नूतन वर्षाभिनंदन

                           
  नूनव्‍यसे नवीयसे सूक्‍ताय साधया,
पथ' प्रत्‍नवद रोचया रूच'।
 ऋग्‍वेद 6/9/8

       वेद भगवान की सद आंकाक्षा है कि तुम्‍हारे भीतर भी नूतन भावों का अवतरण हो। इसी पावन संदेश की गहरी छाया में  नूतन वर्ष भी पुराने से मुक्ति दिलाकर कुछ नया करने  के विचारों की मानसिक प्रष्‍ठ भूमि तैयार कर मानव मन को प्रेरित करता है।
       वर्तमान परिधि में अर्थहीन ईर्षाऐं, अहंकार, असत्‍यता, आलोचना, अत्‍याचार, जैसे अनेकों  विकार व्‍यक्ति और समाज को अशांत बना रहे हैं । मानवीय संवेदनाओं का दायरा अपनी विशालता खोकर सिमटता जा रहा है।यह स्थिति देश,राज्‍य,समाज और परिवार के लिए शुभ संकेत नहीं देती है।  मानव स्‍वयं के लिए तो प्रशंसा की आशा करता है किन्‍तु दूसरों की प्रशंसा में भारी कंजूसी करता है। सामाजिक सेवा में भी धन्‍यवाद की नहीं आलोचना की ज्‍यादा झडी लगती है,इससे घबराना नहीं चाहिए क्‍योंकि निस्‍वार्थ मेहनत निश्चित रूप से समाज में सम्‍मानजनक स्‍थान दिलाती है। आलोचना से उर्जा ग्रहण कर आगे बढने का साहस करना चाहिए। प्रक्रति हमेशा मानव मन की परीक्षा लेती है। इस कारण जितनी हम अपने लिए प्रशंसा  पाकर खुश होते है। उसी प्रकार हमें आलोचना को भी दामन फैलाकर समेटना चाहिए ।
        नव वर्ष की प्रभात बेला आने के पूर्व हम कई संकल्‍प  लेते हैं, उनमें से कुछ का पालन भी प्रारम्‍भ करते है जिसे कहा जा सकता है विषमताओं से समता के प्रांगण में प्रगतिशील वैचारिक सूर्योदय हमारे मन में उदित  होने जा रहा है। हमारे संकल्‍प स्‍थाई हों इसके लिए हमें सर्वप्रथम विकारयुक्‍त विचारों से भरे मन के गोदाम की सफाई करना होगी ताकि पवित्र मन के गोदाम में सेवा,सत्‍कार,संस्‍कार,समर्पण और सहयोग के भावों को द्रढ संकल्‍प के साथ प्रतिष्ठित कर मानवीय संवेदना की उर्जा से ओत प्रोत हो सके । तभी मानव मन में सूर्य जैसा तेज,चन्‍द्रमा सी ताजगी,पुष्‍प जैसी सौरभ और गंगा की लहरों जैसी उमंगे  हिलोरे लेने लगेगी जिससे सुख और शान्ति का वातावरण तैयार होकर मानव मन में सरलता,और सौंदर्य का बीजारोपण हो सकेगा ।
        द्रढ एवं पवित्र विचारों से ही मानव शक्ति सबल होती है । किसी एक प्रतीक को,किसी एक शब्‍द को ,किसी एक वाक्‍य को,किसी एक मंत्र को ,किसी एक भावना को समाज के सामने रख दिया जावे तो वह मानव समाज के लिऐ बहुत बडी शक्ति बन सकती है। जैसे चर्चिल ने एक शब्‍द '' व्‍ही फार व्हिक्‍टी ''याद रखने को कहा । नेपोलियन ने असंभव शब्‍द को अपनी डिक्‍शनरी से हटा दिया । आइंस्टिन  ने कहा दुनिया में ऐसी क्‍या चीज  है जो तुम नहीं कर सकते । वेद भी अक्षय विचारों का मानसरोवर है ,जिसके व्‍दारा मानव मन को उर्जावान बनाया जा सकता है।  
           नव वर्ष 2013 की हर सुबह सद विचारों से प्रारम्‍भ  हो ,हर संध्‍या को विकारों की होली जले । नव वर्ष में नव परिवर्तन की बयार चले । इन्‍ही भावनाओं के साथ नव वर्ष सभी के लिए मंगलमय हो ।
                                 
                                                                                                                     उद्धव जोशी


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