महासभा
अध्यक्ष माननीय श्री रघुजी की मान प्रतिष्ठा को अपूर्णीय क्षति?
काश! राष्ट्रीय अध्यक्ष जी को इन
लोगों ने अँधेरे में ना रखा होता?
महासभा
की साधारण सभा में घटित असाधारण दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर हर कोई अपना पक्ष रख रहा
है| श्री मुकेश जी जोशी की ''आंखों देखि'' कुछ को सटीक तो कुछ को अनर्गल लगी|
खैर, यह तो अपने अपने दृष्टिकोण की बात है, उसमे क्या
गलत लिखा, क्या सही, यह तो उपस्थित समुदाय
या जो भी निवृत्त कार्यपरिषद के कुछ सदस्यों के कार्यो से वाकिफ है, जानते है| सभी जानते है, की विगत कुछ समय से कुछ लोगों ने महासभा को हाइजेक कर रखा है| सदा अपनी अपनी चलाने की प्रवर्त्ती की उपस्थित समुदाय द्वारा अस्वीक्रति
की मंशा को जानकर भी अनजान बने रहना? जो कुछ भी हुवा उसके
लिए समाज से उस असामाजिकता के लिए उन उद्दंडों ने उपस्थित ज्ञाती समुदाय से क्षमा
प्रार्थना करनी चाहिए|
वहां
उपस्थित समुदाय केवल कुछ लोगों की ही सुनने नहीं, अपनी भी सुनाने आया था| आम जन तो
ठीक कार्यकारिणी के महासचिव के प्रतिवेदन को भी पढ़ने से रोका टोकी कर, कही अपने मन
चाहे नॉमिनेशन को जबरन अंगूठा लगवाना चाह रहा मंच, अपनी ही अपनी सुनाये तो जनता की
उपस्थिती या साधारण सभा का बुलावा निरर्थक ही भेजा? कर लेते जो अभी तक करते आये|
जब
समुदाय को बुलाया तो उसे क्यों नहीं बोलने का अवसर मिला? जब कोई बोले तो उसे रोकना उद्दंडता, अभद्रता, कब तक सहन करते समाजजन? आखिर
आक्रोश को जन्म देने वालों को कभी सामने लाएगी महासभा?
वीडियो हों तो कृपया देख लीजिये| वरिष्ट
समाजजन मूक दर्शक बन देखते रहे, जबकि इन्हें मंच से हो रहे अन्याय के खिलाफ खड़ा
होना था|
श्रीपंड्या जी ने औदीच्य बन्धु लिखा है-
“इस
संम्बन्ध में उसी समय राजस्थान, महाराष्ट्र्, गुजरात
के साथ ही इन्दौर व उज्जैन के वरिष्ठजनों से दूरभाष पर सहमति ली गई|”
उन से मेरा यह प्रश्न है कि
वरिष्ठजन कौन?
महासभा
की अस्मिता तार तार होती गई, किन्तु न तो अस्मिता बचाने कोई नहीं आया?
'साधारण सभा'? मेरा यह भी प्रश्न है कि, यह साधारण सभा कैसी?
जब साधारण
सदस्यों को जब अपनी बात बोलने के लिए ही अवसर ना मिले| निर्वाचन अधिकारी की मूक
उपस्थिती, जब कोई सामान्य जन अपने विचार रखना चाहे, तो बोलने वालों को मंचासीन
वरिष्ठों? की उपस्थिती में रोका गया|
बलपूर्वक/
अभद्रता करने वालों को किसी ने क्यों नहीं रोका| विचारों की अभिव्यक्ति को बिना यह
भी जाने कि सदस्य
क्या कहना चाहता है, या क्या कह रहा है, अभद्रता करने
वाला युवक, जिसे कोई अधिकार नहीं था, कि वह किसे बोलने दे, या किसे रोके, वह अति-उत्साही
युवक अपनी प्रतिबद्धता दर्शाने की चाह में, अशिष्ठता कर
गया, जिस के कारण सामान्य सभासद उत्तेजित हुवे| बार बार
सभा के मंच से वरिष्ठ –वरिष्ठ पाठ का दोहराव, क्या सामने उपस्थित अन्य समुदाय की
कनिष्ठाता/ तुच्छता को इंगित नहीं कर रहा था?
सामान्यतया
निर्वाचन अधिकारी को निर्वाचन प्रक्रिया का सञ्चालन करना होता है, लेकिन घोषित
अधिकारी मंच पर सिर्फ “मूर्ती-बने” बैठे रहे?
उनका कोई
तो वक्तव्य? सभी राज्यों के प्रतिनिधी.? यहाँ तक की युवा
(प्रदेश) अध्यक्ष तक नहीं दिखे| नियुक्ति के बाद, उन के साथ जो उपेक्षा का वर्ताव हुवा, वह कौन जानता है? कभी
इस बात की चर्चा हुई?
समाज
में अन्य संगठन/ लोग भी जैसे- सत्तर तालुका औदीच्य समाज गुजरात, उत्तर गुजरात ब्रह्म समाज, सिद्धपुर औदीच्य समाज
गुजरात, गोरवाल महिला मंडल मुंबई- पुणे, ''साया'' राजस्थान, अखिल भारतीय औदीच्य अभिभावक संगठन ''आस'' , वागड़ औदीच्य समाज बांसवाड़ा, वृहद निमाड़ औदीच्य संगठन निमाड़, जैसे अनेक संगठन
अपने स्तर सामजिक कार्य कर रहे है| उनकी चर्चा तो ठीक उनके बारे में उल्लेख तक,
महासभा पदाधिकारियों द्वारा क्यों नहीं किया जाता? इसीलिए महासभा
पदाधिकारियों की इन हरकतों के कारण महासभा ''जेबी संगठन''
से ज्यादा कुछ नहीं दीखता|
साधारण
सभा में औदीच्यजनों के अलावा अन्य समाज के
लोगों की उपस्थिती?
विशेष
यह की गुजरात के बंधुओं का नाम तो प्रयोग में लिया जाता है, किन्तु उनको महासभा
में साधारण सदस्य तक नहीं बनाया जाता? [सन्दर्भ-- नागदा सम्मलेन में गुजरात से
पधारे ज्ञाती बंधुओं द्वारा बताये अनुभव अनुसार]
महासभा
अध्यक्ष माननीय श्री रघुजी के व्यक्तिव कृतित्व की, चंद लोगो द्वारा मान प्रतिष्ठा
को जो ठेस पहुंचाई है, वह अपूर्णीय है|
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