पुजा के समय बांधा जाने वाला कलावा प्रति दिन बदलने वाले वस्त्र की तरह प्रतिदिन बदला जाए या हर हाल में अगले दिन उतार देना ही चाहिए?
हिन्दू धर्म से संबन्धित कोई भी व्यक्ति जब किसी भी कार्य का कोई संकल्प लेता है, तो प्रतीक के रूप में एक कलावा आंटी या नाड़ा बांधा जाता है। मान्यता है की संकल्प पूरा होने तक, इसे बंधा हुआ रखना चाहिए, ताकि संकल्प याद रहे।
अधिकतर किसी पुजा/ यज्ञ आदि के लिए पुरोहित/ पण्डित प्रारम्भ में कलाई पर बांधते हें, ओर यज्ञ, पुजा आदि की समाप्ती के साथ ही संकल्प पूरा हो जाता है। अर्थात वह शुभ कार्य कर लिया गया है।
पर इस कलावे को लोग एक दिन ही धारण करें तो बात ठीक है। पर यह कलावा कई- कई दिन तक हाथ पर बंधा रहता है, केवल यह एक ही यही नहीं, उसी के ऊपर एक के बाद एक कई कलावे बँधवाये जाते रहते है।
यह केवल एक धार्मिक दिखने का प्रदर्शन मात्र है, किसी भी धर्म ग्रंथ यह नहीं लिखा है, की इसको हमेशा बांधे रखना चाहिए, सभी शास्त्र इस बारे में यही कहते हें की पुजा आदि शुभ कार्य के समय इसको बांधना चाहिए।
धर्म ग्रंथ जिस प्रकार साफ कपड़े, पहनकर शुभ पुजा कार्य का निर्देश देते हें, उसी प्रकार का ही कलावा का निर्देश है, पर जब हम पुजा के बाद उसी दिन या अगले दिन पुन: नए कपढ़े पहनते हें तो फिर क्यों इस सूत्र या कलावे को नहीं उतारते । इसको भी प्रतिदिन वस्त्रों की तरह बदलना आवश्यक होता है, क्योकि यह भी वस्त्र की तरह से गंदा,रंगहीन, ओर जीवाणु किटाणुओं का घर बन जाया करता है।
जब भी हम भोजन आदि बनाते खाते, या किसी खाध्य सामग्री को उठाते हें तो इसमें रह रहे किटाणु आसानी से उन खाध्य पदार्थों में सम्मलित होकर फेलने ओर बीमारी फेलाने का काम करते हें।
अत: हमेशा केवल दिखावे के लिए इसे धारण किए रहना कोई बुद्धिमानी पूर्ण कार्य नहीं हें।
यदि आप वास्तव में धार्मिक हें या दिखना चाहते हें तो आपको चाहिए की प्रतिदिन पूजा करके नवीन कलावा धारण करें, पुराना उतार कर विसर्जित कर दें। यह न केवल स्वस्थ्य के लिए वरन् आपके धार्मिक विश्वास के लिए भी फल दाई होगा।
- पुजा के समय बांधा जाने वाला कलावा अगले दिन उतार दे...: पुजा के समय बांधा जाने वाला कलावा प्रति दिन बदलने वाले वस्त्र की तरह प्रतिदिन बदला जाए या हर हाल में अगले दिन उतार देना ही चाहिए? .