ब्राहमणो ब्रहमवर्चसी जायताम । ब्राहमण ब्रहम तेज से युक्त हो ।
सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का अत्यन्त महत्व है। इन सोलह संस्कारों में गर्भाधान,पुसवन,
अन्नप्राशन,नामकरण,कर्णछेदन आदि संस्कारों के सम्पन्न होने पर यज्ञोपवित तथा विवाह जैसे संस्कार सनातन धर्मावलम्बियों के लिये अत्यन्त अनिवार्य माने गये हैं। इन सभी संस्कारों की श्रंखला में यज्ञोपवित अति महत्वपूर्ण और अत्यन्त पवित्र संस्कार है क्योंकि शास्त्रों में वेदाध्ययन,नित्य संध्या,एवं गायत्री महामंत्र का जप एवं हवन आदि प्रत्येक ब्राहमण के लिये नित्य करना आवश्यक बताया है।
शास्त्रों में इस पुनीत संस्कार की आयु निर्धारित की है। जब ब्राहमण ब्रम्हचारी आठ वर्ष का हो जाये तब उसका उपनयन कर देना चाहिए। अष्ठं वर्ष ब्राहमण उपनयीत वं वेदं अध्यापयेत । इस पवित्र यज्ञोपवित का तन्तु नौ तन्तुओं से युक्त होता है और इसमें ब्रम्हा,विष्णु,महेश इन तीनों देवताओं का वास रहता है। इसके अतिरिक्त यज्ञोपवित सूर्य के समान तेजस्वी होती है अत- इसको धारण करने वाला तेजोमय हो जाता है।इसी उदेश्य से हमारे शास्त्रों में उपनयन संस्कार का परम महत्व है। अत' प्रत्येक ब्राहमण ब्रम्हचारी का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वह यज्ञोपवित धारण कर अपने जीवन में तेजस्विता प्राप्त करे ।
शुभं भवतु
उद्धव जोशी
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