जनवरी औदीच्य बंधू का डिजिटल एडिशन
प्रस्तुत है विचारने योग्य इस लेख के साथ-
“ठाकुर सुहाती या चापलूसी
स्वीकार न करने पर “औदीच्य बंधू” मासिक इन्दोर के सम्पादक मंडल में परिवर्तन
संभावित?
औदीच्य बंधू जनवरी 17 डिजिटल अंक |
औदिच्य बंधू मासिक पत्रिका का दिसमबर
के बाद अब पुन: जनवरी 17 का नव वर्ष का नया अंक सम्पादक मंडल के नामों से रहित, अपने
आप में विशेष हैI दिसम्बर के पिछले अंक से ही पूर्व सम्पादक मंडल प्रमुख सर्व श्री
ओंम ठाकुर, संपादक सर्व श्री धर्मेन्द्र रावल, सर्व श्री उद्दव जोशी प्रबंध संपादक
सर्व श्री मनमोहन ठाकर जी के नाम उनकी जगह देखने नहीं मिले प्रमुख संपादक श्री ओम
जी के सत्य को इंगित करता हुआ लेख दिसंबर अंक में देखा गया था, नई पुन: पीड़ा के
साथ लिखा गया स्वतंत्र कलम से लिखा गया शायद अब अंतिम लेख हो सकता हैI
जैसा की सभी जानते हें की पिछले दिनों
अखिल भारतीय औदिच्य महासभा अध्यक्ष के चुनाव आर्थिक धरातल पर वर्चस्व की भावना
स्थापित करने के उद्देश्य से लादे गए थे, जिन्हें महत्वाकांक्षियों ने अपने पक्ष
में कर लिया थाI इसके बाद अगले चरण में स्वतंत्र पत्रिका औदिच्य बंधू जिसके जन्म के लिए
महासभा की कोई भूमिका नहीं हैI
आदरणीय सर्व श्री सुशिल कुमार जी
ठाकर के कार्यकाल में महासभा के प्रति स्व-समर्पित होकर महासभा का मुखपत्र बनाने
की भूमिका का निर्वाह करने लगी, पर अपना अस्तित्व अलग रखा, अलग ट्रस्ट द्वारा
संचालित होकर अति आर्थिक सक्षम बन बुलंदी तक पहुँच, अब इस महासभा के स्वार्थ-पीड़ित
महत्वाकांक्षियों, आर्थिक सम्पन्नता, उच्चपद विभूषित ब्यूरोक्रेट्स, और राजनेतिक
व्यक्तियों के हाथों पराजित होने की स्तिथि तक पहुँच गया हैI महासभा के नए सलाहकारों ने सलाह दी है की कोई भी लेख, समाचार, सूचना,
सम्पादकीय सहित महासभा द्वारा गठित समीति द्वरा ही स्वीकार होने के बाद ही
प्रकाशित हो, तदनुसार महासभा अध्यक्ष ने कार्यवाही भी प्रारम्भ कर दीI समझा जा सकता है की स्वतंत्र लेखनी को बंधन में रखने के इस तुगलकी आदेश
के विरुद्ध कलमकारों ने न कभी समर्पण किया है, न कराया जा सका है, और जब भी समर्पण
हुआ तब ठकुर-सुहाती, चटुकारिता, वाली लेखनी ने केवल अपने आकाओं का गुणगान ही किया
उससे समाज का कितना भला होगा यह केवल समझदार ही समझ सकते हैंI
पिछले महासभा अध्यक्षों के कार्यकाल
तक लेखनी को कभी बंधन में नहीं रखा गया था, नव आगन्तुक महत्वाकांक्षी, और
ब्यूरोक्रेट्स के वर्चस्व ने लेखनी को बंधक बनाने की इस कोशिश के विरुद्ध कलम ने
पद त्याग देना ही उचित वापिस, परन्तु पिछले दो माह के बाद भी सम्पादन की भूमिका
हेतु एसा व्यक्ति जो चटुकारिता कर सके संभव है नहीं मिलाI
महासभा द्वारा आदरणीय सुशिल कुमार
जी के प्रयत्नों से एकत्र धन राशी के दम पर वेतनधारी सम्पादक नियुक्ति पर विचार की
जानकारी मिली हैI जल्दी ही एसा व्यक्ति मिल ही
जायेगा, पर वह समाज के प्रति कितना उत्तरदायित्व रख पायेगा, यह कल्पना की जा सकती
हैI
कहा जा सकता है की अब ९२ वें वर्ष
से प्रकाशित होने वाला “औदीच्य बंधू” व्यावसायिक, कुछ लोगों के लिए प्रचार-प्रसार,
का साधन, बनने की राह पर हैI
इसके प्रति समाज का नजरिया भी
विचित्र प्रतीत हो रहा है, जिसके अधिकांश महानुभाव भी विरोध करने का साहस न कर
ठाकुर सुहाती बातें कर स्वयं को श्रेष्ट समाज सेवी समझ रहे हैI
सम्पादक की लेखनी पर इस अधिकार से
अब कुछ सत्यवादियों के विचार अब ‘औदीच्य बंधू’ में प्रकाशित होने से रहे, सभाओं
में उन्हें न तो आमंत्रित किया जायेगा, और नही उन्हें माइक तक पहुँचने ही दिया
जायेगा, यह निश्चित हैI कुछ पहुँच भी जायेंगे तो सम्भव है, कुछ विरुद्ध बोलने की हिम्मत नहीं कर
सकंगेंI
हमरा यह ब्लॉग इसे सभी विचारको के
लेख/ विचार निष्पक्ष और मूल रूप से प्रकाशन हेतु तत्पर रहेगाI आप अपने विचार इस औदिच्य बंधू वेव’ ‘फेस-बुक
प्रष्ट’ और इस ग्रुप में लिख सकते हेंI
सम्भव है की आगामी दिनों में, अभी
तक औदीच्य बंधू के नव सम्पादक महोदय द्वारा डिजिटल बनाने हेतु मुझे मेल से
प्रकाशित पत्रिका अब नवीन निर्णय अनुसार न भेजी जाये, अत: २०१२ से अबतक उपलब्ध डिजिटल
पत्रिका अब आपको मुझ से न मिल सकेI स्मरणीय है की मुझ जैसों सहित कई निष्पक्षों या विरोधियों को वर्तमान अखिल भारतीय महासभा में कोई स्थान नहीं दिया है, और न ही पिछले चुनाव के
बाद से अभी तक किसी भी महासभा विषयक कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया हैI इसलिये यह असम्भव भी नहींI
हमरा आग्रह है की क्या यह सही हो
रहा है या नहीं, क्या होना चाहिए, अपनी अपने विचार जरुर रखेI में आपको बताना चाहूँगा की हमारा यह ब्लॉग किसी के दवाव या आर्थिक सहायता
पर निर्भर नहीं हैI
डॉ मधु सूदन व्यास एम् आई जी ४/१ प्रगति नगर
उज्जैन मप्र, 9425379102,
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