जमाई सा - दसवां ग्रह।

जमाई सा
धर्म साहित्‍य में नव ग्रहों का उल्‍लेख होकर उनके अलग अलग प्रभाव बताये गये हैं किन्‍तु कलिकाल में '' जमाई सा'' को दसवे ग्रह की उपाधि से नवाजा गया है।
जैसे ही बेटी में सयानेपन के लक्षण दिखाई देते हैं उसके लिए वर और घर परिवार के लिए जमाई की खोज जोर शोर से शुरू हो जाती है। सभी अपने वाले इस पावन यज्ञ में अपनी आहुति डालते हैं। पहले जमाई जी का इलेक्‍शन होकर बाद में किसी एक का सिलेक्‍शन होता है, और इसके बाद तो घर का कोना कोना खुशी से झुम उठता है।
जमाई जी सास ससुर के लिए सहयोगी, पत्‍नी के लिए पतवार, सालों के लिए सलाहकार तथा दोनों परिवारों को आपस में जोडने का सरलतम रास्‍ता होते हैं। जमाई जी अपनी सरलतम टेक्निक से मां को ममता और सास को समता में ढालने की तरकीब अपनाते हैं। पिता को प्रेम और ससूर को स्‍नेह की घूटी पिला कर दोनों परिवारों में सुखद वातावरण निर्मित करते हैं।
जमाई जी ससुराल में अपने स्‍वभाव और विचारों के अनुरूप अपना प्रभाव आक्‍सीजन या कार्बनडाई आक्‍साईड के रूप में छोडते हैं। शादी के पहले ससुराल को टटोलने वाले जमाई शादी के बाद बटोरते हैं। ऐसे जमाई शादी से पहले पत्‍नी को चंद्रमुखी, शादी के थोडे समय बाद सूर्यमुखी और इसके बाद तो ज्‍वालामुखी के रूप में देखने लगते हैं, किन्‍तु जो जमाई दोनों परिवारों में समानता देखते हैं, उनके व्‍यवहार में बारहो मास बसन्‍त अंगडाई लेता है।
सत्‍य के करीब ही इसे हम मान सकते हैं, कि जमाई से कभी जंग न करों वरना वह बेटी को तंग कर देगा। जमाई में दुनिया की सारी कायनात समाई हुई है। जमाई व बेटी जब साथ साथ ससुराल आते हैं, तो परिवार को बडा गर्व का अनुभव होकर बेटी की चहक महक भी देखने लायक होती है। दोनों परिवारों के सुरक्षा सूत्र पति पत्‍नी के हाथ में ही होते है। दोनों ही अपने परिवारों में सम्‍मान से रहना चाहते हैं, अपमान जरा भी बर्दाश्‍त नहीं कर सकते। आज के दौर में यदि पति की भूमिका न्‍यायिक रूप से पत्‍नी के पक्ष में हो तो बहू दहेज की दहकती आग की भेंट नहीं चढ सकती। जमाई को मानवीयता और शान्ति का सागर होना चाहिए। जमाई का चयन इसी आशा और विश्‍वास के आधार पर किया जाता है, कि वे बेटी और उसके परिजनों से ऐसा सदव्‍यवहार करें कि वे सर उठा कर समाज में चल सकें। यही आशा बेटी से भी बहु के रूप में रखी जाती है1 ससुराल में कोई भी समस्‍या खडी हो निर्णय के लिए जमाई राजा सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। साले साली के रिशतों को जोडने में भी जमाई राजा को प्राथमिकता दी जाती है।
वर्तमान समय में बेटियों के जन्‍म पर जो प्रश्‍न चिन्‍ह लग रहे हैं, इसमें यदि जमाई राजा अपनी सही जिम्‍मदारी को निभावें तो बेटी को आने सें परिवार का कोई सदस्‍य नहीं रोक सकता और रिश्‍तों के बेल बढने में उनका सिर गर्व से उंचा हो सकता है। जब बेटियों ही जन्‍म नहीं लेंगी तो बेटों को जमाई सा बनने का अवसर कैसे मिलेगा तथा इससे आगे तो बेटा बनने का अवसर भी हाथ नहीं आयेगा। इसलिए बेटी की किलकारी को आंगन में गूंजने दे , इससे रिश्‍तों में मिठास और जमाई सा की आस पूरी हो सके।
यह संदेश उन बेटियों के लिए चेतावनी के रूप में है, जो केवल शादी कें झंझट में न पड कर केवल नौकरी ओर पैसों के बल पर रहना चा‍हती है, खतरनाक होगा। ऐसी बच्चियों का भविष्‍य अन्‍धकार मय होकर उनमें असुरक्षा के भाव जन्‍म लेगें, रिश्‍तों की सुहानी धपू उनसे सदा दूर रहेगी, तन्‍हा जीवन बिताना पडेगा और परिवार की भाषा को ही भूल जायेंगी। ऐसी बेटिया सोंचे औरे पति का वरण कर किसी के बेटे को अपने घर का दामाद बनने का अवसर दे, या वे अपने लिए स्‍वयं ही योग्‍य वर का चयन कर अपने जीवन को सुरक्षित करें।
जमाई वह केन्‍द्र बिंदू है जिसके आस पास दुनियादारी का चक्र घुमता रहता है । जमाई राजा तो राजा ही होता है जिसके आस पास आनन्‍द ही आनन्‍द निवास करता है। जमाई होगा तो परिवार होगा अन्‍यथा उजडा हुआ संसार होगा। 

- उद्धव जोशी, उज्‍जैन
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