गप्पें लडाओ
हिंदुस्तान में गप्प सेटरों की कभी कोई कमी नहीं रही। कुआ, चौपाल ,चबुतरा, जहां चार लोग इकटठा हुए नहीं की इधर उधर की बातें शुरू हो जाती है। भारतीय अपने काम से काम रखने वालों में से नहीं है और गपियाने के खासे शौकिन हैं। रेल में, सडक पर, बाजार में लोग अनजानों से भी गपिया लेते हैं । मौसम से बात शुरू हो तो मोसमी बीमारियों, उनसे जुडे इलाजों से लेकर ग्रह नक्षत्रों की चाल तक आसानी से पहुंच जाती है । हम जानते है कि गप्पों में बडा आनन्द है। आधुनिक अनुसंधान तो ये बात अब बता रहे हैं मगर हम तो हमेशा से गप्पे लडाकर रसवर्धन करते रहे हैं ।
कुछ लोग यह सोंचते है कि गप्प लगाना मतलब निंदा स्तुति करना, चुगलखोरी करना, षडयंत्र करना है, मगर यदि मन में कलुष और इरादे में खोट न हो तो गप्प लगाना एक बेहद मासूम और साफ सुथरी प्रक्रिया है। भोली गप्पबाजी करना तनाव दूर करने का सबसे बढिया तरीका है। मन में जमा विचारों, भावनाओं और विष्लेषणों को बाहर आने देने का यह बिल्कुल नैसर्गिक तरीका है। गप्प में कोरी बातों के साथ किस्सागोई भी अनिवार्य रूप से शामिल है। बशर्ते यह किसी को हानि न पहुंचा रही है 1
सच तो यह है कि जब आप तनाव में होते हैं तो अपने प्रियजनों अथवा मित्रों के समक्ष स्थितियों की थोडी बहुत आलोचना करके भी आप मन की भडास निकाल लेते हैं। कभी कभी तो इसका फायदा यह होता है कि शिकायत फिर आपके मन में रह ही नहीं पाती। शिकायत का कांटा निकल चुका होता है। ऐसा भी हो सकता है कि आप जिसके साथ विचार बांट रहे हैं वह आपको बात का दूसरा द्रष्टिकोण बता दे। नहीं तो बांट लेने से मन हलका हो ही जाता है। दुनिया भर के मनोवैज्ञानिक बातों को एक दूसरे से बांट लेने का यह सार्थक प्रयोग मनोचिकित्सा के तौर पर कर रहे हैं ।
गप्पों का रिश्ता सिर्फ भडास से ही नहीं है । इन्सान की गप्पों का रंग बिरंगापन लुभाता है। हांकने को कई बातें होती है । लजीज ,लाजवाब गप्पे चाहे जितनी हांको, कहां से शुरू किस बात पे खतम हो इसका कोई ठिकाना नहीं। उंची फेकने पर कोई पाबन्दी नहीं। इसलिए गप्पे लडाना एक आजाद उडान की तरह प्रफुल्ल करने वाली प्रक्रिया है। एक बार गप्पों की महफिल जमी तो कई बार इ्ंसान का वहां से उठने का ही मन नहीं करता।
कभी कभी गप्प-रस के जरिये इन्सान अपनी अधूरी इच्छाओं, अधूरे सपनों को भी व्यक्त करता है। फिर मित्रों के बीच अपने वर्तमान की तारीफ करके स्वयं को ही यकीन दिलाता है कि जो हाथ न आया वो खटटा था। मित्र मंडलियों के बीच बातों की ऐसी महफिलें इंसान को अवचेतन में दबे छुपे भार से मुक्त कर देती है।
बातों की यह खूबी बात ही नहीं है। भौतिक रूप से भी यह सच है कि गप्पें मन और शरीर को तनाव मुक्त करते हैं और खुशी भी पैदा करते हैं । जब हम गपियाते हैं तो एंडोरफिरन नामक न्यूरोटांसमीटर हमारे शरीर में प्रवाहित होते हैं जो प्रसन्नता की भावना पैदा करते हैं । बात व्यक्तिगत न हो और ऐसी हो जिसका हमारे व्यक्तिगत जीवन से दूर दूर का कोई संबंध न हो तब भी गप्पे आनन्द देना नहीं भूलती । चाहे आप डालर के कोलेप्स होने की बात कर रहे हो या मर्लिन मूनरो की रहस्यमय मौत का विश्लेषण ,गप्पें तो आपको खुशी देंगी ही। बातों की रूई के साथ आप भी उडते हैं बेवजन होकर। बातें आपको एक दूसरे से जोडती है । लोगों के बीच पुल बनाती है। संबंधों की बीच की जडता को तोडती है। जिनसे आप बातचीत करते रहते हैं उनसे आप खुलते हैं। कई बार तो हम आम सामाजिक समस्याओं के बारे में बातों ही बातों में चर्चा कर लेते हैं और सही निष्कर्षो की ओर कदम बढाते हैं । ऐसी गप्पों का सामाजिक बदलाव में अपना योगदान अवश्य होता है।
गप्पों के साथ अचानक स्रजनात्मकता भी जुड जाती है। कभी उसमें हास्य का पुट भी होता है तो कभी गले की रूंधन। गप्पों ही गप्पों में हम अपना हास्यबोध भी प्रदर्शित करते हैं और सामने वाले को भी अपने सेंस आफ हयूमर से गुदगुदाते हैं।
गप्प लगाना कोई अपराध नहीं है। सच तो यह है कि गप्पबात दुनिया के सबसे पहले रेडियो,टीवी चेनल और समाचार पत्र हैं। अब तो कार्यालय में भी सहयोगियों का आपस में गप्पे लडाना बुरा नहीं माना जाता। काम के बीच बीच में थोडी गप्पें उर्जा को बढाती है आपको तरोताजा कर देती है। भोली गप्पों से न कोई अच्छी सूचना है न कोई मनोरंजन । ्संकलित
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