स्थान-महेश्वरी समाज धर्मशाला प्राणी संग्रहालय के सामने इंदौर। |
इंदोर में होने वाले 16 दिसम्बर 2012 के निशुल्क परिचय सम्मेलन की उलटी गिनती शुरू हो चुकी हे। शीघ्र ही नवयुवको का संकल्प पूरा होने में हे, इसकी सभी को अग्रिम शुभकामनाए ओर आशीर्वाद।
जब भी कोई सर्व जन हिताय की भावना से समाज के लिए कुछ करता हे तो उसे बहुत कष्टो का सामना करना ही होता हे। वर्तमान परिस्थितियो में धन बल इस भावना की राह में सबसे बड़ा रोड़ा हे। पर जब कोई यह ठान ही ले तो सब-कुछ ठीक होने में देर नहीं लगती। सद कार्यों ओर सर्व जन हिताय कार्यों के लिए अज्ञात शक्तियों का समर्थन अनजाने में मिलने लगता हें। परेशानियाँ ओर कष्टो की परीक्षा के बाद ही 'राम' 'क्रष्ण 'बुद्ध' 'गांधी' बनते हें। इस समय यह आवश्यक हें की धेर्य ओर संयम रखा जाए।
समाज के हित में होने वाली कोई भी गतिविधि प्रशंसनीय होती हें। ओर जब अच्छे से अच्छा करने की होड लग जाए तो एसा समाज हमेशा उन्नति करता हे। युवाओं की क्षमताओं को समझने में देर हो सकती हे, पर प्रतिभाएं छुपती नहीं। इंदोर में आयोजित हो रहे इस निशुल्क परिचय सम्मेलन को भी सभी को समाज के लाभ की द्रष्टि से तोलना ओर प्रोत्साहन देना ही होगा।
यह निशुल्क हे इसका अर्थ यह भी नहीं की की हम सभी अपनी क्षमताओं के बावजूद भी तमाशबीन मात्र रहें। पत्रिका छपवाने से लेकर स्थान व्यवस्था /भोजन/ अतिथ सत्कार ओर ढेर सारी व्यवस्थाओं में धन की जरूरत सर्व ज्ञात हे। इस में सभी किस प्रकार सहभागी हों यह भी सभी को सोचना हे। यदि कार्यकर्ताओं ने शुद्ध मन से यह सदकार्य सम्पन्न किया तो धन की कमी नहीं होगी। इतना अधिक भी हो सकता हे की भविष्य के शुभ कार्यो के लिए भी बच जाए। इसलिए यह भी जरूरी हे की प्रत्येक कार्य में पूरी पारदर्शिता रखी जाना आवश्यक हें। अक्सर विवाद की जड़ इस पारदर्शिता के अभाव में ही छुपी रहती हे। कार्य के समापन के तुरंत पश्चात तन मन ओर आर्थिक सहायकों के सम्मुख हानी -लाभ का व्योरा रखने की तैयारी भी अभी से रखनी होगी। यदि एसा हो सका तो समाज एसे नेत्रत्व को सिर पर धारण कर लेगा।
कुछ अभी भी दूर से तमाशा देख रहे हें। कुछ कमियों को ढूंढकर स्वयं को सर्व शक्तिमान सिद्ध करने की कोशिश में भी होंगे। ताकि वे कह सकें की 'देखा ये क्या कर सकें हें?'
जब भी कोई कार्य सहर्द्यता से ओर सर्व सुख के लिए किया जाता हे तो अज्ञात शक्तियों का सहयोग स्वयं ही मिल जाता हे। सकुशल कार्य सम्पन्नता के पश्चात उनमें आया अहम भाव उन्हे फिर भविष्य में अज्ञात शक्तियों का सहयोग खो भी देता हें। इसलिए जरूरी यह भी हे की प्रतिफल की आशा से दूर रहा जाए। जो व्यक्ति धन या यश के लिए कुछ करता हे उसको वह नहीं मिलता, पर जो धन ओर यश की कामना किए विना कर्म करता हें सफलता उसके कदम चूमती हे।
जय गोविंद माधव ।
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