बेटी
बेटी तोहफा है परवर दिगार का,
बेटी में लावण्य सोलह सिंगार का।
बेटी की चाहत चारों दिशाओं में,
बेटी झरोखा है बाबुल के व्दार का।।
बेटी पतंग आकाश को छूने वाली,
बेटी खुशबू फूल से निकलने वाली।
बेटी समाधान हर समस्या का,
बेटी करती दो परिवारो की रखवाली।।
बेटी की काया में परिवार की छाया,
बेटी की माया में संसार समाया।
बेटी करिश्मा है कुदरत का,
बेटी पर गंगा जमना का पावन साया।।
बेटी में दिल परिवार का,
बेटी ममता का सागर दरिया प्यार का।
बेटी सरल रखा,दो परिवार संवारे,
बेटी बहु के रूप में झोंका बहार का।।
बेटी विश्वास की बेला परिवार की दौलत,
इसमें न करना खयानत ।
बेटी धरा पर करे वंश विस्तार,
दुश्मन बनोगे तो न होगी जमानत।।
उघ्दव जोशी उज्जैन
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