मेरी पूर्वांचल यात्रा - डायरी के पन्नो से -डॉ मधु सूदन व्यास

Madhusudan Vyas मेरी पूर्वांचल यात्रा 22/09/15 से 10/10/2015 तक
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गोरखपुर पहुँचने को हैं, 11 बजे काठमांडू के लिए प्रस्थान होगा।
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 26 सितंबर 08:36 पूर्वाह्न 
पशुपति नाथ काठमांडू के दर्शन का आनद प्राप्ति।
जय पशुपति नाथ महादेव।
26 सितंबर12:20 अपराह्न 
नेपाल की तीन दिन की यात्रा के बाद वापिस गोरखपुर से जलपाई गुड़ी की और जाने की तैय्यारी। 3 pm,
 26 सितंबर को 07:21 बजेअपराह्न 
भूकंप के घाव- हमारी काठमांडू यात्रा 24 /25 सित 15 के दौरान हमको नेपाल में गत वर्ष आये भूकंप के घाव अब भी दिलों में मौजूद दिखे। बात छेड़ते ही बसंतपुर जो काठमांडू का पुराना क्षेत्र की रहने वाली महिला फूट फूट कर रो पड़ी। यह क्षेत्र आज भी इस तवाही का गवाह है।
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काठमांडू में बौद्ध पर्यटको और हिन्दू भक्तो की संख्या भूकंप के पूर्व की संख्या से कम नजर आई। में पूर्व वर्ष 2011 में भी नेपाल आया था, आज उसकी तुलना में मंदिर आदि स्थानों पर लोगों की संख्या बेहद कम दिखी।
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पूर्व की तुलना में होटल सस्ते और नव निर्मित होने से अच्छे भी थे। दुकानदार अपने सामान को पूर्व की तुलना में सस्ता भी बेचते दिखे। बिना बड़ी लाइन के आसानी से दर्शन हुए। बाजार भी ग्राहकों की कमी से सूर्यास्त के तुरंत बाद बंद होते देखे। कुल मिलाकर टुटा नेपाल पुनः जीवित होने की और अग्रसर है। पर्यटन पर निर्भर इस देश को आपकी जरुरत है।
26 सितंबर को 07:43 अपराह्न बजे
यात्राओ में हमको कई नई बात नजर आतीं है। नैपाल यात्रा 24 /25~09 ~15 के समय एक बात पर ध्यान आया की यहाँ के पहाड़ और बद्री केदार के पहाड़ लगभग एक जैसे है सिवाय एक बात के की यहाँ नेपाली पहाड़ पेड़ पौधों से भरे हैं वहीँ हमारे पहाड़ सुने हैं।
एक बात और नोटिस की कि यंहा लकड़ी का प्रयोग न के बराबर होता देखा। हमारे यहाँ लकड़ी का प्रयोग अधिक होता हे और साथ ही पहाड़ काट कर सीडी नुमा खेत भी अत्याधिक बना दिए है वहां यहाँ प्राकृतिक रूप सर उगे पेड़ पौधों को छुआ भी नहीं गया।शायद इसीलिए पहाड़ खिसकने आदि की घटनाएं अधिक होतीं है यहाँ बेहद कम।  क्या हमको नेपाल से सबक नहीं लेना चाहिए।
26 सितंबर 08:23 बजे अपराह्न 
नेपाल के पशुपति नाथ मंदिर में हमको एक ऐसा व्यक्ति भी मिला जिसका मानना था की नेपाल में भूकंप आने का कारण राजा को जो भगवान विष्णु के अवतार हैं को राजा के पद से हटा कर प्रजातंत्न लागु करना है, और अब हिन्दू राष्ट्र भी नहीं रहने दिया तो और भी प्रकोप होगा।हमने पाया की ऐसा मानने वाले भी कम नहीं।
27 सितंबर को 04:57 पूर्वाह्न बजे
पूर्व निश्चित कार्यक्रम के अनुसार आज दोप को हम सब न्यू जलपाईगुड़ी वेस्ट बंगाल पहुचने वाले हैं।
यहाँ से हमारा टारगेट सिक्किम के नाथुला दर्रा वाटर फाल्स बुद्ध मंदिर मोनेस्ट्री म्यूजियम रोप वे झंगु लेक आदि हैं। जलपाई गुड़ी 84 प्रतिशत हिदु 14 प्र मुस्लिम आवादी वाला तीस्ता नदी के किनारे स्थित आकर्षक स्थान है।
28 सितंबर को 04:14 पूर्वाह्न बजे · 
न्यूजलपाई गुड़ी, सिलीगुड़ी के बाजार से शोपिंग और घूमने के बाद आज अभी दार्जिलिंग जा रहे है।
28 सितंबर को 02:28 अपराह्न बजे ·  
जब हम छोटे बच्चे थे, तब चित्र आदि में देवताओं को बादलों के बीच रहते देखा करते थे। आज दार्जिलिंग पहुँचने पर जैसे बादलों के बीच पाया। पहाड़ी जीवन की कठोरता निवासियों में अनुभव हुई। प्रचुर वन सम्पदा जिनमे ओषधि, फल, प्राणी आदि , द्वारा प्राप्त बहुमूल्य सामग्री निवासियों द्वारा मैदानी क्षेत्रों में लाकर बांटी जाती रही होगी। साधनो के आभाव में मैदान में रहने वाले लोगों को यहाँ पहुँचपाना मुश्किल भरा रहा होगा । इसीलिए यहाँ के वासी अगम और अगोचर रहस्य मय देव या दानव आदि रूपो में जाने गए। आज की परिस्थिति सुगम है। साधन संचार ने स्वर्ग का आनंद सबको उपलब्ध करा दिया है।
होटल के कमरे में थोडा आराम~
29 सितंबर को 07:00 पूर्वाह्न बजे · 
दार्जीलिंग में आज की सुबह~
सन् राइज पाइंट पर जाकर उगते सूर्य के दर्शन के आनंद की कल्पना जिसने भी की होगी, स्वास्थ्य की दृष्टि से सराहनीय और अनुकरणीय है। परन्तु वर्तमान में जब 4 बजे से चलकर जब हम सब वहां पहुंचे तो पाया की हजारों की संख्या में छोटी बड़ी जीपों से जब छोटी सी जगह और 8 फिट चोडे रास्ते पर जहाँ से ही वापिस भी आना है, लगभग 50 हजार से अधिक लोग एकत्र हों और 4 से 5 हजार जीपों के डीजल का धुँआ हो, तो कल्पना करें की कितना स्वास्थ्य लाभ होगा।
भेड़ चाल में ऐसा जनून दिखता था मानो और कही तो सूर्य उगता ही नहीं, यहीं देख लें नहीं तो सूर्य उदय देखने ही नहीं मिलेगा।
29 सितंबर को 09:00 पूर्वाह्न बजे · 
दार्जिलिंग घूमने के बाद अब हम छोटी बसों से सिक्किम की और चल पड़ें है। दोपहर तक गंगटोक पहुच कर अगले दो दिन किसी होटल में डेरा ड़ाल कर पर्यटन केन्द्रो को देखेंगे परसों नाथुला दर्रे तक भी जीपों से जायेंगे।
उचाई के कारण वायु के दवाव कम होने से एक अजीब सी अनुभूति हो रही है पास बेठे व्यक्ति की आवाज जैसे दूर से आ रही है।में जनता हूँ कुछ समय में परिस्थिति के अभ्यस्त हो जायेंगे।
29 सितंबर को 09:35 पूर्वाह्न बजे · 
दार्जिलिंग घूमने के बाद अब हम छोटी बसों से सिक्किम की और चल पड़ें है। दोपहर तक गंगटोक पहुच कर अगले दो दिन किसी होटल में डेरा ड़ाल कर पर्यटन केन्द्रो को देखेंगे परसों नाथुला दर्रे तक भी जीपों से जायेंगे।
उचाई के कारण वायु के दवाव कम होने से एक अजीब सी अनुभूति हो रही है| पास बेठे व्यक्ति की आवाज जैसे दूर से आ रही है।में जनता हूँ कुछ समय में परिस्थिति के अभ्यस्त हो जायेंगे।
29 सितंबर को 07:47 अपराह्न बजे
सिक्किम की राजधानी गंगटोक 2 बजे दोप को पहुंचकर टेक्सी से दिनभर कई दर्शनीय जगह देखीं। मोबा की बैटरी डाउन होने से फोटो केमरे से निकाले।
 गंगटोक में ट्रैफिक मेने देश के जितने भी शहर देखे सबसे अच्छा नियमानुसार चलने वाला था। सड़को पर जगह होने के बाद भी कोई ओवरटेक नहीं, गाडियो की दुरी नियम से,बाइक वाले भी चाहे जहाँ से नहीं निकल रहेथे। वाहन चलाते मोबा का प्रयोग नहीं। मेने ड्राइवर से पूछा तो बताया की यहाँ प्रत्येक उल्लंघन पर पुलिस के लिए जुर्माना लगाना जरुरी है। कभी भी किसी को भी चाहे नेता हो या वि आई पी कोई मुलाहजा नहीं। सख्ती के कारण अब आदत बन गई है और कोई उल्लंघन की सोचता भी नहीं, चाहे गली जैसी रोड ही क्यों न हो। ड्राइवर ने यह भी बताया की यहाँ बेहद कम केस बनते है।
30 सितंबर को 05:04 पूर्वाह्न बजे · 
गंगटोक से 56 km दूर हिमालय में है।वर्फ के कारण रोमांचक और आकर्षण का केंद्र बना है। जानकारी स्वयं देख प्रस्तुत करूँगा।
जयहिंद।
नाथुला चायना बोर्डर  अक्टूबर को 03:49 पूर्वाह्न बजे 
30 सितम्बर 15 को हम सभी नाथुला बोर्डर की और प्रातः 7 बजे महेन्द्रा टेक्सी से चले।
एक दिन पहिले ही फोटो. आई सी की कॉपी लगाकर एक लिस्ट में सिटी पुलिस गंगटोक से रु 300/ प्रति व्यक्ति जमाकर परमिट लेना होता है। टेक्सी महेन्द्रा 8 सीटर 3000/ में थी। एंट्रेंस नाके पर 10/रु प्रति का टिकिट खरीद कर 65 km दूर 14240 फिट उचाई पर स्थित नाथुला दर्रे की और चल दिए।
यह रास्ता चीन से व्यापार हेतु 2004 से खुला है। मानसरोवर जाने के लिए अभी दो वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ। मौसम चलते समय खुशगवार था उचाई बढ़ते बढ़ते ठंडी हवा के कारण खिड़की बंद करना पड़ी। वर्फ कहीं न मिली।
1 अक्टूबर को 04:01 पूर्वाह्न बजे ·  · 
नाथुला पहुच कर (30सितम्बर15 को) चीन भारत सीमा चोकी. गेट . मीटिंग हाल देखा।
बोर्डर इस स्थान पर पडोसी के घर की फेंसिंग की तरह थी दूसरी और चीनी सेनिक हमारी वीडियो वना रहे थे।कई लोगों ने हाथ भी मिलाया।वे कोई बात कहने पर ऐसा जाहिर करते जैसे वे भाषा से अनजान है।हमारे सेनिक ने बताया की वे सब भाषा जानते है पर उन्हें उत्तर न देने के निर्देश हैं। दूसरी और कोई चीनी पर्यटक नहीं था। दो घंटे विताने के वाद हमने नीचे बाबा हरनाम सिंग के दर्शन किये।ऊपर फोटो लेना मना था।
1 अक्टूबर को 04:06 पूर्वाह्न बजे · 
नाथुला से वापिसी (नाथुला का अन्य विवरण बाद में।) में झंगु लेक पर रुके यहाँ फोटो लिए।
1 अक्टूबर को 04:17 पूर्वाह्न बजे · 
आज हम उठ कर अब वापिस न्यू जलपाई गुड़ी जाने के लिए तैयार हो रहें है , वहां पहुंचकर आसाम और शिलांग के लिए ट्रेन से चलेंगे।
गौहाटी में कामाख्या देवी और शिलांग में चेरापूंजी आदि की यात्रा करेंगे।इंटरनेट सिग्नल न होने से तत्काल जानकारी नहीं दे पाते।फिर मिलेंगे।जय हिन्द।
1 अक्टूबर को 06:28 पूर्वाह्न बजे · 
गंतोक या गंगटोक सफाई की द्रिस्टीकोण से बेहद साफ़ शहर है। टेक्सी और बसों में ड्राइवर की सीट के पीछे एक बेग डस्टविंन टंगा है।बस या टेक्सी ड्राइवर किसी भी यात्री को बहार फेकने नहीं देते।अतिक्रमण बिलकुल नहीं है। दुकानों के बाहर सामान भी नहीं देखने मिला। फुट पाथ ख़ाली केवल चलने वालों के लिए।चाहे जहाँ पार्किंग भी नहीं।बस टेक्सी निश्चित स्थान पर ही खड़ी होती हैं और थोड़ी देर को ही।
पर चीटिंग की प्रवृत्ति देखने जरूर मिली।रिश्वत चलती है या नहीं जानने का मोका नहीं मिला।
2 अक्टूबर को 06:02 पूर्वाह्न बजे · 
शुभ प्रभात।
गौहाटी प्रातः 4 बजे पहुँच कर स्नानादि वेटिंग रूम में कर बस विशेष की छोटी बस से कामाख्या देवी और नव गृह मंदिर आदि जा रहे हैं।

बाद में शिलांग जो मेघालय राज्य अर्थात बादलों का मन्दिर यहीं चेरापूंजी है जहाँ विश्व में सबसे अधिक बारिश होती है के प्रकृतिक सौंदर्य दर्शन करेंगे। जय हिन्द।
2 अक्टूबर को 08:13 पूर्वाह्न बजे· 
पत्नी (कल्पना) का जन्म दिन की बधाई।
2 अक्टूबर को 10:39 पूर्वाह्न बजे · 
कामख्या देवी के दर्शन किये। मंदिर की प्राचीनता विद्यमान थी। पास के दूसरे भाग में बकरों की वलि दी जा रही थी।रक्त बह रहा था।मन्त्र पड़े जा रहे थे।वीभत्स दृश्य था। हमसे देखा न गया।जल्दी से निकल आये।
3 अक्टूबर को 06:12 पूर्वाह्न बजे ·  · 
शुभ प्रभात। बचपन के प्राथमिक स्कूल से एक बात की सबसे अधिक पड़ने और याद रखने की बात थी की, सबसे अधिक बारिश चेरापूंजी में होती है।तरह तरह की कल्पना किया करते थे। शयद वह स्थान वेनिस जैसा हो या स्कॉटलैंड जैसा या और न जाने कैसा? आज वहां जा रहे है। कल रात्रि को शिओंग में पुहंच कर होटल में विश्राम कर अब स्नानादि पश्चात् चेरापूंजी जायेगे। मौसम खुशनुमा है।20 डिग्री c होगा।वारिश में भीगने और जल प्रपात देखने के लिए जा रहे है।जयहिंद।
4 अक्टूबर को 06:40 पूर्वाह्न बजे ·  · 
चेरापूंजी में प्राक्रतिक गुफा में वातावरण ठंडा लगा। पानी छत से टपक रहा था नीचे बह रहा था कीचड़ काई नहीं थी। रोमांचक अनुभव था हमारी बहिन थोड़ी दूर से वापिस लोट गई। एक पत्थर कट कर शिव के सिर् की आकृति बना रहा था।
एक दो स्थान पर बहते पानी से गुजरे। एक जगह तंग रस्ते पर नुकीले पत्थर से मेरे सिर में हलकी खराश आ गई।
कुल मिला कर गुफा का बड़ा रोमांचक सफ़र था।
यहाँ बंगला देश के मोबा सिग्नल और रोमिंग की सुचना भी मिली।
4 अक्टूबर को 06:53 पूर्वाह्न बजे ·  · 
चेरापूंजी के पास जब बस गुजर रही थी तब घण्टियों की सी आवाज सुनाई देती थी।मानो किसी मंदिर में मशीनी घंटी बज रही हो।स्वर कई घंटियों का मिक्स नहीं था।
कुछ ने कहा झरनो की आवाज है कुछ ने कहीं काम चलने के कारण मशीन की आवाज कहा।एक पार्क में खाना खाने रुके और ध्यान दिया तो कुछ पेड़ों पर से यह आवाज आ रही थी।हमने पेड़ के चक्कर लगा कर कीट को देखने की कोशिश की पर आवाज के सोर्स का पता नहीं चला।
पूछने पर स्थानीय व्यक्ति ने इसे एक 2 से तीन इंच के कीड़े की आवाज जिसे "घंटा पोखा" कहा जाता है की आवाज है एक पेड़ पर छाल के रंग का जो हमको नहीं दिखा । एक कीट की ही आवाज 200 मीटर दूर से भी सुनी जा सकती थी।एक पेड़ पर एक या दो कीट से अधि नहीं होते।यह हमें बड़ा आश्चर्यजनक लगा।
यदि किसी पाठक को इसकी जानकारी और फोटो हो तो टिप्पणी में पोस्ट करे इसके लिये सभी आभारी होंगे।
4 अक्टूबर को 07:35 पूर्वाह्न बजे · 
मेघालय एक छोटा राज्य है। यह ऊंचे-ऊंचे चीड़ के पेड़ों और बादलों का एक अंतहीन सिलसिला है। इसी वजह से इस राज्य का नाम मेघालयपड़ा है यानी मेघों (बादलों) का डेरा। अंग्रेजों को तो जैसे इस राज्य से प्रेम हो गया था, तभी तो उन्होंने इसे पूर्व का स्कॉटलैंडकहकर पुकारा।
मेघालय के प्राकृतिक दृश्यों में तीन पहाड़ियों- खासी, जैंतिया और गारो का प्रभुत्व है। मेघालय 1972 में ही भारतीय संघ का पूर्ण राज्य बन पाया था। इस तरह मेघालय भारत के सबसे युवा राज्यों में से एक है। मेघालय अभी भी पर्यटन परिदृश्य की चमक-धमक से दूर है। इस वजह से अब भी यहां कई अनदेखे नजारे मौजूद हैं। यदि आप शहरी पागलपन से दूर सुखद जीवन की अनुभूति चाहते हैं तो मेघालय की यात्रा कीजिए।
मेघालय में आप ताजा पहाड़ी हवा में सांस ले सकते हैं। अपनी आत्मा को ऊंचे चीड़ के पेड़ों की सरसराहट वाली हवा में खो जाने दीजिए। आपने आखिरी बार पानी की कलकल ध्वनि कब सुनी थी? मेघालय की यात्रा कीजिए, इस राज्य में सबकुछ है- ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से नीचे गिरते झरने या अनदेखी गुफाएं या पृथ्वी की सबसे गीली जगह- चेरापूंजी जहां सबसे ज्यादा बारिश होती है।
बीहड़ इलाकों में प्राचीन बस्तियों की झलक आपको यहां मिलेगी। आधुनिकताओं से अछूते विनम्र आदिवासियों के आकर्षक जीवन से दोस्ती करने मेघालय की यात्रा कीजिए। भारत के बाकी हिस्सों के विपरीत यहां का आदिवासी समाज मातृसत्तात्मक है। आदिवासी उत्सवों के दौरान मेघालय आइये। आपको यहां काफी कुछ देखने को मिलेगा। मिथकों और किंवदंतियों का इतिहास और धर्म के साथ तालमेल। आदिवासियों के रंगीन उत्सव में भाग लेते हैं आदिवासी।
4 अक्टूबर को 07:42 पूर्वाह्न बजे ·  · 
हम इस स्थान को देखे तो ("चेरापूंजी)फिल्म दा लॉर्ड ऑफ दा रिंग्ससे संबंधित जैसा ही एक दृष्टि में लगता है, बस अंतर यह है की चेरापूंजी में बने ये रूट पुल असली है और वास्तव में विशाल पेड़ों से यह पुल बने है।
4 अक्टूबर को 08:15 पूर्वाह्न बजे · 
पुरापाणी नदी शिलोंग के पास धुंद के कारण फोटो साफ नहीं पर अभूतपूर्व।
5 अक्टूबर को 11:00 पूर्वाह्न बजे ·  · 
पूर्वांचल की वादियों का आनंद लेकर अब वापिसी यात्रा पूरी या जग्गंनाथ पूरी की और चल दिए है। समुद्र स्नान कोणार्क यात्रा कर पुरातन सूर्य मंदिर की और एक बार और~~~~
5 अक्टूबर को 04:47 अपराह्न बजे ·  · 
कल्पना करे की जब आपका ख़ाली हाथ चढ़ना उतारना कष्टसाध्य होता है तो जब यह रोज के जीवन में आ जाये तो पहाड़ों पर निवास का विचार कैसा होगा। एक दो दिन घंटे आध घंटे रोज टेक्सी रिसोर्ट होटल अदि में आनद तो लिया जा सकता है पर सारा जीवन यह एक कठोर कारावास की सजा जैसा ही होगा।
पूर्व काल में देवता पृथ्वी पर आते जाते रहते थे पर इस श्रम साध्य जीवन के कारण पहाड़ी क्षेत्र मैदान वासियों के लिए पूर्व में सड़को रहित केवल पैदल या पशु या तूफानी नदी नाव के रस्ते वाली दुर्गम. दुर्लभ. और सपना जिसे स्वर्ग कह कर अगम्य माना गया रहा होगा। इसीलिए पहाड़ी निवासी निवास के लिए सुगम मैदानी भागों की और हजारों सालों से आते रहे होंगे।सचमुच ये कष्टसाद्य जीवन जीने वाले पहाड़ी वंदनीय हैं।
5 अक्टूबर को 06:42 अपराह्न बजे ·  · 
गुवाहाटी में एक प्राचीन तम आकर्षण और है वह है नवगृह मंदिर।
नवग्रह मंदिर चित्रसल पहाड़ी पर स्थित है। नौ ग्रहों को दर्शाने के लिए मंदिर के अंदर नौ शिवलिंग स्थापित किए गए है। हर शिवलिंग अलग-अलग रंग के कपड़ों से ढंके हुए हैं।
5 अक्टूबर को 06:54 अपराह्न बजे · 
गुवाहाटी का एक और आकर्षण है नव गृह मन्दिर।
नवग्रह मंदिर चित्रसल पहाड़ी पर स्थित है। नौ ग्रहों को दर्शाने के लिए मंदिर के अंदर नौ शिवलिंग स्थापित किए गए है। हर शिवलिंग अलग-अलग रंग के कपड़ों से ढंके हुए हैं।
माना जाता है कि नवग्रह मंदिर को 18वीं शताब्दी में अहोम राजा राजेश्वर सिंह और बाद में उनके बेटे रुद्र सिंह या सुखरुंगफा के शासन काल में बनवाया गया था। 1897 में इस क्षेत्र में आए भयानक भूकंप में मंदिर का काफी बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया था।
बाद में लोहे के चदरे की मदद से इसका पुननिर्माण किया गया। ऐसा माना जाता है कि गुवाहाटी के पुराने नाम प्रागज्योतिषपुर की उत्पत्ति मंदिर के स्थित खगोलीय और ज्योतिषीय केन्द्र के कारण ही हुई है। मंदिर परिसर में बना सिलपुखुरी तालाब भी यहां का एक प्रमुख आकर्षण है। यह तालाब पूरे साल भरा रहता है। शहर के अन्य हिस्सों से यह मंदिर अच्छे से जुड़ा हुआ है।
6 अक्टूबर को 07:49 पूर्वाह्न बजे ·  · 
जग्गंनाथ पूरी जय जगत के नाथ।
6 अक्टूबर को 06:46 अपराह्न बजे ·  · 
भुवनेश्वर में महालिंगराज दर्शन और कोणार्क में सदियों पुराना अथवा सम्भवतः विश्व के प्रथम देवता और धर्म का मंदिर सूर्य मंदिर का अवलोकन कर अगली यात्रा गंगासागर की और चलने वापिस पूरी जा रहे हैं। शुभ सन्ध्या।
8 अक्टूबर · 
अपनी यात्रा के अगले पड़ाव में हम सब 7 अक्टूबर 15 को कलकत्ता पहुंचे।यहाँ काली कलकत्ते वाली के दर्शन जिनका सानिध्य पा कर रामकृष्ण ने विवेकानंद का निर्माण किया था की दर्शन की अभिलाषा थी।
जिस उम्मीद और उमंग से वहां पहुंचे वह जल्दी ही नष्ट हो गई। मंदिर व्यापारियों जैसे लुटेरों का अड्डा बना महसूस किया।
बाहर ही कई लोग एजेंट मिलने लगे जो रु 20 प्रति व्यक्ति लेकर विशेष रस्ते से अंदर पहुंचाते थे। अंदर के अंतिम द्वार पर दो मुस्टंडे जैसे पंडित खड़े थे जो प्रति व्यक्ति 200 रु लेकर गर्भ गृह की और जाने दे रहे रहे थे जब हमने और जिनने नहीं दिए उन्हें धक्का देकर आगे धकेल दिया जाता था। फोटो लेना मोबायल कैमरा प्रतिबंधित होने से दृश्य नहीं बता सकता।पर वीभत्स दर्शन~ है राम।
धर्म के ठेकेदारो का नंगा रूप जो ओ एम् जी या पी के में दिखाया था वही था। वितृष्णा हुई में अब अनुरोध करूँगा की अपने अंदर की देवी का पूजन करे यहाँ न आएं। मंदिर में बकरों को वलि के लिए पूजन करते भी देखा वहीं वलि की जगह वही कामाख्या देवी वाला दृश्य। माता महाकाली तो ऐसी हो नहीं सकतीं यह तो लुटेरो और राक्षसों का जमघट था। शासन की भी कोई व्यवस्था और नियंत्रण नहीं।पुलिस मूक दर्शक।
है देवी क्षमा करना यदि आपको यही पसंद है तो में आपका भक्त नहीं हो सकता। जो भी रु देकर अंदर गए उनकी जैब और भी पूजा के और भेंट के नाम पर कटी। कहा जा सकता है की निरीह प्राणी मनुष्य हो या बकरी बकरा या अन्य जैब कटे या गर्दन काटा जाना निश्चित है। और जैब कटा कर वे और भी खुश लगे मानो सारी देवी की कृपा उन्हें मिल गई| जय हो।
8 अक्टूबर को 09:55 पूर्वाह्न बजे ·
अपनी यात्रा के अगले पड़ाव में हम सब 7 अक्टूबर 15 को कलकत्ता पहुंचे।यहाँ काली कलकत्ते वाली के दर्शन जिनका सानिध्य पा कर रामकृष्ण ने विवेकानंद का निर्माण किया था की दर्शन की अभिलाषा थी।
 जिस उम्मीद और उमंग से वहां पहुंचे वह जल्दी ही नष्ट हो गई।
मंदिर व्यापारियों जैसे लुटेरों का अड्डा बना महसूस किया।
बाहर ही कई लोग एजेंट मिलने लगे जो रु 20 प्रति व्यक्ति लेकर विशेष रस्ते से अंदर पहुंचाते थे। अंदर के अंतिम द्वार पर दो मुस्टंडे जैसे पंडित खड़े थे जो प्रति व्यक्ति 200 रु लेकर गर्भ गृह की और जाने दे रहे रहे थे जब हमने और जिनने नहीं दिए उन्हें धक्का देकर आगे धकेल दिया जाता था। फोटो लेना मोबायल कैमरा प्रतिबंधित होने से दृश्य नहीं बता सकता।पर वीभत्स दर्शन~ है राम।
धर्म के ठेकेदारो का नंगा रूप जो ओ एम् जी या पी के में दिखाया था वही था।वितृष्णा हुई में अब अनुरोध करूँगा की अपने अंदर की देवी का पूजन करे यहाँ न आएं। मंदिर में बकरों को वलि के लिए पूजन करते भी देखा वहीं वलि की जगह वही कामाख्या देवी वाला दृश्य।
माता महाकाली तो ऐसी हो नहीं सकतीं यह तो लुटेरो और राक्षसों का जमघट था। शासन की भी कोई व्यवस्था और नियंत्रण नहीं।पुलिस मूक दर्शक। है देवी क्षमा करना यदि आपको यही पसंद है तो में आपका भक्त नहीं हो सकता। जो भी रु देकर अंदर गए उनकी जैब और भी पूजा के और भेंट के नाम पर कटी। कहा जा सकता है की निरीह प्राणी मनुष्य हो या बकरी बकरा या अन्य जैब कटे या गर्दन काटा जाना निश्चित है। और जैब कटा कर वे और भी खुश लगे मानो सारी देवी की कृपा उन्हें मिल गई जय हो।
6 अक्टूबर को 06:46 अपराह्न बजे ·
भुवनेश्वर में महालिंगराज दर्शन और कोणार्क में सदियों पुराना अथवा सम्भवतः विश्व के प्रथम देवता और धर्म का मंदिर सूर्य मंदिर का अवलोकन कर अगली यात्रा गंगासागर की और चलने वापिस पूरी जा रहे हैं। शुभ सन्ध्या।
दोपहर को हम सब गंगासागर की और बसों से चल पड़े।लगभग 3 घंटे बाद 95 किलोमीटर दुरी पर कर हुगली नदी के तट पर पहुंचे।यहाँ से बढ़ीं नाव से एक साथ 3 से 4 सौ लोगों से भरी नाव से 40 मिनट में एक द्वीप पर स्थित गंगा सागर के तट पर पहुंचकर छोटी 8 से 10 सीटर गाड़ी से लगभग 25 किलोमीटर चलकर कपिल मुनि के मंदिर के पास पहुंचे यहाँ एक धर्मशाला और मंदिर परिसर में सुविधा युक्त कमरों में रुके।अधिक देर होने कहीं न गए प्रातः 5 बजे उठकर लगभग 1 किलोमीटर दूर गंगासागर तट पर पहुंचे वहां जल स्नान से लेकर स्पर्श तक का सभी अपनी अपनी श्रद्धा से कर कपिल मुनि के दर्शन और आरती में शामिल हुए अच्छा लगा। बाद में मीठे पानी से नहाये।भीड़ अधिक न थी ।
पूर्वाञ्चल सहित देश के पूर्वी तट के विशेष स्थानों की हमारी यात्रा हमारे राजेन्द्र नगर एक्सप्रेस से उज्जैन लगभग 1 बजे तक पहुँच कर पूर्ण होने जा रही है।
यात्रा के दौरान नए स्थान, नई भाषा संस्कृतिसमाज उनकी व्यवस्था आदि अनेक जानकारियां प्राप्तकर वापिस हो रहे है।प्राप्त ज्ञान से अपनी अगली पीडी मित्र संबंधियो अदि के मार्ग को प्रशस्त करते है।पीडी दर पीडी यह अनुभव और ज्ञान जो हम भ्रमण किये स्थानों के वासियों और फिर अपने गृह वासियों के साथ बाटते हैं यह पुरे समाज के साथ सारे देश को सशक्त बनाता है। इसी लिए हमारा देश अखंड है। यह पर्यटन और तीर्थ यात्राये ही हम सबको विभिन्न भाषा भाषियों, संस्कृतीयो, खानपान की विभिन्नता के वावजूद भी जोड़े हैं।
हमें गर्व हैं की हम भारतीय है।हम हिन्दू हैं। जय हिन्द।
प्रस्तुतकर्ता डॉ. मधु सूदन व्यास पर 10/12/2015 04:18:00 am 

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