Hinduism related धर्म विषयक
- हाथ में कलावा-नाड़ा- या आंटी (एक सूत्र जो पुजा के संकल्प के समय आचार्य बांधते हें) क्यों बंधा जाता है?
- हिन्दू धर्म से संबन्धित कोई भी व्यक्ति जब किसी भी कार्य का कोई संकल्प लेता है, तो प्रतीक के रूप में एक कलावा आंटी या नाड़ा बांधा जाता है। मान्यता है की संकल्प पूरा होने तक, इसे बंधा हुआ रखना चाहिए, ताकि संकल्प याद रहे।अधिकतर किसी पुजा/ यज्ञ आदि के लिए पुरोहित/ पण्डित प्रारम्भ में कलाई पर बांधते हें, ओर यज्ञ, पुजा आदि की समाप्ती के साथ ही संकल्प पूरा हो जाता है। अर्थात वह शुभ कार्य कर लिया गया है।
- क्या एक बार बांधा कलावा कई दिन तक धारण किया जा सकता है?
- नहीं धर्म ग्रंथ जिस प्रकार साफ कपड़े, पहनकर शुभ पुजा कार्य का निर्देश देते हें, उसी प्रकार का ही कलावा का निर्देश है, पर जब हम पुजा के बाद उसी दिन या अगले दिन पुन: नए कपढ़े पहनते हें इसी तरह से सूत्र या कलावे को भी प्रतिदिन वस्त्रों की तरह बदलना आवश्यक होता है। यह न केवल धार्मिक विश्वास के लिए वरन् आपके स्वस्थ्य के लिए भी फल दाई होगा।
- वास्तु विचार से कलावा प्रति दिन बदलना क्या जरूरी है?
- जी हाँ कलावा सूत (कपास से बना धागा) से बनाता है, जिस प्रकार प्रतिदिन नवीन या स्वच्छ वस्त्र धारण करना अति आवश्यक है, उसी प्रकार से प्रति दिन नवीन ओर स्वच्छ धुला हुआ कलावा धारण करना आवश्यक होता है, चूंकि यज्ञोपवीत की तरह कलावे को प्रतिदिन अच्छी तरह से साफ किया जाना संभव नहीं, क्योकि यह अति कच्चे धागे ओर रंगो की सहायता से बनाता है, जो धोने पर टूट जाते हें, रंग निकल जाता है, ओर निगेटिव ऊर्जा सक्रिय होकर हानी पहूँचाती है। जबकि यज्ञोपवीत का धागा अच्छा होता है, उसे हल्दी से रंगा जाता है, इसी कारण कुछ अधिक दिन तक धारण किया जा सकता है।
- शक्ति पीठ कितने हें?
- माँ शक्ति के 52 शक्तिपीठ- हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठोंको जिक्र मिलता है वहीं तन्त्रचूडामणि में माँ शक्ति के 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में जरूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित हैं।
- हम आरती क्यों करते है ?
- जब भी कोई घर में भजन होता है, या कोई संत का आगमन होता है, या पूजा पाठ के बाद हिंदू धर्म में दीपक को दायें से बाएँ तरफ़ वृताकार रूप से घुमा कर, साथ में कोई वाद्य यन्त्र बजा कर अन्यथा हाथ से घंटी या ताली बजा कर भगवान की आरती की जाती है. ये पूजा की विधि में षोडश उपचारों में से एक है। आरती के पश्चात दीपक की लौ के उपर बाएँ हाथ से दायें घुमा कर हाथ से आँखों और सर को छुआ जाता है, आरती में कपूर जलाया जाता है, वो इसलिए की कपूर जब जल जाता है, तो उसके पीछे कुछ भी शेष नही रहता। ये दर्शाता है कि हमें अपने अंहकार को इसी तरह से जला डालना है, ओर मन में कोई द्वेष, विकार बाकी न रह जाए, कपूर जलते समय एक भीनी सी महक भी देता है, जो हमें बताता है, कि समाज में हमें अंहकार को जला कर खुशबु की तरह फैलते हुए सेवा भावः में लगे रहना है। दीपक प्रज्वालित कर के जब हम देव रूपी ज्ञान का प्रकाश फैलाते है तो इससे मन में संशय और भय के अंधकार का नाश होता है। उस लौ को जब हम अपने हाथ से अपनी आँखों और अपने सर पर लगा कर हम उस ज्ञान के प्रकाश को अपनी नेत्र ज्योति से देखने और दिमाग से समझने की दुआ मांगते है।
- हम नमस्कार या प्रणाम क्यों करते है ?
- शास्त्रों में पाँच प्रकार के अभिवादन बतलाये गए है, जिन में से एक है “नमस्कारम्”. नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है। संस्कृत में इसे विच्छेद करे तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है, नमः + ते. नमः का मतलब होता है। मैं (मेरा अंहकार) झुक गया. नम का एक और अर्थ हो सकता है, जो है न + में यानी की मेरा नही।
- आध्यात्म की दृष्टी से इसमे मनुष्य दुसरे मनुष्य के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है। नमस्ते करते समय में दोनों हाथो को जोड़ कर एक कर दिया जाता है, जिसका अर्थ है की इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गये।
- हम बडो के पैर क्यों छूते है ?
- भारत में बड़े बुजुर्गो के पाँव छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। ये दरअसल बुजुर्ग, सम्मानित व्यक्ति के द्वारा किए हुए उपकार के प्रतिस्वरुप अपने समर्पण की अभिव्यक्ति होती है। अच्छे भावः से किया हुआ सम्मान के बदले बड़े लोग आशीर्वाद देते है, जो एक सकारात्मक उर्जा होती है।
- आदर कितने प्रकार से देते हें?
- प्रत्युथान :- किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना।
- नमस्कार : - हाथ जोड़ कर सत्कार करना ।
- उपसंग्रहण :- बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना।
- साष्टांग : - पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पुरे लेट कर सम्मान करना।
- प्रत्याभिवादन :- अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना।
किसे किसके सामने किस विधि से सत्कार करना है, ये शास्त्रों में विदित है। उदहारण के तौर पर राजा केवल ईश्वर , ऋषि मुनि, या गुरु के सामने नतमस्तक होते थे।
- ॐ का उच्चारण क्यों करते है ?
- हिंदू धर्म में ॐ शब्द के उच्चारण को बहुत शुभ माना जाता है, प्रायः सभी मंत्र ॐ से शुरू होते है, ॐ शब्द का मन, चित्त, बुद्धि और हमारे आस पास केवातावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ॐ ही एक ऐसा शब्द है, जिसे अगर पेट से बोला जाए तो दिमाग की नसों में कम्पन होता है, इसके अलावा ऐसा कोई भी शब्द नही है, जो ऐसा प्रभाव डाल सके।
- ॐ शब्द तीन अक्षरो से मिल कर बना है, जो है “अ”, “उ” और “म”. जब हम पहला अक्षर “अ” का उच्चारण करते है, तो हमारी वोकल कॉर्ड या स्वरतन्त्री खुलती है, और उसकी वजह से हमारे होठ भी खुलते है। दूसरा अक्षर “उ” बोलते समय मुंह पुरा खुल जाता है और अंत में “म” बोलते समय होठ वापस मिल जाते है।
- अगर आप गौर से देखेंगे तो ये जीवन का सार है, पहले जन्म होता है, फिर सारी भागदौड़ और अंत में आत्मा का परमात्मा से मिलन।
- .ॐ के तीन अक्षर आद्यात्म के हिसाब से भी ईश्वर और श्रुष्टि के प्रतीकात्मक है, ये मनुष्य की तीन अवस्था (जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति), ब्रहांड के तीन देव (ब्रहा, विष्णु और महेश) तीनो लोको (भू, भुवः और स्वः) को दर्शाता है. ॐ अपने आप में सम्पूर्ण मंत्र है।
- दीपक क्यो प्रज्वालित किया जाता है?
- हर हिंदू के घर में भगवान के सामने दीपक प्रज्वालित किया जाता है, हर घर में आपको प्रात: ओर शाम को या एक या दोनों समय दीपक प्रज्वालित किया जाता है। कई जगह तो अविरल या अखंड ज्योत भी की जाती है। किसी भी पूजा में दीपक पूजा शुरू होने के पूर्ण होने तक दीपक को प्रज्वालित कर के रखते है। प्रकाश ज्ञान का घोतक है, और अँधेरा अज्ञान का, प्रभु ज्ञान के सागर और सोत्र है, इसलिए दीपक प्रज्वालित कर प्रभु की अराधना की जाती है। ज्ञान अज्ञान का नाश करता है, और उजाला अंधेरे का। ज्ञान वो आंतरिक उजाला है, जिससे बाहरी अंधेरे पर विजय प्राप्त की जा सकती है। अत: दीपक प्रज्वालित कर हम ज्ञान के उस सागर के सामने नतमस्तक होते है।
- प्रकाश तो बिजली से भी हो सकता है, फिर दीपक की क्या आवश्यकता ?
- दीपक का एक महत्त्व है, दीपक के अन्दर का घी या तेल, हमारी वासनाएं, हमारे अंहकार का प्रतीक है, और दीपक की लौ के द्वारा हम अपने वासनाओं और अंहकार को जला कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते है। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है, कि दीपक की लौ हमेशा ऊपर की तरफ़ उठती है, जो ये दर्शाती है कि हमें अपने जीवन को ज्ञान के द्वारा को उच्च आदर्शो की और बढ़ाना चाहिए।
- आइये दीप देव को नमस्कार करे - शुभम करोति कल्याणम् आरोग्यम् धन सम्पदा, शत्रु-बुध्दि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते॥ सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, शत्रुता बुद्धि (विचार) को विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं।
- श्राद्ध, तर्पण, पिंड दान, क्या होते हें?
- पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं।
- तर्पण- तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं।
- तर्पण करना ही पिंडदान करना है। श्राद्ध पक्ष का माहात्म्य उत्तर व उत्तर-पूर्व भारत में अधिक है। तमिलनाडु में आदि अमावसाई, केरल में करिकडा वावुबली और महाराष्ट्र में इसे पितृ पंधरवडा नाम से जानते हैं।
- क्यों नहीं रखते पूर्व और दक्षिण दिशा में पैर?
- विज्ञान की दृष्टिकोण से देखा जाए तो पृथ्वी के दोनों ध्रुवों उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में चुम्बकीय प्रवाह विद्यमान है। दक्षिण में पैर रखकर सोने से व्यक्ति की शारीरिक ऊर्जा का क्षय हो जाता है और वह जब सुबह उठता है तो थकान महसूस करता है, जबकि दक्षिण में सिर रखकर सोने से ऐसा कुछ नहीं होता।
- उत्तर दिशा की ओर धनात्मक प्रवाह रहता है और दक्षिण दिशा की ओर ऋणात्मक प्रवाह रहता है। हमारा सिर का स्थान धनात्मक प्रवाह वाला और पैर का स्थान ऋणात्मक प्रवाह वाला है। यह दिशा बताने वाले चुम्बक के समान है कि धनात्मक प्रवाह वाले आपस में मिल नहीं सकते।
- हमारे सिर में धनात्मक ऊर्जा का प्रवाह है जबकि पैरों से ऋणात्मक ऊर्जा का निकास होता रहता है। यदि हम अपने सिर को उत्तर दिशा की ओर रखेंगे को उत्तर की धनात्मक और सिर की धनात्मक तरंग एक दूसरे से विपरित भागेगी जिससे हमारे मस्तिष्क में बेचैनी बढ़ जाएगी और फिर नींद अच्छे से नहीं आएगी। लेकिन जैसे तैसे जब हम बहुत देर जागने के बाद सो जाते हैं तो सुबह उठने के बाद भी लगता है कि अभी थोड़ा और सो लें।
- जबकि यदि हम दक्षिण दिशा की ओर सिर रखकर सोते हैं तो हमारे मस्तिष्क में कोई हलचल नहीं होती है और इससे नींद अच्छी आती है। अत: उत्तर की ओर सिर रखकर नहीं सोना चाहिए।
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