कुरुक्षेत्र यात्रा

     दिल्ली से 170 किलोमीटर उत्तर की ओर ग्रांड ट्रंक रोड  Grand Trunk Road पर स्थित कुरुक्षेत्र हरियाणा राज्य का एक प्रमुख जिला है। यहाँ रेल की सुविधा भी है। यह हरियाणा के उत्तर में स्थित है, यह जिला बासमती चावल के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है ।तथा अम्बाला, यमुना नगर, करनाल और कैथल से घिरा हुआ है । माना जाता है कि यहीं महाभारत की लड़ाई हुई थी और भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश यहीं पर 'ज्योतीसर' नामक स्थान पर दिया था। 
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    कुरू ने जिस क्षेत्र को बार-बार जोता था, उसका नाम कुरूक्षेत्र पड़ा। कहते हैं कि जब कुरू बहुत मनोयोग से इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इस परिश्रम का कारण पूछा। कुरू ने कहा-'जो भी व्यक्ति यहाँ मारा जायेगा, वह पुण्य लोक में जायेगा।' इन्द्र उनका परिहास करते हुए स्वर्गलोक चले गये। ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने देवताओं को भी बतलाया। देवताओं ने इन्द्र से कहा-'यदि संभव हो तो कुरू को अपने अनुकूल कर लो अन्यथा यदि लोग वहां यज्ञ करके हमारा भाग दिये बिना स्वर्गलोक चले गये तो हमारा भाग नष्ट हो जायेगा।' तब इन्द्र ने पुन: कुरू के पास जाकर कहा-'नरेश्वर, तुम व्यर्थ ही कष्ट कर रहे हो। यदि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर अथवा युद्ध करके यहाँ मारा जायेगा तो स्वर्ग का भागी होगा।' कुरू ने यह बात मान ली। यही स्थान समंत-पंचक अथवा प्रजापति की उत्तरवेदी कहलाता है।
    कुरुक्षेत्र का पौराणिक महत्व अधिक माना जाता है । इसका त्रग्वेद और यजुर्वेद में अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है । यहां की पौराणिक नदी सरस्वती का भी अत्यन्त महत्व है । इसके अतिरिक्त अनेक पुराणो, स्मृतियों और महर्षि वेद व्यास रचित महाभारत में इसका विस्तृत वर्णन किया गया हैं । विशेष तथ्य यह है कि कुरुक्षेत्र की पौराणिक सीमा ४८ कोस की मानी गई है जिसमें कुरुक्षेत्र के अतिरिक्त कैथल , करनाल, पानीपत और जिंद का क्षेत्र सम्मिलित हैं
यहाँ ठहरने के लिए सभी श्रेणी की व्यवस्था उपलब्ध है, पर्यटन विभाग के होटल रेस्ट हाउस भी हें। सूर्यग्रहण के अवसर पर एकत्र होने वाले एक करोड़ की संख्या तक के विचार से स्थान मिलता है। फिर भी केवल तीर्थ दर्शन विचार से भीड़ से बचने सूर्यग्रहण के समय छोड़ कर जाएँ तो अधिक आनंद रहता है।
  कुरुक्षेत्र के प्रमुख दर्शनीय स्थान
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ब्रह्मसरोवर  ---कुरूक्षेत्र के जिन स्थानों की प्रसिद्धि संपूर्ण विश्व में फैली हई है उनमें ब्रह्मसरोवर सबसे प्रमुख है। इस तीर्थ के विषय में विभिन्न प्रकार की किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। अगर उनकी बात हम न भी करें तो भी इस तीर्थ के विषय में महाभारत तथा वामन पुराण में भी उल्लेख मिलता है। जिसमें इस तीर्थ को परमपिता ब्रह्म जी से जोड़ा गया है । सूर्यग्रहण के अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर लाखों लोग ब्रह्मसरोवर में स्नान करते हैं। कई एकड़ में फैला हुआ यह तीर्थ वर्तमान में बहुत सुदंर एवं सुसज्जित बना दिया गया है। कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड के द्वारा बहुत दर्शनीय रूप प्रदान किया गया है तथा रात्रि में प्रकाश की भी व्यवस्था की गयी है।
सन्निहत सरोवर- यह प्राचीन एवं अत्यंत पवित्र तीर्थों में से एक है, कहा जाता है की इसकी जल राशि ब्रह्मा जी के नाभि के पवित्र जल से भरी गई थी, यह वर्णन भी वामन पुराण, स्कन्द पुराण, ओर महाभारत में उल्लेखित है। सूर्य ग्रहण के समय यहाँ स्नान ओर श्राद्ध करने से सहस्त्र अश्व मेघ यज्ञों का फल मिलता है। करोड़ो लोग सूर्य ग्रहण काल में यहाँ आकार लाभ प्राप्त करते हें। प्रत्येक सोमवती अमावस्या को यहाँ मेला भी लगता है। इस सरोवर में स्नान कर पास के कमल कुंज के भी दर्शन करते है जो कमल के फूलों से भरा हुआ है।   सरोवर की आसपास कई मंदिर भी हें। सरोवर की वर्तमान लंबाई 1500 फिट ओर चोड़ाई 550 फिट है, चरो ओर लाल पत्थर से बनी सीडी ओर घाट मनोहारी हें। 
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भद्रकाली मन्दिर--भद्रकाली मन्दिर ५२ शक्तिपीठो मे से एक है। यह हरियाणा का एकमात्र शक्तिपीठ है। माँ के शरीर के ५२ खण्डों मे से एक खन्ड यहा भी गिरा था। मां भद्रकाली मन्दिर व स्थानेश्वर महादेव मन्दिर आस-पास ही हैं और रेलवे स्टेशन से मात्र ३ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।
   यह ऐतिहासिक मंदिर हरियाणा की एकमात्र सिद्ध शक्तिपीठ है, जहां मां भद्रकाली शक्ति रूप में विराजमान हैं।
   वामन पुराण व ब्रह्मपुराण आदि ग्रंथों में कुरुक्षेत्र के सदंर्भ में चार कूपों का वर्णन आता है। जिसमें चंद्र कूप, विष्णु कूप, रुद्र कूप व देवी कूप हैं। श्रीदेवी कूप भद्रकाली शक्तिपीठ का इतिहास दक्षकुमारी सती से जुड़ा हुआ है। शिव पुराण में इसका वर्णन मिलता है कि एक बार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया। इस अवसर पर सती व उसके पति शिव के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को बुलाया गया। जब सती को इस बात का पता चला तो वह अनुचरों के साथ पिता के घर पहुंची। तो वहां भी दक्ष ने उनका किसी प्रकार से आदर नहीं किया और क्रोध में आ कर शिव की निंदा करने लगे। सती अपने पति का अपमान सहन न कर पाई और स्वयं को हवन कुंड में अपने आप होम कर डाला। भगवान शिव जब सती की मृत देह को लेकर ब्राह्मांड में घूमने लगे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52 हिस्सों में बांट दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां पर शक्ति पीठ स्थापित हुए।
   हरियाणा के एकमात्र प्राचीन शक्तिपीठ श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर कुरुक्षेत्र के देवी कूप में सती का दायां गुल्फ अर्थात घुटने से नीचे का भाग गिरा और यहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से मां भद्रकाली की पूजा की और कहा था कि महादेवी मैंने सच्चे मन से पूजा की है अत: आपकी कृपा से मेरी विजय हो और युद्ध के उपरांत मैं यहां पर घोड़े चढ़ाने आऊंगा। शक्तिपीठ की सेवा के लिए श्रेष्ठ घोड़े अर्पित करूंगा। श्रीकृष्ण व पांडवों ने युद्ध जीतने पर ऐसा किया था, तभी से मान्यता पूर्ण होने पर यहां श्रद्धालु सोने, चांदी व मिट्टी के घोड़े चढ़ाते हैं। मां भद्रकाली की सुंदर प्रतिमा शांत मुद्रा में यहां विराजमान है। हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन मां भद्रकाली की पूजा अर्चना व दर्शन करते हैं। मंदिर के बाहर देवी तालाब है। तालाब के एक छोर पर तक्षेश्वर महादेव मंदिर है। पुराणों में कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण व बलराम के मुंडन संस्कार यहां पर हुए थे।
   रक्षाबंधन के दिन श्रद्धालु अपनी रक्षा का भार माता को सौंप कर रक्षा सूत्र बांधते हैं। मान्यता है कि इससे उसकी सुरक्षा होती है। महाशक्तिपीठ में विशेष उत्सव के रूप में चैत्र व आश्विन के नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

ज्योतीसर- यही वह स्थान है, जहां भगवान कृष्ण ने मोह ग्रस्त अर्जुन को ज्ञान दिया था, जो आज भगवद गीता के नाम से जानी जाती हे। वर्तमान में इसे बड़ा ही आकर्षक बनाया गया है, प्रतिदिन रात्री को लाइट एंड साउंड [ध्वनि एवं प्रकाश] के माध्यम से महाभारत युद्ध के प्रमुख भागो को प्रदर्शित किया जाता है, इसके लिए शाम के समय पहुचना आवश्यक है, इसके लिए कुछ ही राशि व्यय करना होती है, यहाँ ही प्राचीन कल को बरगद का वृक्ष भी है। जिस पर कलावा बांध कर श्रद्धालु मनोती माँगते हें। 

पिहोवा- कुरुक्षेत्र पवित्र माना गया है और सरस्वती कुरुक्षेत्र से भी पवित्र है। सरस्वती तीर्थ अत्यंत पवित्र है, किन्तु पृथूदक या जिसे अब पीहोवा कहा जाता हे, इनमें सबसे अधिक पावन व पवित्र है।
महाभारत , वामन पुराण , स्कन्द पुराण , मार्कण्डेय पुराण आदि अनेक पुराणों एवं धर्मग्रन्थों के अनुसार इस तीर्थ का महत्व इसलिए ज्यादा हो जाता है कि पौराणिक व्याख्यानों के अनुसार इस तीर्थ की रचना प्रजापति ब्रह्मा ने पृथ्वी , जल , वायु व आकाश के साथ सृष्टि के आरम्भ में की थी। 'पृथुदक' शब्द की उत्पत्ति का सम्बन्ध महाराजा पृथु से रहा है। इस जगह पृथु ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उनका क्रियाकर्म एवं श्राद्ध किया। अर्थात जहां पृथु ने अपने पिता को उदक यानि जल दिया। पृथु व उदक के जोड़ से यह तीर्थ पृथूदक कहलाया।
श्री स्थानेश्वर महादेव मन्दिर- कुरुक्षेत्र की पावन धरती पर श्री स्थानेश्वर महादेव मन्दिर स्थित है। लोक मान्यता है कि महाभारत के युद्ध से पूर्व भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन समेत यहा भगवान शिव की उपासना कर अशीर्वाद प्राप्त किया था। इस तीर्थ की विशेषता यह भी है कि यहा मन्दिर व गुरुद्वरा एक ही दीवाल से लगे हुए हें।  यहाँ  पर हजारो देशी विदेशी पर्यटक दर्शन हेतु आते है। 
पेनोरमा ओर श्री कृष्ण संग्रहालय- यह कुरुक्षेत्र के एक आकर्षणों में सम्मलित है कोई भी पर्यटक ओर दर्शनार्थी यहाँ आना नहीं भूलते। पेनोरमा में तल मंजिल पर विज्ञान की जानकारी ओर आश्चर्य करने वाली जानकारी मिलती है।इसके प्रथम तल पर महभारत युद्ध को चित्रो प्रकाश ओर ध्वनि के माध्यम से साकार किया है। पेनोरमा के पास ही श्री कृष्ण संग्रहालय जो श्री कृष्ण जी के विविध चित्रो ओर उनसे संबन्धित  सामग्री, मूर्तियों का सुरुचिपूर्ण आकर्षण हे।  
अन्य दर्शनीय स्थानो में द्रोपदी कुंड, सरोवर का वह स्थान जहां युद्ध में पराजय के बाद दुर्योधन छिप कर बेठा था ,आदि हें। कुरुक्षेत्र प्राधिकरण द्वारा निर्मित विशाल रथ जिस पर श्री कृष्ण जी अर्जुन को ज्ञान दे रहे हें बड़ा ही मनोहारी है। सभी पर्यटक यहाँ फोटो खिचवाना नहीं भूलते।
 
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