जन्‍म पत्रिका बनाम वैवाहिक संबंध

           मानव मस्तिष्‍क सदैव कुछ नया करने की और अग्रसर होता रहता है। इसी कडी में उसके दिमाग ने इस विचार को जन्‍म दिया की भूतकाल की जानकारी हमारे पास मौजूद है, वर्तमान को जीते हुए हम निकट से उसे देख रहे हें, तो भविष्‍य को भी जानना आवश्‍यक है, और जन्‍म समय को  आधार मान कर ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार जन्‍म कुण्‍डली बनाई जाने लगी।
       
जन्‍म पत्रिका मानव जीवन का वह दर्पण माना जाने लगा, जिसमें उसके जन्‍म से लेकर मृत्‍यु तक का विवरण अंकित रहता है। बालक/बालिका के जन्‍म समय ही उनके पूरे जीवन के घटनाक्रमों को जन्‍म कुण्‍डली के माध्‍यम से दर्शा देने में सहायक समझा गया। मानो जैसे जन्‍म समय को केमरा और जन्‍म कुण्‍डली में कैद ग्रह नक्षत्र मानव जीवन को चित्रांकित कर दिया गया हो। 
           ज्‍योतिषी भी दो प्रकार से जन्‍म पत्रिका बनाते है। एक जिसमें जीवन भर का  इतिहास बता दिया जाता है, जो दो अर्थ वाला होता है, जिनमें एक तो होगा ही। और दूसरी अति संक्षिप्‍त में जिसमें केवल ग्रह नक्षत्र खानों में बैठे हुए दिखाई देते हैं, उनकी क्रिया प्रतिक्रिया के लिए ज्‍योतिषी का सहयोग लेना आवश्‍यक होता है। अच्‍छे के तो सभी साथी संगी बन जाते है, किन्‍तु बुरा समय दिखाई देता है, तो ज्‍योतिषी जी उसकी शांति के उपाय बताने में तनिक भी देर नहीं करते। इन कुंडलियों की चर्चा जीवन में संकट के या बुरे वक्त पर जरूर आती हे।  
          जन्‍म पत्रिका भविष्‍य की और देखती है। युवा युवतियां जब विवाह योग्‍य आयु में कदम रखते हैं उनके लिए जीवन साथी चयन करने की चर्चा चल पडती है।  लिफाफे में बन्‍द जन्‍म पत्रिका को ढूढा जाता है। मध्‍यस्‍थ यदि कोई प्रस्‍ताव लाता है, तो सर्व प्रथम फोटो और पत्रिका की मांग की जाती है। कोई परिवार तो यह भी कहते सुना गया की हम पत्रिका  मिलान में विश्‍वास तो नहीं करते किन्‍तु सामने वाला पक्ष चाहेगा तो हम पत्रिका मिलान के लिए तैयार हैं। इस प्रकार एक पक्ष को तो पत्रिका मिलान के लिए अपने सिध्‍दान्‍त की बलि चढाना ही पडती है।  पण्डित पत्रिका मिलान करते हैं या कम्‍प्‍यूटर से मिलान करवाया जाता है। कम्‍प्‍यूटर की भाषा पूर्व लिखित रहती है किन्‍तु ज्‍योतिषी से कहो तो वह ग्रहों का विश्‍लेषण कर मिलान की स्थिति स्‍पष्‍ट करता है। युवा युवति की पत्रिका मिलान में कई तरह के अवरोध आते हैं, और मंगल की स्थिति तो ज्‍यादा अवरोधक बन जाती है, जबकि शनि की कोई चर्चा नहीं करता है।  यह भी कहते सुना जाता है, कि बेटे या बेटी को आंशिक मंगल होने से किसी से भी पत्रिका मिलान हो सकती है, फिर भी आंशिक मंगल की धारणा तो मन में रहती ही है।  गुणों का मिलान संख्‍यात्‍मक रूप में ज्‍यादा मिले तो थोडा संबंध करने का मन होता है, किन्‍तु कम मिले तो संबंध नहीं हो सकता। 3 नाडीयों के मिलान में यदि दोनों की नाडी एक ही हो तो नाड़ी दोष मानकर संबंध उचित नहीं माना जाता है। पण्डित जी इनका विश्‍लेषण कर इनके समाधान के रास्‍ते भी बताते हैं। पत्रिका मिलान करने वाले ज्‍योतिषियों  के बीच भी इस संबंध में मतान्‍तर देखा गया है। पत्रिका के मिलान नहीं होने पर तो वैवाहिक संबंध होते ही नहीं है, पत्रिका मिलान की आड लेकर मन माफिक जवाब तत्‍काल दे दिया जाता है,  किन्‍तु पत्रिका मिलान में अच्‍छी ग्रह मैत्री, अधिक गुणो का मिलान, नाडी दोष का नहीं होना, और सभी प्रकार से सर्वश्रेष्‍ठ पत्रिका मिलान होने पर भी वैवाहिक संबंध नहीं जुडते है।  क्‍योंकि इसके बाद असली मिलान याने बच्‍चे बच्चियों के रंग रूप, हाईट, उच्‍च शिक्षा, आर्थिक स्थिति, नौकरी, रिश्‍तेदारी, व्‍यवहार कुशलता, परिवार बडा है, या छोटा जैसे अनेक ऐसे बिन्‍दुओं पर चर्चा होती है, और किसी न किसी विषय वैवाहिक संबंध जोडने में अवश्‍य अवरोधक का काम कर जाता है। यदि कोई बात अन्‍यथा नहीं हूई, तो सब मुददों पर परिवार-जनों की सन्‍तुष्टि के बाद सारी जिम्‍मेदारी युवा युवतियों पर उनके आपस में देखने, चर्चा करने के बाद स्‍वीकृति देने की डाल दी जाती है।  दो के बीच दो बाते ही प्रमुख चर्चा का विषय होती है, पहली सुन्‍दरता तथा दूसरी जीवन जीने के स्‍टैटस और विचारों में थोडी सी भी भिन्‍नता आने पर संबंध की चर्चा यहीं दम तोड देती है। यह तो दोनों के बीच का मसला होने से नापसन्‍दगी पर प्रारम्‍भ में समाप्‍त हो जाता है तथा  भविष्‍य विद्रोह से बच जाता है। किन्‍तु जन्‍म पत्रिका के मिलान नहीं होने से कई समस्‍यायेँ विकराल रूप लेने लगती है, जैसे बेटे बेटियों की उम्र बढना, रिश्‍तेदारों की अनेकानेक सलाह और ताने, अभिभावकों के मानस पटल पर चिन्‍ता की लकीरें खीचना, संबंध के लिए लगातार लडके पक्ष का लडकी पक्ष के घर आना, संबंध नहीं जमने पर लडकी की मानसिक स्थिति अव्‍यवस्थित होना, लडके /लडकियों की आपसी रजामन्‍दी के बाद यदि पत्रिका व्‍यवधान बनती है, तो उनका भाग जाना या आपस में शादी कर लेना जैसी कई दुविधाएँ सामने खडी हो जाती है।
                  हमारे यहां भाग्‍य और कर्म को प्रमुख रूप से प्रधानता दी जाती है, किन्‍तु बच्‍चों के वैवाहिक संबंधों के समय ये सब गौण होकर पत्रिका प्रमुख हो जाती है। पत्रिका मिलान का विरोध नहीं है, किन्‍तु अब तो  वैवाहिक संबंधों में ऐसे जवाब सामने आ रहे है, जिनकी वजह से यह महसूस होने लगा है, कि पत्रिका संबंध जोडने के बजाय संबंध नहीं करने के जवाब के लिये काम आ रही है।
                पत्रिका मिलान के बारे में लोग कई प्रकार की नि:शुल्‍क सलाह देते हुवे कहते है, कि पत्रिका सही समय से बनी है, इसकी क्‍या गैरन्‍टी, मंगल तो सबका भला ही करता है, एक उम्र के बाद मंगल का कोई प्रभाव नहीं होता, ज्‍योतिषी भी समाधानकारक टोटके बता देते है, लडका लडकी राजी तो क्‍या करे काजी, छोडो पत्रिका वत्रिका का चक्‍कर, उम्र बढने के साथ अन्‍य कोई चक्‍कर बच्‍चों के साथ न हो जावे आप तो मन गवारा करे तो संबंध कर ही दो। ऐसे अनेकानेक सुझाव प्रस्‍तुत कर दिये जाते हैं, जिनको सुनने के बाद तो माता पिता का दिमाग ही चकराने लगता है, वह निर्णय ही नहीं कर पाते हैं, कि ऐसी परिस्थिति में क्‍या किया जायें।
              वैवाहिक संबंध जोडने के लिए परम्‍परागत व्‍यवस्‍था जन्‍म पत्रिका मिलान की होकर करोडों लोग ज्‍योतिष पर विश्‍वास कर इससे जुडे हुवे होने के कारण इसे नकारा नहीं जा सकता, किन्‍तु कई बार सैकडो पत्रिकाओं के मिलान के बाद भी स्थिती जस की तस रहते हुवे, समस्‍यायें पैदा होने लगती है। ऐसी स्थिति में  माता पिता को  पत्रिका मिलान को नजरअन्‍दाज करते हुए ईश्‍वर के प्रति विश्‍वास, अपने आत्‍मविश्‍वास, और सकारात्‍मक स्‍वनिर्णय की यह आवाज  मन के किसी कोने से सुनाई दे, कि यह संबंध तय कर लो तो बेहिचक, बिना देर किए संबंध तय कर लेना चाहिए क्‍यों कि रिश्‍तेदारी अच्‍छी हो, युवा युवति एक दूसरे को पसन्‍द करते हों तो खुला निर्णय करना ही चाहिए।  भाग्‍य के आगे न पत्रिका की चलेगी न लोगों की राय महत्‍व रखेगी, जो होना है, वह होकर ही रहेगा। इसके बाद भी सबको यही कहते पाया गया है, कि सब कुछ अच्‍छा ही होगा। जब हमारी सबकी यह मान्‍यता है, तो फिर दूसरों के कन्‍धो पर बन्‍दूक रख कर चलाने के बजाय बेटे बेटियों के जीवनसाथी चयन में बच्‍चों की राय और अपना निर्णय ही सर्वोपरी होना चाहिए जो निश्चित रूप से सुखदायक और फलदायक ही होगा। ईश्‍वर का आशीर्वाद भी आत्‍म विश्‍वास को मिलता है। हमे यह ध्‍यान रखना चाहिए की पत्रिका तो बनती है,  किन्‍तु  स्‍वनिर्णय व आत्‍मविश्‍वास से लिया गया निर्णय जोडी को बनाता है। बेटे बेटियों की प्रसन्‍नता, रिश्‍तेदारी की गरिमा,जमाई या बहू की प्रतिभा का लाभ पत्रिका का  मिलान न होने के कारण न छोडे। ऐसे समय अपने निर्णय को महत्‍व देकर प्रसन्‍नता को प्राप्‍त करें और भरोसा भगवान पर रखें।
                उज्जैन के एक प्रमुख ज्योतिषी जी जिनके द्वारा निर्मित पंचांग बहुत प्रसिद्ध है, ने क्या अपनी पुत्री का विवाह जन्म कुंडली से संतुष्ट होने के बाद ही नहीं किया होगा? पर विवाहोपरांत कुछ कल बाद ही वेध्यव्य का अभिशाप झेलना पढ़ा था। क्या कुंडली मिलान की सत्यता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगता?                                                                                      उद्धव  जोशी, उज्‍जैन


इसका प्रकाशन समाज हित में किया जा रहा है,सभी बंधुओं से सुझाव/सहायता की अपेक्षा है।