मालवी प्यार
डोकरी ने डोकरा को प्यार से दबायो हाथ ,
बोली अपनों तो हे जनम जनम को साथ ,
अबे बुडापा में शायरी मत मट कावो ,अबे एक शेर म्हारा ऊपर भी सट कावो ,
डोकरो बोल्यो तु ज तो हे म्हारी शायरी की जान ,
तु ज तो म्हारी प्रेरणा ने सगळा दर्द की दुकान ,
एक जमाना में थारा भी था सुर्ख लाल गाल ,
आखा में सुरूर ने गाल पे मिनाकुमारी सा बाल
तु चलती थी तो मोरनी भी शर्माती थी ,
थारी मुस्कान एसी के रम्भा भी लजाती थी
जादा कई लिखू ,थारी खूबसुरती तो शकरकंद थी खंडहर बताई रिया हे ईमारत कितनी बुलंद थी
राजेश भंडारी “बाबु”
१०४ महावीर नगर ,इंदौर
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