संपादकीय
सभी को दीपावली की अनेकों शुभकामनाएँ।
भारतीय '' परंपरागत नव वित्तीय वर्ष'' के प्रारम्भ एश्वर्य की देवी "महा लक्ष्मी" "गणपती" की भाव समर्पित उपस्थिती मेँ भारत के केवल हिन्दू धर्म मेँ ही नहीं अन्य धर्मो के अनुगामी भी किसी न किसी रूप मेँ अपनी प्रसन्नता का परिचय देते हें।
अपने स्वयं के शरीर से लेकर, घर, शहर, देश, की सजावट को नव रूप मेँ सुशोभित कर, प्रकाश की अगणित ज्योतियों के साथ, रंगविरंगी प्रकाश युक्त छटा वाली आतिशबाजियों ओर प्रसन्नता से भरी आवाजों के साथ पूरा देश मानो एकाकार हो उठता हे। यह हम सब भारतीयो की जीवंतता ओर संघर्ष क्षमता का प्रतीक बन नव जीवन के स्वागत के लिए उत्साहित करता हे।
यही हमे प्रेरित भी करता हे की " बीती ताहि विसार दें, आगे की सुध लेय"। यही भाव हमे नव शक्ति प्रदान करता हे।
समाज के लिए अच्छे से अच्छा करने की होड समाज को उन्नति के शिखर पर विराजित कर सकती हे, वहीं अच्छा कार्य करते रहने की चाह भी पेदा करती हे। पर यदि इस चाह मेँ "मेँ ही कर सकता हूँ यह" या "मेने किया हे" जेसे भाव का अहम जुड़ जाए तो पतन होने मेँ भी देर नहीं लगती, ओर अच्छे से अच्छा कार्य व्यर्थ सिद्ध हो जाता हे। यह सारे समाज के लिए बहुत ही घातक हे।एसा समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता।
बहुत लड़ लिए हम आपस मेँ " बिल्लियों" की इस लड़ाई का आनंद "स्वार्थी बंदर" भी उठाने से नहीं चूक रहे , पर किसी को भी इसका पता भी नहीं।
आओ अब भी समझें समाज के लाभ के कामो मेँ साथ दें ।
तटस्थ रह कर केवल हम अपने को स्वार्थी न बनने दें। अब तो जब यह ज्ञात ही हो गया हे की एक पक्ष पीछे हट गया हे तो अब क्यो न सब मिल कर नवयुवको के काम मेँ सहायता करें जो की समाज के लिए लाभदायक हे।
इंदौर मेँ अगले माह मेँ ही आयोजित होने वाला समाज का परिचय सम्मेलन एकता की नई मिसाल क्यों न बन जाए।
बड़ा भ्रम हे की अखिल भारतीय औदीच्य महासभा समाज के सभी कार्य क्रमो की संचालक ओर नियंत्रक हे। वह मात्र अच्छे समाज के सभी कार्यो का प्रशंसक ओर सहायता मांगे जाने पर ही सहायक हे।
अभी तक उज्जैन या इंदोर सहित भारत के बिभिन्न स्थानो पर आयोजित होने वाले परिचय सम्मेलन या सामूहिक विवाह, सामूहिक यज्ञोंपवीत, आदि अनेक सामाजिक कार्यक्रमो का आयोजन स्थानीय समाज ही करता हे, यह बात जरूर हे की इस प्रकार के समस्त कार्यक्रमों मेँ कार्यकर्ता ओर पदाधिकारी वे ही होते हें जो अखिल भारतीय औदीच्य महासभा से भी संबन्धित पदाधिकारी या कार्यकर्ता हो सकते हें। क्योकि जो भी समाज के कार्यक्रमों मेँ रुचि लेता हे वही सब दूर अनायास ही दिखलाई पड़ता हे । इससे यह भ्रम होना भी स्वभाविक होता हे की इन कार्यक्रमों का आयोजन भी औदीच्य महासभा कर रही हे। यही भ्रम वर्तमान मेँ इंदौर मेँ होने वाले आपसी विवाद की जड़ हे।
कतिपय व्यक्ति किसी विशेष निजी कारणो से भी अपने आपस के विवादो को पूरे समाज से जोड़ कर लाभ उठाने की चेष्टा भी करते हें। ओर अनभिज्ञ समाज के तटस्थ व्यक्ति स्वयं को समाज हित से दूर कर लेते हें। या अपनी निजी रिश्तेदारी ओर नज़दीकियों के मान से एक पक्ष की ओर झुके हुए से दिखाई देते हे। यह परिस्थिति समाज के लिए बड़ी घातक होती हे।
आईये दीपावली के इस पवन पर्व पर हम पुनर्विचार करें । अपनी भूमिका मेँ समाज हित मेँ परिवर्तित करें । क्योकि समाज का हित होगा तभी व्यक्ति का हित होगा। अपने अंदर के व्यक्ति को गोण कर प्रकाश के तरह सर्व व्यापी बन जाए। तभी यह पर्व "दीपावली" सार्थक होगा, ओर सही मायने मेँ "गणपती" ओर "महा लक्ष्मी " का वरण कर पाएंगे।
पुनः सभी को दीपावलि की शुभकामनायें ।
अस्तु
डॉ मधु सूदन व्यास
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