दूल्‍हा दूल्‍हन मिली गये फिकी पडी बरात !

दुल्हा दुल्हिन मिली गये-फीकी पडी बरात। 
उद्धव जोशी उज्जैन
        पुराने जमाने के बुजुर्ग चर्चा के दौरान नई पीढी को बडे गर्व से बताते हैं कि हमारे जमाने में बारात को वधु पक्ष के साथ गांव वाले भी दो तीन दिन तक रोक कर बडी आव भगत करने के साथ बारात का पूरा पूरा आनन्द उठाते थे ।

      ‘‘बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले‘‘ के अनुसार आज भी कई लोग धूम धाम के साथ बारात ले जाने की परम्परा को निभा रहे हैं । अब बारात के लिए बस और बस में बैठने के लिए बारातियों की व्यवस्था करना काफी कष्ट प्रद होता है। उसी तरह वधु पक्ष को भी बारात को ठहराने के लिए कमरे,कमरों में बिना सिलवट के बिस्तर,महिलाओं , दूल्हे तथा उसके दोस्तों के लिए अलग से व्यवस्था करने में काफी चिन्तन,मेहनत और मशक्कत करना पडती है । अच्छी व्यवस्था बाराती को तो ‘‘बिना मांगे मोती मिलेे‘‘ जैसी दिखाई देती है । वैवाहिक नाटक का पर्दा उठते ही प्रथम द्रश्य में सबसे पहले ठण्डा पानी पिलाया जाकर गोपनीय चेतावनी दे दी जाती है कि हमने अच्छे अच्छों को पानी पिला दिया आप कौन से खेत की मूली हो । इसके तत्काल बाद मौसम के अनुसार नाश्ता एवं ठण्डा या गरम पेय पदार्थ दिया जाकर बडी आव भगत की जाती है । नाई,धोबी,गुसलखाने आदि की इतनी अच्छी व्यवस्था की जाती है कि बाराती कह उठते हैं वाह वाह क्या बात है। दूल्हे से कहते हैं बच्चू तेरी बारात में आना सदैव याद रहेगा । नाश्ते के बाद भोजन,और फिर प्रोसेशन याने चल समारोह की तैयारी । बाराती भी आव भगत से तरोताजा होकर सजने संवरने की तैयारी करने लगते है। महिलायें साडीयों का सिलेक्शन और पुरूष पहने हुए कपडे में ही अपना सेटिसफेक्शन समझते हैं ।

    बारात के प्रोसेशन में बैण्ड और ढोल की धुन पर महिला,युवा,युवति सभी जम कर डांस करते हैं । लग्न के समय पर बारात वधु के व्दार पर पहुंचे इसमे इनका कोई इन्टरेस्ट नहीं होता है। वधु पक्ष की भी देरी के कारण त्यौंरियां चढने लगती है और यहीं से बारातियों की फजिहत बढने लगती है । जैसे तैसे बारात पहुंचती भी है तो व्दार पर फटाके और डांस की कानफोडू आवाज सबको भयावह कर देती है परन्तु बैण्ड वाले ‘‘ बहारों फूल बरसाओ,मेरा मेहबूब आया है ‘‘ या ‘‘ ले जायगे ले जायगे दिल वाले दुल्हनियां ले जायगें ‘‘ जैसे कर्ण प्रिय गानों के व्दारा वातावरण को बोझिल होने से बचाते हैं । 

    वधु पक्ष के घर बाराती बन कर जाने में बडा उत्साह रहता है , किन्तु दुल्हा दुल्हन का हस्त मिलाप होते ही बाराती न घर का रहता है न घांट का । इसके बाद तो खाना खाया या नहीं, सोने की ,पानी की क्या व्यवस्था है कोई नहीं पूछता और बारातियों का रंग फीका पडने लगता है। वर पक्ष वाले भी सारी रात सर पर लेकर वधु को जल्दी से जल्दी अपने घर ले जाने की तैयारी में रहने के कारण बाराती का बिलकुल ध्यान नहीं रखते है । जिस ताजगी से बाराती बारात में जाताहै, वापसी पर उंनीदा, सुस्त और कमजोर होकर लौटता है ! बाराती की हालत देखने लायक भी नहीं रहती।

    इसीलिए कबीर दास ने बाराती को चेतावनी देते हुए कहा कि ‘‘‘‘दुल्हा दुल्हन मिली गए ,फीकी पडी बारात ‘‘। यदि आप बाराती बन कर कभी गये तो आपके अनुभव में सब कुछ है और पहली बार जा रहे हो तो सोंच समझ कर पहले बारात में गये बाराती से जानकारी और ताजगी भरे नुस्खे ले वर्तमान समय में बारात में जाने का अवसर कम ही मिलता है । वर और वधु पक्ष दोनों मिलकर ही एक स्थान पर वैवाहिक आयोजन कर रहे हैं जो मितव्ययता के साथ समय की बचत और स्वजनों की सुविधा का प्रतिक है। दोनों पक्षों के सदस्य मिल कर व्यवस्था कर लेते हैं इस कारण किसी को भी किसी शिकायत का अवसर नहीं मिलता है । यह समय की मांग भी है । दूल्हे को तो बारात चढना ही है किन्तु बाराती भूल कर भी बस में न चढे ! 


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