अ. भा. औदीच्य महासभा की साधारण सभा के घटनाक्रम का सही एवं तथ्यात्मक विवरण -प्रस्तुत कर्ता - रमेश पण्ड्या, उज्जैन

अ. भा. औदीच्य महासभा की साधारण सभा के घटनाक्रम का सही एवं तथ्यात्मक विवरण
प्रस्तुत कर्ता - रमेश पण्ड्या,  उज्जैन


     औदीच्य बन्धु के माह फरवरी 2015 के अंक में समाज के बन्धुओं व्दारा अपने अपने ढंग से  अ. भा. औदीच्य महासभा की बैठक दिनांक 11 जनवरी 2015  के घटनाक्रम पर प्रतिकियांए व्यक्त की गई है। कुछ प्रतिक्रियांए पूर्वाग्रह से ग्रसित थी,   तथा एक बन्धु व्दारा अपनी बौध्दिक शक्ति का पूर्ण उपयोग व्यक्ति विशेष की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से ही प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। प्रतिक्रिया विशेष जिसमें स्पष्ट तौर पर मेरा नाम उल्लेखित किया गया है,  पूर्णतः असत्य एवं समाज को भ्रामक जानकारी देने वाली प्रतिक्रिया तो है ही वहीं दूसरी और मेरी एवं समाज  के वरिष्ठजनों की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने की कुचेष्टा है।
इस संबंध में, मैं पूर्ण ईमानदारी एवं निष्पक्ष भाव से महासभा की बैठक का सम्पूर्ण घटनाक्रम  समाज के समक्ष प्रस्तुत करना अपना दायित्व समझता हूँ। लगभग 1500 समाजजन सम्पूर्ण घटनाक्रम के साक्षी रहे हैं।
महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के  निर्वाचन के लिए स्थान एवं तिथि के निर्धारण हेतु राष्ट्रीय  अध्यक्ष श्री रघुनन्दन जी शर्मा की अध्यक्षता में, एक अनौपचारिक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में श्री रघुनन्दन जी शर्मा,  श्री प्रकाश दुबे, श्री सुरेशचन्द्र उपाध्याय, श्री उदयसिंह पण्ड्या, श्री वासुदेव रावल,  श्री मोहनलाल जोशी,  श्री रवि ठक्कर, श्री सत्यनारायण पटेल,  श्री चन्द्रशेखर वशिष्ठ,  श्री भगवानसिंह शर्मा,  श्री उद्धव जोशी, श्री ओमप्रकाश पण्ड्या, श्री सुभाष पण्ड्या, श्री रमेश पण्ड्या, श्री शरद त्रिवेदी, श्री सुनिल पण्ड्या, श्री श्याम मेहता, श्री पंकज जोशी, श्री महेन्द्र त्रिवेदी, आदि सम्मलित हुए थे।
बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया, कि महामालव क्षेत्र में समाज के संगठन सक्रिय होकर आवागमन एवं आवास आदि की सुलभ व्यवस्था है। ऐसी स्थिति में उज्जैन में महासभा की साधारण सभा आयोजित की जावे, ताकि समाज के अधिक से अधिक बन्धु सम्मिलित हो सके। इस संम्बन्ध में उसी समय राजस्थान,  महाराष्ट्र्,  गुजरात के साथ ही इन्दौर व उज्जैन के वरिष्ठजनों से दूरभाष पर सहमति ली गई। राष्ट्रीय अध्यक्ष व्दारा सर्वानुमति से अध्यक्ष के निर्वाचन की कार्यवाही हो सके इस हेतुि श्री मोहनलाल जी  जोशी, अध्यक्ष महामालव औदीच्य ब्राहमण संगठन उज्जैन को संयोजक बनाया गया जो समाज के वरिष्ठजनों से चर्चा कर सर्वसम्मति से अध्यक्ष के पद का निर्वाचन सम्पन्न करवायें। महासभा के आयोजन की तिथि, स्थान एवं समय की सूचना विधिवत प्रकाशित की गई, एवं सभी सदस्यों को लिखित में सूचना भेजी गई। 
निर्धारित तिथि, स्थान एवं समय पर महासभा की कार्यवाही प्रारम्भ करने के पूर्व परम्परानुसार महासभा की कार्यकारिणी की अन्तिम बैठक सम्पन्न हुई। बैठक में अध्यक्ष व्दारा समाज के प्रति कृतज्ञता का प्रस्ताव तथा महासभा की कार्यवाही का एजेण्डा अनुमोदनार्थ  रखा गया जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया।
एजेण्डानुसार महासभी की कार्यवाही प्रारम्भ की गई! मुझे निर्वाचन की प्रक्रिया की जानकारी प्रस्तुत करने को कहा गया (मतदान की प्रक्रिया के लिए नहीं) निर्वाचन प्रक्रिया की जानकारी देना एवं निर्वाचन प्रक्रिया की कार्यवाही करना दोनों पृथक पृथक विषय है। महासभा के संविधान में मतदान के जरिये निर्वाचन प्रक्रिया अपनाने के पूर्व की कार्यवाही संबंधी प्रावधान सदस्यों को बताना बाध्यकर होने से सदस्यों के समक्ष  प्रस्तुत करना मेरा दायित्व  था। संविधान की धारा (नौ) निर्वाचन पध्दति (ख) महासभा के पांच सदस्य  किसी भी वरिष्ठ व्यक्ति का अध्यक्ष हेतु प्रस्ताव करेगें,  अन्य नाम न आने पर निर्वाचन अधिकारी प्रस्तावित व्यक्ति के निर्वाचन की घोषणा करेगें। सामान्यतः सर्वानुमति से अथवा निर्विरोध निर्वाचन हो हस हेतु समाज के वरिष्ठ व्यक्ति समान्जस्य स्थापित करेगें।  मैने  इन्ही प्रावधानों का वाचन एवं पालन किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कार्यकारिणी की सहमति से संयोजक श्री मोहनलाल जोशी की अगुवाई में अध्यक्ष पद के लिए आम सहमति हेतु समाज के वरिष्ठजनों का एक प्रतिनिधि मण्डल एकान्त में विचार विमर्श के लिए बैठा। इस प्रतिनिधि मण्डल में श्री उदयसिंह पण्ड्या,  श्री हीरालाल त्रिवेदी,  श्री शिवनारायण जागीरदार,  श्री वासुदेव रावल,  श्री सत्यनारायण पटेल,  श्री रघुनाथसिंह पटेल,   श्री शिवनारायण पटेल,  श्री नन्दकिशोर पण्ड्या,   श्री प्रकाश जोशी इन्दौर ,  श्री मोहन दवे अध्यक्ष महाराष्ट्र् प्रान्त,  श्री दुर्गाशंकर जी व्यास जयपुर, श्री हेमशंकर जी दीक्षित अध्यक्ष राजस्थान प्रान्त श्री गोविन्द आचार्य महामंत्री इन्दौर  सम्मिलित हुए। मैं समाज का ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा कि इस प्रतिनिधि मण्डल में मैं सम्मिलित नहीं था। प्रतिनिधि मण्डल व्दारा सर्वसम्मति से वर्तमान अध्यक्ष  श्री रघुनन्दन जी शर्मा का नाम प्रस्तावित किया गया। मुझे निर्देश हुआ कि  मैं श्री रघुनन्दन जी शर्मा का नाम अध्यक्ष पद के लिए अनुमोदनार्थ प्रस्तुत करूं। मैंने स्पष्ट  बताया कि  प्रतिनिधि मण्डल व्दारा  जो नाम प्रस्तावित किया गया है,  वह केवल प्रस्ताव है, अध्यक्ष की घोषणा नहीं है, यह प्रस्तावित नाम अन्तिम नहीं है,  महासभा के अनुमोदन से ही अध्यक्ष पद पर अनुमोदन हो पायेगा। यदि इस नाम का अनुमोदन नहीं होता है तो मतदान के जरिये निर्वाचन प्रक्रिया अपनाई जावेगी किन्तु पूर्व नियोजित स्क्रीप्ट  के अनुसार कतिपय बन्धुवर मंच पर आ धमके तथा माईक पर अपने अपने ढंग से सूचपाऐं देने का प्रयास करने लगे। मैं यदि गलत न हूँ, तो  आदरणीय मुकेश जी जोशी भी उन्ही में से एक थे। वातावरण पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था फिर भी बाद में प्रतिनिधि मण्डल व्दारा जो अध्यक्ष पद के उम्मीदवार थे उन्हे एक जगह बिठाया जाकर सर्व सम्मति से अध्यक्ष पद का मनोनयन कर लिया जावे किन्तु सर्वसम्मति नहीं बन पाई। अन्ततः छः माह के लिए चुनाव बढाने का निर्ण लिया गया।
मैं बहुत ही विनम्र शब्दों में अनुरोध करना चाहूंगा कि महासभा के संविधान की मंशा एवं सामाजिक संगठन के हित में सर्वसम्मति से अध्यक्ष पद के मनोनयन की कोशिशें नहीं की जाना चाहिए थी ? समाज के वरिष्ठतम व्यक्तियों एवं अन्य प्रान्तों से आये प्रतिनिधियों व्दारा  जो सर्वसम्मति से एक नाम के प्रस्ताव की प्रक्रिया अपनाई गई थी वह गलत थी? अध्यक्ष का नाम प्रस्तावित किया गया था,  अध्यक्ष घोषित नहीं किया गया था ? क्या वातावरण को अकारण दूषित करना आवश्यक था?
मैं,  बन्धुओं का इस और भी ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा  कि मैंने मतदान  के जरिये अध्यक्ष के निर्वाचन के पूर्व  की प्रक्रिया सम्पादित की थी न कि मतदान के जरिये  निर्वाचन की प्रक्रिया। मतदाता सूची,  मतदान पेटी,   एवं मतदान में लगने वाली आवश्यक सामग्री तथा व्यक्तियों की व्यवस्था थी।  प्रतिनिधि मण्डल एवं समाज संयोजक  महोदय का यह अटूट विश्वास था  कि महासभा के विगत 112 वर्षो में  मतदान में चुनाव की आवश्यकता नहीं रही है तो हम सभी मिलकर उस स्वस्थ्य परम्पराको कायम रखेगें। मैं जानकारी एवं सूचना देने की प्रकिया में  बार बार स्पष्ट  कर रहा था कि आवाज मेरी  आदेश  निर्देश व प्रस्ताव प्रतिनिधि मण्डल (समन्वय समिति) का है। इतनी ईमानदारी  एवं निष्पक्षता  से सामाजिक संगठन के हित में कार्य करने पर यदि उंगली उठाई जाती  है तो मन को कष्ट होता है।
मैं कतिपय प्रश्न समाज के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ:-
(1) क्या समाज के वरिष्ठजन जिनके नामों का उपर उल्लेख  किया गया है तथा गुजरात,  राजस्थान, महाराष्ट, से आये प्रतिनिधि वरिष्ठजनों का प्रतिनिधि मण्डल (संगठन) “जेबी” संगठन था, और समाज की राष्ट्रिय पत्रिका में ऐसे संबोधन उचित है?
 (2) राजस्थान से आये एक वरिष्ठ प्रतिनिधि की तत्समय  प्रतिक्रिया थी ‘‘ हमें महासभा की मृत्यु का प्रमाण पत्र जारी कर दें।                                                                                               
 (3) महासभा की साधारण सभा में वे सभी लोग जीत गये जो जीतना चाहते थे, मगर  महासभा हार गई।                                                                                  
 (4) महासभा की अस्मिता तार तार होती गई किन्तु न तो अस्मिता बचाने कोई कृष्ण आया और न ही कृष्ण विचारधारा के लोग आगे आये?                                                                                
(5) क्या महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए क्षेत्रवाद,  रिश्तेदारी या आपसी प्रतिव्दंदिता का सहारा लिया जाना उचित है, या संख्या के आधार पर अन्य प्रान्तो से आये वरिष्ठ-जनों की उपेक्षा करना ठीक है?
अन्त में मेरा अनुरोध है, कि  हम सभी हृदय से पश्चाताप करे व महासभा की साख को जाने अनजाने  में न चाहते  हुए भी जो बट्टा  लगा है,  उस पर विचार करते हुए  महासभा की पूर्व प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए एकजूट होकर महासभा को द्रढता प्रदान करने में अपने हृदय से सहयोग प्रदान करने का संकल्प लेवें।
जय श्री कृष्ण
रमेश पण्ड्या,  उज्जैन
16 फरवरी 1915


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