ग्रहस्थ का आधार पत्नी ही है। घर की सुरक्षा व्यवस्था और संचालन का पूर्ण दायित्व पत्नी पर ही होता है । वह ग्रहस्थ रूपी व्रक्ष का मूल है। नारी बहूस्वरूपा है , जन्म लेकर बेटी,शादी करके बहू,संतान उत्पन्न कर मां,और अपने घर बहू लाकर सास बन जाती है। इस तरह एक नार संबोधन हजार हो जाते हैं। छिद्रान्वेषण वाला व्यक्ति परिभाषित करता है कि जो पति को पत नहीं करे उसे पत्नी कहते हैं । यह स्थिति उसी पति के साथ हो सकती है जिसमें पत्नी के साथ सहकार की भावना न हो अन्यथा पत्नी विपरीत अवस्था में भी घर की आस्था को आंच नहीं आने देती है। ग्रहस्थाश्रम का प्रारंभ विवाह संस्कार से होता है। कन्या को विवाह के पूर्व तीन देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है । सोम देवता ,सुशीलता,सौम्यता ,रितुजा और विनय,गंधर्व देवता स्वर माधुर्य तथा अग्नि देवता तेजस्विता,पवित्रता और प्रगति का आशीष देते हैं । मनु का कथन है कि जिस परिवार में स्त्री का आदर होता है वहां देवों का वास होता है और सभी प्रकार की श्री व्रध्दि होती है तथा जहां अनादर होता है उस घर की श्री नष्ट हो जाती है।
जीवन के लिए प्रसन्नता रसायन, स्वाभाविक सौंदर्य च्यवनप्राश और सदव्यवहार चुबंक होता है। इन गुणों से लबरेज नारी परिवार और समाज में लोकप्रिय होती है। सुखी ग्रहस्थ जीवन भी नवीन प्रेरणा नव विचार तथा नवयौवन की नींव पर आधारित होता है। कालिदास ने कुमार संभव में कहा है कि प्रियेषु सौभग्यफला ही चारूता , पति की प्रसन्नता ही स्त्री के सौंदर्य का परम लक्ष है। आदर्श ग्रहिणी में सरसता,विनम्रता,सरलता ,क्रदुता,परिश्रमशीलता,कर्मठता के गुण ही परिवार को सुखमय और दाम्पत्य जीवन को अम्रतमय बनाते हैं। दूसरों का सम्मान करने से अपना सम्मान बढता है । यह सबसे सरल वशीकरण मंत्र है । प्रणाम करते ही दूसरों चित्त द्रवित हो जाता है और अनायास ही वह शुभ वचन कहता है। अभिवादन शीलस्य,नित्यं व्रध्दोपसेविन । चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विध्या यशो बलम। दान का भी जीवन में महत्व है । सौ हाथों से कमाओ और हजार हाथों से दान करो । इस प्रकार आदर्श ग्रहिणी में आशीर्वाद लेने और दान देने का स्वाभाविक गुण होगा तो परिवार सुखी और सम्पन्न रहेगा1 जिस प्रकार जल को पाकर व्रक्ष या वनस्पति फलते फूलते है उसी प्रकार सुशील पत्नी को पाकर पति का परिवार आनन्दमय होता है। जैसे नदियों का अस्तित्व समुद्र में पहुंचकर समाप्त हो जाता है उसी प्रकार नारी भी अपने पति के परिवार से एकरूपता स्थापित कर ग्रहस्वामिनी बन जाती है। कालिदास जी ने उत्तरदायित्व की व्याख्या करते हुए कहा है कि राजा या सम्राट होने से केवल उत्सुकता या महत्वाकांक्षा की शांति होती है किन्तु उसके साथ जो उत्तरदायित्व आता है वह अत्यन्त कष्टसाध्य होता है तथा राजा को शांन्ति से नहीं बैठने देता है। ग्रह साम्राज्ञी की भी यही दशा होती है । पतिव्रता स्त्री अग्नितुल्य है। तभी उसे सूर्य,लोकप्रिय राजा और आत्मत्यागी वीरों की श्रेणी में रखा गया है।
वर्तमान संदर्भ में सुक्ष्मातिसुक्ष्म प्रतिशत उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाऐं ग्रहिणी के गुणों एवं घर के स्वर को महत्व न देकर दर बदर हो नौकरी को ही सर्वस्व समझे तो उसमें भी उनका दोष नहीं क्योंकि वातावरण का असर तो होना ही है। अपने सपनों का अवश्य आकार दो किन्तु सूर्य,चन्द्र धरा और आकाश के समान नारी को सौंदर्य तथा गुणों को मन से ओझल नहीं होने देना चाहिए।
तन को चाहे नर रूप बनालो, मन में तो नारी रमी हुई है।
अधिकार चाहे जितना ले लो, कर्त्तव्यों की कहां कमी हूई है।
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