" धन बल,तन बल,जाति बल, चौथा बल है , दाम।
'एक भरौसो एक बल, हारे सो हरि नाम।
"संसार में कुछ व्यक्ति धन को प्रमुख मानते हें। उनका मानना हे, धन से सारे काम हो जाते हें। महाभारत में भी कहा हे, 'मनुष्य "अर्थ"का दास है '। इसे लोगों की मनोवृति हे- पैसा फेंक
तमाशा देख, बाप भला न भैया ,सबसे बाद रुपैया।
तमाशा देख, बाप भला न भैया ,सबसे बाद रुपैया।
परन्तु जिसके पास धन है, वह कंजूस हो भी सकता हे, दानी भी हो सकता हे । अपव्यय भी कर सकता हे और सद्व्यय भी कर सकता हे। धन खतरा,चिंता,भय, का कारण भी बन सकता हे। धन नैतिकता से भी कमाया जा सकता है, अथवा पाप कर्मों से भी। प्रश्न है, वह कोन ? शक्ति है , जिससे मानव सच्चाई से कमाना सीखे, तथा धन बल का प्रयोग भलाई के कार्यों में करे।
घमंडी के स्थान पर विनम्र बने।
आखिर बल का आधार क्या है?
इसी प्रकार कुछ व्यक्ति शास्त्र बल, या बहुबल को बड़ा मानते हें। जिनके पास यह है,उनके नाम का सिक्का चलता है। कुछ 'वाक बल'(power of speech) को बड़ा मानते हें।प्रभाव शाली वाणी से अनेक अनुचर चेले,बन जाते हैं , और उनके कहने मात्र से 'जान पर खेलने' के लिए तैयार हो जाते हैं । प्रश्न हे, वह कोन बल हे,जो वाणी अमृतमय लोक कल्याणकारी कर कर दे?
कुछ संगठन शक्ति को बड़ा मानते हें । उनका कथन हे " संघे शक्ति कलियुगे" वे कहते हें,' एक उंगली कुछ नहीं कर सकती पांच उंगलियाँ संगठित हो हर कार्य कर सकती हें। छोटे धागों के मेल से बड़ा रस्सा हठी को वश में कर लेता हे। वे कहते हें- 'United we stand, Divided we fell' .
विभिन्न दल, संस्थाएं इसी प्रकार की संगठन शक्ति ही है। पर आज इस प्रकार के अनेक संगठन हें, फिर भी शांति क्यों नहीं है ?
वह महाशक्ति कोन है, जो इसे लोक कल्याण कारी बना दे?
कुछ लोक शक्ति को बड़ा मानते हें,कुछ तर्क या युक्ति शक्ति को , कुछ विद्या से बुद्धि की शक्ति को बड़ा मानते हें,पर बुद्धि को सुबुद्धि में केसे बनाया जाये?
राजनीती का बल भी बड़ा बल है,पर इसे 'प्रजापालक-प्रजारंजक' केसे बनाया जाये?
कुछ क्रांति के बल को बड़ा बल मानते हें। विश्व की अनेक अनेक क्रांतियों के वावजूद भी मनुष्य दुखी क्यों है ?
इस तरह हम देखते हें की अशांति को शांति में बदलने वाली महाशक्ति ईश्वरीय शक्ति है । आत्मिक शक्ति है , नेतिक बल है । इसके लए हमें परम शक्ति का आवाहन करना होगा , चरित्र निर्माण करना होगा,
मार्क विक्टर कहते हें की" आप वही बनते हें जेसा आप द्रड़ता से बनना चाहते हें" । अपनी योग्यताओ ,क्षमताओं तथ गुण के विषय में सकारात्मक रूप से दृढ निश्चयी हों।
गुरुदेव रविंद्रनाथ टेगोर का कथन है,"आपके शत्रु हें, इसका मतलब है,की आप कमजोर और लाचार हें।"
आप अपने को शक्तिशाली बनाइये, आप परम सत्ता के पुत्र हें,इसलिए आप भी परम शक्तिशाली हें, आप स्वयं 'स्वदर्शन' कीजिये।
'दुर्गा शप्तशती' में देवी की जो स्तुतियाँ हें,उनमे देवी को दया रूपेण,क्षमा रूपेण,मातृ रूपेण, आदि विभिन्न प्रकार से माना गया है, इन सभी देवी गुणों का विकास कीजिये, आप दुनियां को सताने नहीं सेवा के लिए आये हें, यही भावना कीजिये, इश्वर से सन्मार्ग की और बड़ाने की प्रार्थना कीजिये।
' तमसो माँ ज्योतिर्गमय,
असतो माँ सदगमय ।
मृत्यौमॊ अमृतम्
गमयेत।
हम अंधकार से प्रकाश की और बढें, असत् से सत् की और बढें मृत्यु से अमरता की और बढें।
लज्जत ए काम और तेज करो,
तल्खि ए जाम और तेज करो
जेर ए दीवार आंच कम हे ,
शोला ए बाम और तेज करो।।
शोला ए बाम और तेज करो।।
परमात्मा हमें शक्ति दे यही प्रार्थना है।
" इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो न ।
" इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो न ।
डॉ ओ.पी. व्यास नई सड़क गुना म.प्र.
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