अमेरिका के रायल बैंक आफ कानडा के मंथली लेटर व्हाल्यूम 58/10 में एक लेख आया है '' पहले अपने पारिवारिक जीवन को सुरक्षित करें '' जिसमें परिवार को भूतल पर स्वर्ग बताते हुए उल्लेखित किया है कि परिवार में स्नेह न मिलने से सबसे अधिक नैतिक और सामाजिक समस्यायें जन्म लेती है । समाज के लिए व्यक्ति को जो संस्कार आवश्यक है वे परिवार में ही मिलते हैं । व्यक्ति निर्माण के लिए परिवार ही प्रथम केन्द्र है।
ग्रहस्थाश्रम का अर्थ है घर में सब सुखी हों,संतान सुमति सम्पन्न हो ,पत्नी म्रदुभाषिणी हो ,सुमार्ग से उपार्जित धन हो , अच्छे हितैषी मित्र हों , जहां अतिथि का सम्मान सत्कार किया जाता हो , प्रतिदिन भगवान का भक्तिपूर्वक पूजन हो , रूचिकर,पवित्र एवं सात्विक व्यंजनों से सबका भरण पोषण होता हो ,ऐसी ग्रहस्थी धन्य है ।
बीते कल का यादगार परिवार / संयुक्त परिवार हमारे देश की सुखद संपदा होकर इसमें अनुभवी व्रध्दों से लेकर कोमल शिशु का संविलियन रहता था । संयुक्त परिवार में अधिकार की कठोर भाषा अस्तित्वहीन होकर उसमें सुमधुर बोली का साम्राज्य रहता था। बडे,छोटे सभी अपना कर्त्तव्य निभाते हुवे सेवा का भाव रखते थे। संयुक्त परिवार प्रणाली के जीवन केन्द्र में 'में' नहीं 'हम' और 'मेरा ' नहीं 'अपना' का आत्मीय भाव सब सदस्यों का प्रेम सूत्र होता था। परिवार की सुख सुविधा गौरव व प्रतिष्ठा,समयबध्दता और सुनियोजित ढंग से कार्य करने के लिए सभी समर्पित रहते थे । प्रत्येक सदस्य को विचार की स्वतन्त्रता होती थी । आयु की ज्येष्ठता और अनुभव की श्रेष्ठता संयुक्त परिवार की बडी उपलब्धि है । परिवार का मुखिया कुटुम्ब कल्याण की भावना और निष्पक्ष निर्णय लेने की क्षमता के कारण परिवार के भिन्न भिन्न स्वभाव वाले सदस्यों को एक सूत्र में बांधे रखता था। संयुक्त परिवारों में व्रध्दावस्था को सम्मानजनक ,अति महत्वपूर्ण और उपयोगी माना जाता था। वे बचपन के लिए स्नेह का आधार,यूवाओं के लिए मार्गदर्शक,घर के रखवाले,पडोसियों के सलाहकार होकर परिवार और समाज के आधार व्रक्ष बनते थे ।
संयुक्त परिवार में कल,आज और कल का समन्वय दुध में शकर की तरह घुला मिला रहता था। भूतकोर याने व्रध्दावस्था अभाव, असंतोष, अनादर की ज्वाला में नहीं झुलसती थी, वर्तमान पीढी कर्मशील,चरित्रवान और उदारव्रत्ती की बनती तथा भविष्य निश्चिन्त और सुरक्षित रहता था । सभी के लिए अपनत्व का भाव रहता था । जल,थल,आकाशीय शक्ति और पशु पक्षियों को भी रिश्तों का संबोधन देते थे जैसे चंदामामा, सूरजदादा, बिल्ली मौसी, गौमाता आदि । दैनिक क्रियाओं में हम अभ्यागत ,अग्नि,कुत्ता, गाय आदि के लिए पंचग्रास निकालते थे 1 इन सबके कारण प्रेम,दया,करूणा,अंहिसा का भाव प्रबल होता था ।
आज का परिवार समस्याओं का अंबार / आज संयुक्त परिवार गुमनामी में खो गया है और परिवार के नाम पर केवल पति पत्नी,याने हम दो हमारे दो के परिवार ही मिल रहे हैं ।ऐसे परिवार में मिलता है चिंता,अविश्वास,प्रेमविहीन जीवन,असमय भोजन,पति पत्नी में तकरार, बीमार से रिश्तेदारी,बच्चों को झुलाघर,अपनों की कोई पहचान नहीं,रिश्तों में डैडी,मम्मी,अंकल और आंटी ही बचे हैं । बाल आश्रम, व्रध्दाश्रम का चलन बढा है। धन के बैंक बढ रहे हैं और मन के बैंक खाली हो रहे हैं । अकेलापन,सूनापन,टेंशन घन में डेरा जमाये बैठे हैं और शान से कहते हैं अपनों से तो पराये अच्छे,अपनी खाते अपना कमाते हैं । सोने वाले कमरों में लेट बाथ और होटल में खाना । ऐसे हैं आज के निरस और शुष्क परिवार की कहानी ।
आने वाले कल का पंगु परिवार / भविष्य के परिवारों की कल्पना से मन सिहर उठता है। वर्तमान पीढी अच्छी नौकरी और ज्यादा कमाने की होड में शादी से नाक भौं सिकोड रहे हैं ,उम्र में बुढे दिखाई दे रहे हैं । येन केन प्रकारेण वैवाहिक बन्धन में बांध दिया जाता है तो दैहिक लुक रखने के कारण बच्चे की चाह नहीं रखते हैं। बच्चों को आफत समझ रहे हैं । आगामी कल में धन की वर्षा होगी किन्तु परिवार अस्त व्यस्त,शुष्क और निरस होगें । मानव धरती पर भार स्वरूप ही होगा । जहां अपनों के लिए सपने नहीं वहां भूतों का ही डेरा डलेगा।
बीतें कल में अपनापन था, है आज अकेलापन।
आने वाला कल बैरोनक ,होगा सूना सूना जीवन ।
उद्धव जोशी
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