तिलक अनेक प्रकार के होते हैं । तिलक रहस्य नामक पुस्तक में इस पर विस्तार से लिखा गया है।
ब्रम्हा को बडपत्र जो कहिये,विष्णु के दो फाड।
शक्ति की दो बिन्दु कहिये, महादेव की आड।।
शक्ति की दो बिन्दु कहिये, महादेव की आड।।
ब्रम्हार्पण हेतु किया गया तिलक तीन अंगुली से पूरे ललाट पर बारम्बार किया जाता है , विष्णु के उपासक उर्घ्व तिलक दो पतली रेखा में करते हैं 1 शक्ति के उपासक दो बिन्दी .शिव और शक्ति. लगाते हैं तथा महादेव के भक्त त्रिपुण्ड करते हैं ।
ब्रहमवैवर्तनुराण में लिखा है,
स्नानं दान तपो होमो, देवतापित्रकर्म च।
तस्सर्वं निष्फलं याति, ललाटे तिलकं बिना॥
अर्थात तिलक के बिना सभी जातियों के होम, तपस्या, स्नान, देवता पूजन,पित्रकर्म एवं दान निष्फल हो जाते है। हिन्दू शास्त्रों में तो तिलक प्रभा को इतना महत्व दिया गया कि राज्याभिषेक समारोह का नाम ही राज्य तिलक पड गया ।
तिलक, टीका, बिंदिया या त्रिपुण्ड इन सबका सीधा संबंध मस्तिष्क से है। मस्तिष्क शरीर रूपी साम्राज्य का संचालक है। मस्तिष्क का उपर वाला भाग प्रमस्तिष्क कहलाता है। यह भाग शरीर में आने वाले संवेगों या सूचनाओं को ग्रहण करता है और शरीर के अंगों को सूचनाऐं भेजता रहता है। प्रमस्तिष्क, मस्तिष्क का वह भाग है जो मनुष्य को देवता, राक्षस, प्रकाण्ड विव्दान अथवा मूर्ख बना देता है। यहां पिटयूटरी ग्रन्थि है, जो अन्तस्स्रावी तन्त्र की अधिनायक है । यह कई हारमोन्स उत्पन्न करती है जिससे स्मरण शक्ति, द्रष्टि, श्रवण, घ्राण, संवेदना, तथा अन्य बहुत सी कियाओं का संचालन होता है। आज्ञा चक्र एक ऐसा चेतना केन्द्र है जहां से समस्त ज्ञान चेतना और क्रियात्मक चेतना का समग्र रूप से संचालन होता है। आज्ञाचक्र ही दिव्य नेत्र है । यहां पर तिलक लगाने से आज्ञा चक्र जाग्रत होगा। आज्ञाचक्र जाग्रत होने से मनुष्य की शक्ति उर्घ्वगामी हो जाती है। उसकी ओज और तेज बढ जाता है। तिलक पर भावनात्मक श्रध्दा होने के कारण व्यक्ति का ध्यान शरीर के अन्य अंगों को छोड कर मस्तिष्क पर विशेषत रहेगा जो व्यक्ति को स्व बोध की ओर ले जाता है। तिलक लगाते ही मस्तिष्क में एक प्रकार की तरावट, ठण्डक, शान्ति व शीतलता की अनुभूति होती है। चन्दन, केसर, कस्तूरी,अष्टगन्ध आदि की सुगन्ध के कारण प्रसन्नता रहती है। जिस प्रकार परिवार का मुखिया प्रसन्न, शान्त, समता वाला हो तो परिवार में शान्ति रहती है, वैसे ही मस्तक शरीर का मुखिया है , वह शान्त प्रसन्न हो तो जीवन में शान्ति व समत्व का भाव बढता है। मस्तिष्क मेँ रसायन सेराटोनिन तथा बीटाएण्डोरफिर की कमी उदासीनता लाते हैं, मनोभावों को प्रभावित करते हैं। तिलक के उपयोग से उपर्युक्त रसायनों का स्त्राव संतुलित हो जाता है। सामाजिक कार्यक्रमों में तिलक लगाने की परम्परा सामाजिक समता की सूचक है जिसमें उंच नीच की दीवार नहीं रहती। तिलक लगाना सम्मान का सूचक है। भारतीय परम्परा में कोई भी सम्मान तिलक के बिना अधूरा माना जाता है। यात्रा पर प्रस्थान करना हो,युध्द में जाना हो, विदा करना हो तो सभी प्रकार की शुभकामनाऐं तिलक के माध्यम से प्रगट होती है। तिलक लगाने से मन में शान्ति,प्रसन्नता,उल्लास तथा सफलता का भाव प्रगट होता है।
हमारे ज्ञान तन्तुओं का विचारक केन्द्र भ्रकुटि और ललाट का मध्य भाग है। जब हम मस्तिष्क से अधिक काम लेते हैं तो इसी केन्द्र में वेदना अनुभव होने लगती है। अत हमारे महर्षियों ने तिलक धारण का विधान किया। चन्दन की महिमा सभी वैध्य, हकीम डाक्टर जानते हैं। मस्तिष्क के केन्द्र बिन्दु पर चन्दन का तिलक ज्ञान तन्तुओं को संयमित व सक्रिय रखता है। ऐसे जातक को कभी सर दर्द नही रहता तथा उसकी मेधा शक्ति तेज रहती है।
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- तिलक का महत्व.: Himanshu Yajurvedi क्या है मस्तक पर तिलक लगाने का महत्व....!!!!
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