तिलक का महत्व.


  •                   क्या है मस्तक पर तिलक लगाने का महत्व....!!!!
     Himanshu Yajurvedi
    हमारे दोनों भोहों के मध्य में आज्ञाचक्र होता है, इस चक्र में सूक्ष्म द्वार होता है जिससे इष्ट और अनिष्ट दोनों ही शक्ति प्रवेश कर सकती है, यदि इस सूक्ष्म प्रवेश द्वार को हम सात्त्विक पदार्थ का लेप एक विशेष रूप में दें तो इससे ब्रह्माण्ड में व्याप्त इष्टकारी शक्ति हमारे पिंड में आकृष्ट होती है और इससे हमारा अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षण
    भी होता है | 
    बिना तिलक धारण किए कोई भी पूजा-प्रार्थना शुरू नहीं होती है। मान्यताओं के अनुसार सूने मस्तक को शुभ नहीं माना जाता। माथे पर चंदन, रोली, कुमकुम, सिंदूर या भस्म का तिलक लगाया जाता है।
    अनामिका शांति दोक्ता, मध्यमायुष्यकरी भवेत्।
    अंगुष्छठ:पुष्टिव:प्रोत्त, तर्जनी मोक्ष दायिनी।।
    अर्थात् तिलक धारण करने में अनामिका अंगुली मानसिक शांति प्रदान करती है, मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है, अंगूठा प्रभाव, ख्याति और आरोग्य प्रदान करता है, इसलिए विजयतिलकअंगूठेसे ही करने की परम्परा है। तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है। इसलिए मृतक को तर्जनी से तिलक लगाते हैं।
    सामुद्रिकशास्त्र के अनुसार, अनामिका और अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं। अनामिका अंगुली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है। इसका अर्थ यह है कि साधक सूर्य के समान दृढ, तेजस्वी, निष्ठा-प्रतिष्ठा और सम्मान वाला बने। दूसरा अंगूठा है, जो हाथ में शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह जीवनी शक्ति का प्रतीक है। इससे साधक के जीवन में शुक्र के समान ही नव जीवन का संचार होने की मान्यता है। 
    स्त्रीयों को गोल और पुरुषों को लम्बवत तिलक धारण करना चाहिए। तिलक लगाने से मन शांत रहता है। अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षण होने के कारण और सात्विकता एवं देवत्व आकृष्ट होने के कारण हमारे चारों ओर सूक्ष्म कवच का निर्माण होता है। आजकल कुछ स्त्रीयाँ टीवी धारावाहिक देखकर विचित्र आकार के टीका लगती हैं तथा बाज़ार में उपलब्ध प्लास्टिक व विभिन्न हानिकारक रसायनो की बिंदी लगाने से भी कोई लाभ नहीं होता अपितु हानि ही होती है क्योंकि उसमे सात्विकता को आकृष्ट करने की क्षमता नहीं होती। तिलक धारण करने से प्रत्येक जीवात्मा को उसके आध्यात्मिक शास्त्रीय लाभ अवश्य मिलते है। चाहे वह हिन्दू हो या अन्य किसी भी पंथ संप्रदाय का हो।
    जय श्री कृष्ण ॥