नहीं हें, और उनकी उम्र आपसे ज्यादा है, इसलिए उनकी बुद्धिमता को अधिक महत्व देना अच्छा होगा।
     अक्सर अपनी जिंदगी में किसी किसी को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, आप उसने बचपन सहित बच्चों की परवरिश और जिंदगी के अनुभवों के बारे में बात करें। जब वह अपनी जिंदगी की घटनाओं को आपके साथ साझा करेंगी तो इससे आपके और उनके बीच एक मजबूत संबंध बनेगा।
विश्वास रखे
     जिस परिवार में आपकी शादी हुई है, उसे जानने में आपको थोड़ा समय लग सकता है। अधिकतर घरों में बहुओं का घर में जोरदार स्वागत होता है। अगर आपके साथ ऐसा नहीं हुआ तो भी आपको निराश होने की जरूरत नहीं है। अपने आप को जानने के लिए उन्हें समय दें।
शिष्ट रहें 
     जब आपकी सास आपके साथ रहती हों तो उनके प्रति शिष्ट रहें। उनके साथ बैठें और बातें करें, उन्हें घुमाएं अपने मोहोल्ले या क्षेत्र की, पड़ोस की महिलाओं से परिचित करवाएँ, ताकि वे भी आपके वातावरण के लिए अनुकूलित हो सकें।
    अगर वह खाना बनाने में आपकी मदद करना चाहती है, तो उन्हें ऐसा करने दें। इससे आप उन्हें और बेहतर तरह से समझ सकते हैं। अगर आपकी सास घर का काम करने की इच्छुक नहीं है, या शारीरिक रूप से असमर्थ हें तो व्यंग न करें। याद रखे की उन्होने इस आयु तक वह सब कुछ किया है अब उन्हे विश्राम भी चाहिए। यदि आप भी नौकरी करती है तो उनकी सहमती से नौकर रख कर काम के बोझ को हल्का करें। 
जानकारी देते रहें
     अपनी सास को अपनी हर बात से अवगत रखें।  अगर घर में या कहीं भी कोई महत्वपूर्ण इवेंट है, तो उन्हे बताएं यदि वे उस समय वहाँ नहीं हें तो फोन पर उन्हें सूचित करें। अगर आपके बच्चे हैं तो अपने बच्चों की तस्वीर उन्हें देते रहें। दादी- नानी को अपने पोते-पोतियों से अधिक लगाव होता है दूर हों तो तस्वीरे इस कमी को पूरा करतीं हें।
परामर्श अवश्य लें
   आपकी सास चाहे आपके बराबर शिक्षित चाहे न हो पर उनके पास कई वर्षों का अनुभव है। इसलिए उनसे सलाह लेने में कभी हिचकिचाएं नहीं। कभी कभी हो सकता है आप उनकी सलाह से सहमत न हों, पर कम से कम उन्हें सुनें और उनके प्रति सम्मान दिखाएं। उनकी किसी भी सलाह को व्यक्तिगत हमला न मानें।
बच्चे उनके लिए भी महत्व पूर्ण हें ,
  अपने सास को आपके पति और आपके बच्चों की देखभाल करने दें। कई बार उनके लिए अपने बच्चे से ज्यादा बच्चे के बच्चे महत्वपूर्ण होते हैं। अगर आपकी सास के कारण आपका बच्चा समय पर नहीं सो पाता है, या वह ज्यादा चॉकलेट आदि खाता है, तो मना नहीं करें। इससे उनके अहंकार को ठेस पहुंचेगी।
बच्चों के स्कूल मे कार्यक्रमों में ले जाए, बच्चो को एसे कार्यक्रमों में भाग लेते देखना अच्छा लगेगा।  
समय दें 
    उन्हे समय दें उनके पास बेठें, यदि आप नौकरी करती हों, तो नौकरी और वहाँ के लोगों के बारे में बतायेँ। अपनी परेशानी का हल भी पूछें। यदि आप नौकरी से संतुष्ट हें तो इस खुशी में उन्हे भी शामिल करें। आप कितनी भी बड़ी अधिकारी क्यों न हों, आप उनसे बड़ी नहीं है, यह जतलाने की कोशिश न करें के आप बड़े ओहदे पर हें।
परिवार के सम्मान के विरुद्ध न बोलें 
     कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता कमियाँ भी होती हें, परिवार की कमी विषयक चर्चा भूलकर भी किसी से भी न करें। उनसे "हम सब जानते हें" यह कहना या कमी उजागर करना, उन्हे नीचा दिखने का प्रयत्न होगा जो वैवाहिक जीवन में विष घोल देगा।
कहावत है "जब हम किसी पर अंगुली उठाते हें तब तीन अंगुली हमारे और रहतीं हें"।  
क्षमा याचना
फिर भी कोई विवाद हो तो चाहे आप सही क्यों न हों क्षमा मांगे। बड़ों से क्षमा याचना करते रहने से जीवन आसान और सुखमय रहेगा। क्षमा मांगने से कोई भी अपराधी सिद्ध नहीं होता। क्षमा न मांगना अहंकार का प्रतीक है।   
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