बस आप तो आप ही हैं ।

 
अपना मतलब साधने के लिए चाटुकार किसी भी हद तक जा सकते हें।
आवश्यक हे, की समय रहते 
उनको पहिचान लिया जाए।
अत्याधिक विनम्र चाटुकार हो सकते हें। उनकी विनम्रता स्थाई नहीं होती। 
''बस आप तो आप ही हैं'' जैसे विशेषण से सराबोर शब्‍द कानों में शाब्दिक मिठास उडेल देते हैं। जब कोई आपकी प्रशंसा की बरसाती झडी लगाकर बातें करता है तो उसमें आप इतने भीग जाते हैं कि बचाव का छाता लगाने का ध्‍यान ही नहीं रहता है। इसके लिये चेतावनी भी दी गई है कि '-
बस आप तो हैं आप, आपको आप ही रहना चाहिए ! 
उंची उडान हो भले, जमीं से पैर छूना चाहिए!! 
     आपके इरादों की उडान कितनी ही उंची होती चली जाए किंतु आपको जमीं से जुड कर ही रहना होगा। इस संबंध में संतो का मत भी है कि-
'आप आपको खुद पहचानों, कहा और का न मानों। 
जब तक देखो न अपने नैना, तब तक न मानो किसी के बैना॥   
    जब तक आपके अनुमान का प्रमाण और स्‍वयं का अनुभव हरी झण्‍डी न दिखा दे तब तक किसी के कहने पर अंधविश्‍वासी बन कर नहीं चलना चाहिए । किसी के व्‍दारा की जा रही प्रशंसा के भावों को बुध्दि से तौलना चाहिए अन्‍यथा अहंकार हमारा पक्‍का दोस्‍त बन जायगा फिर उससे दोस्‍ती की संबंध तोडना कठिन होगा ।
इस संबंध में श्री शिवखेडा जी का मत है कि ''सफल व्‍यक्ति कोई अलग कार्य नहीं करते बल्कि वे हर कार्य को अलग ढंग से करते है '' इस प्रकार आपको वास्‍तविकता से रिश्‍ता बनाना होगा । हमारे हर कार्य की एक विशिष्‍ठ पहचान और अलग अंदाज होना चाहिए। हमें मौलिक होकर अपनी पहचान को मजबूत करना होगा ।
हेनरी फोर्ड का कहना है कि ' सफलता का यदि कोई रहस्‍य , दूसरे व्‍यक्ति के द्रष्टिकोण को समझने और अपने द्रष्टिकोण से वस्‍तुओं को देखने मे छुपा है।
आपके अन्‍तरमन के गोदाम में आत्‍मविश्‍वास, स्‍वावलंबन, सकारात्‍मक सोंच, निर्णयात्‍मक शक्ति, मौन की ताकत जैसे कई शक्तियों के पक्‍के माल का स्‍टाक है। यह पक्‍का माल तैयार करने के लिए आपने आलोचना रूनी कच्‍चे माल की अहमियत को सही रूप में परखा और उसके माध्‍यम से परिपक्‍वता हासिल की तभी आप, आप बने। कहा गया है -
' मंजिल उन कदमों को मिलती है , जो कभी थमते नहीं ।
 सफलता उनकी चेरी है ,जो विफलता के आगे झुकते नहीं ।। 
   जहां चाह वहां राह की तर्ज पर अपने मन के घडे में उत्‍साह का जल भरकर लक्ष्‍य के पनघट से संकल्‍प के सिर पर रखते हुए आगे बढना ही सफलता है। आप जैसे प्रतिभाशाली व्‍यक्ति अपने शुध्‍द विचारों को वाणी के व्‍दारा चहु और फैलाते हैं तो उनसे संसार में परिवर्तन की बयार चलती है। आपके गुप्‍त विचारों का प्रभाव भी समाज पर अधिक पडता है। बुध्दिमान व्‍यक्ति उन्‍हीं बातों के लिए जाना जाता है, जिसे वह कभी कहता नहीं है । 
होंठों पर शब्‍दों को लिखकर, मन के भेद न खोलो, 
आंखों से मैं सुन सकता हूं ,आंखों से तुम बोलो।
 आपकी वाणी संतुलित होकर उसमें सत्‍य, समझदारी, और खुशहाली का समावेश होगा तो सारा जहां प्रभावित होगा। कहा गया है, बोलना एक कला है तो चुप रहना सर्वश्रेष्‍ठ कला है।
मिस्‍टर हरबर्ट का कहना है कि जिस व्‍यक्ति में कार्य करने की क्षमता और ईमानदारी है ,उसे परिस्थितियां दबाकर नहीं रख सकती उसे आगे बढने से कोई नहीं रोक सकता है।

वक्‍त रूकता नहीं किसी के लिए, न दोस्‍ती के लिए न दुश्‍मनी के लिए
वक्‍त के साथ साथ चलता रहे , यही बेहतर है, आदमी के लिए।।
वे लोग जो असफलता के शिकार होते हैं ,या वे रोग से पीडित होते हैं, या घटनाग्रस्‍त होते है,तो तत्‍काल अपनी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हैं, क्‍या करें समय ही खराब है। समय को दोषी बताकर अपने दामन को बचाने का प्रयास करते हैं । समय समय से समय ने सबको आगे बढने का समय दिया है किन्‍तु लोग उसका उपयोग न कर उसे ही अपनी वाणी की कैंची से काटने में लग गये।
आपका महत्‍व तब ही बढेगा जब आपके सामने कोई दूसरा होगा। याने हमें संबंधों के महत्‍व को भी समझना होगा। यदि आप एकांतवासी बनकर अपन क्षमतानुसार अपनी विशेषताओं को बढाने में लगते हैं, तो आपकी विशेषताओं पर प्रशंसा की वाणी का प्रकाश कौन डालेगा। सामने वाला हमारी कमियों का आईना हमें दिखाने का प्रयास करता है तो हमें उस आईने में अपनी सूरत को खुशी खुशी देखना चाहिए और जो कमी वह बतलाए ,उसे दूर करने का प्रयास करना होगा तभी हम ''बस आप तो आप ही हैं '' कहलाने के सच्‍चे अधिकारी होगें । आलोचना को सुने और उसे प्रशंसा में बदलने का इरादा रखें ।
उद्धव जोशी , एफ 5/20 एलआयजी ऋषिनगर उज्‍जैन
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